विषय पर केंद्रित होने पर स्वयं विषय का स्वरूप बदल जाता है (द्वंद्वात्मक भौतिकवाद में मनन का स्थान ) ; विकल्प का निर्विकल्प में विश्रांति ही तत्व है ; इस प्रकार उत्तरोत्तर विश्रांति के द्वारा अपना स्वरूप स्फुट होता है - यह शेष है ।
रविवार, 2 मार्च 2014
पूरन चंद्र जोशी की सन् 1987 के अंत में प्रकाशित पुस्तक ‘परिवर्तन और विकास के सांस्कृतिक आयाम’ की इस लेखक द्वारा की गयी लंबी समीक्षा जो सन् 1988 में लिखी गयी थी।
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