इटली के प्रसिद्ध विचारक और सौन्दर्यशास्त्री बेनदेतो क्रोचे (1866-1952) पर फासीवाद के संदर्भमें कनाडा के विद्वान फ़ेबियन फ़र्नांद रिजि की किताब में सौ साल पहले के मुसोलिनी के शासनकाल का जो चित्र मिलता है, वह वैसा ही है जैसा अभी मोदी के शासन काल का नज़र आता है ।
सन् 1925 तक मुसोलिनी ने बाक़ायदा कानून बना कर और दूसरे दबावों से इटली के प्रेस कोअपने शासन के अधीन कर लिया था । पुलिस विभाग की जासूसी के जाल में पूरे इटली कोजकड़ दिया । पार्लियामेंट को रबर स्टांप में तब्दील करके विपक्ष को इतना पंगु बना दिया गयाताकि कहीं से कोई विरोध की आवाज नहीं उठ सके।
1926 तक उदारवादी इटली की मृत्यु हो चुकी थी ।
क्रोचे ने मुसोलिनी की विचारधारा को “शासन और लफ़्फ़ाज़ी का, कानून के प्रति निष्ठा औरकानून के उल्लंघन का, अत्याधुनिक बातों और पुरानी सड़ी-गली फ़िज़ूल की चीजों, संस्कृति केप्रति तिरस्कार और किसी नई संस्कृति को तैयार करने की असमर्थता का विचित्र मिश्रण” कहाथा ।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने आज के ‘टेलिग्राफ’ में अपने लेख में इस पुस्तक के हवाले से मुसोलिनी और मोदी के शासन मेंसमानताओं का एक सटीक चित्र पेश किया है । आज के कोरोना के तंगी के काल में भी भारत का गृह मंत्रालय नागरिकों पर जासूसीका जाल फैलाने के लिए वित्त आयोग से पचास हज़ार करोड़ रुपये अतिरिक्त की माँग कर रहा है ।
गुहा ने अन्य हवाले से बताया है कि मुसोलिनी अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद हिटलर की तरह का एक पूर्ण एकाधिकारवादीशासन क़ायम नहीं कर पाया था । मुसोलिनी इटली की जनता के जीवन को बेहतर बनाने में पूरी तरह विफल रहा था । उसकीलफ़्फ़ाज़ियों और जनता की ज़िंदगी की परिस्थिति में कोई मेल नहीं था ।
गुहा की राय में जनता को राहत देने के मामले मोदी तो मुसोलिनी में भी बहुत पीछे है । मुसोलिनी की मौत के बाद क्रोचे ने लिखा थाकि “ दमनकारी शासन ने (इटली के) नैतिक बल को दिग्भ्रमित किया, उसका लाभ उठाया और अंत में उसके प्रति विश्वासघात किया।”
मुसोलिनी की तरह ही मोदी और उसकी पार्टी का अनंत काल तक शासन का सपना कभी पूरा नहीं होगा । मोदी की बातों और जनजीवन की वास्तविकता में जरा भी मेल नहीं है ।ऊपर से भारत में विपक्षी भी मौजूद है ।
पर मुसोलिनी ने इटली को जिस प्रकार बर्बाद किया उससे उभरने में इटली को काफ़ी समय लग गया था । भारत में मोदी के द्वारामचाई गई तबाही से उबरने में उससे भी बहुत ज़्यादा समय लगेगा ।
इसमें हम इतना और जोड़ना चाहेंगे कि जीवन में समय के अंतराल की भी बड़ी भूमिका होती है । इतिहास कभी अपने को हुबहू नहींदोहरा सकता है । मार्क्स ने लिखा था कि वह यदि एक बार किसी दुखांत के रूप में अवतरित होता है तो दूसरी बार प्रहसन के रूप में। मोदी का कार्यकाल उसी अंत को इंगित करने वाला एक भोंडा कार्यकाल है ।
यहाँ हम रामचंद्र गुहा के इस लेख को साझा कर रहे हैं : https://epaper.telegraphindia.com/imageview_340800_14214691_4_71_12-09-2020_10_i_1_sf.html
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