गुरुवार, 26 मार्च 2015

सरला माहेश्वरी की कविताएं


धारा 66 ए के अंत की रात में लिखी गई  कविता - मन की बात :

मन की बात

कितना आसान है
तुम्हारे लिये
कहना अपने मन की बात
करना अपने मन की बात
काश कि
तुम सुनते मन की बात
मेरी बात
उसकी बात
हम सबकी बात
मुश्किल है
बहुत मुश्किल
मेरे लिये, उसके लिये, हम सबके लिये
कहना अपने 
मन की बात
करना अपने 
मन की बात
यहाँ तो कदम-कदम पर
लगाये बैठा है कोई घात
करने को प्रतिघात
हलक में ही
अटक जाती है
हमारे मन की बात
नहीं, ऐसा नहीं है कि 
हमें आता नहीं बोलना
हमारे मुँह में भी जुबां है
हम भी चाहते हैं
बहुत कुछ कहना
चहकना,जोशो-खरोश से दहाड़ना
हवा में उड़ना
देश-विदेश की सैर करना
एक बार ,बस एक बार
पूछ कर तो देखो
कैसा लगता है हमें
जब पकी-पकाई फ़सल पर 
आसमान टूटता है
प्रलय बनकर
काश, पूछते कि
ठंडे चूल्हे की आग
कैसे जलाकर ख़ाक करती है हमें
काश, पूछते कि 
कैसे हमारे मन की चाहतें नहीं
रोज़-रोज़ की ज़रूरतें 
डराती हैं हमें
रुलाती हैं हमें
एक बार
हमारे मन में झाँक कर तो देखो
चकरा जाओगे तुम भी
देख कर हमारे हौंसलों की उड़ान
पिंजरे का दरवाज़ा एक बार
खोलकर तो देखो
क़सम से भूल जाओगे
बंद करना
टूटना ही है इसे
यही है मेरी, उसकी, हम सबकी
मन की बात
तब तक, हाँ, तब तक 
करते रहो तुम
अपने मन की बात
ख़ैर, 
आज धारा 66 ए के अंत की रात
कह रही हूँ कुछ मन की बात।

2 . इंस्पेक्टर राजेन्द्र धोंदू भोंसले

आज, 19 मार्च 2015 का जनसत्ता
विष्णु नागर बता रहे हैं
मुंबई के दादाभाई नौरोजी थाने के
किसी इंस्पेक्टर राजेन्द्र धोंदू भोंसले की कथा
यह कथा है भोंसले के असाधारण जुनून की
गुमशुदा 166 लड़कियों और 174 लड़कों की खोज की
अपने काम में ऐसा जुटा ये दीवाना
कि 165 लड़कियों और 171 लड़कों को वापस मिल गया अपना ठिकाना
लेकिन वह अब भी बेचैन है
जारी जो है अब भी 166वीं की तलाश
गुमशुदा पूजा की तलाश
क़ायम है उसका विश्वास
जैसे होती है हर पिता की आस
इंस्पेक्टर राजेंद्र धोंदू भोंसले
शुक्र है कि बचे हैं तुम जैसे कुछ पगले
तुम जैसे भोंदू पगलों से ही बचे हैं
जीवन के अनमोल घोंसले
तुम हो जैसे किसी बीहड़ में जलती मशाल
अब तुम सिर्फ एक नाम नहीं हो
जो हो जाये गुमनाम
दफ़्न हो जाय अनाम
हम न होने देंगे तुम्हें लापता
ज़िंदगी ढूँढ ही लायेगी तुम्हारा पता
जैसे ढूँढ लाये थे तुम
गुम हो गयी ज़िंदगियों का
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नीचे की तस्वीर ऊपर उल्लेखित पूजा की है :


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