सलमान खान ने 'बलात्कृत महिला' वाले अपने कथन पर माफ़ी नहीं माँगी है । अब महिला आयोग विचार कर रहा है कि वह अपनी पहले की धमक पर क्या करें !
सलमान खान ने सही शब्दों का प्रयोग किया या नहीं किया, यह बिल्कुल अलग मसला है । लेकिन किसी की भी स्वाभाविक बोलचाल की भाषा और उसकी भाव-भंगिमाओं पर ऐसा बवाल बिल्कुल अस्वाभाविक और हास्यास्पद है । तब तो जीवन में सबसे पहले गालियों के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए , बाक़ी बातें तो बहुत दूर की है । भाषा पर स्त्री के सतीत्व की तरह की सात्विक संवेदनशीलता खुद में एक बड़ा धोखा है ।
बलात्कार शब्द को इतना विशिष्ट बना देना कि इसका प्रयोग सिर्फ पीडि़त महिला के लिये ही किया जा सकता है, भाषा के साथ बलात्कार है। जब करों का चाबुक आम लोगों पर पड़ता है तो सामान्य तौर पर कहा जाता है कि यह सरासर जनता का बलात्कार है। बलात्कार शब्द का प्रयोग किसी दूसरे रूप में करना यदि पीडि़त महिला के अपमान की तरह का अपराध है तो क्या महिला आयोग को पागलों का समूह कहना पागलों का अपमान नहीं है ! या शासन में आज बौने लोग बैठे हैं, कहना क्या बौने लोगों का अपमान नहीं है !
यहां तक कि बलात्कृत महिला की पीड़ा भी उतनी विशिष्ट नहीं है कि उसकी आदमी की किसी भी दूसरी पीड़ा के संदर्भ में चर्चा ही नहीं की जा सकती है।
सलमान खान ने सही शब्दों का प्रयोग किया या नहीं किया, यह बिल्कुल अलग मसला है । लेकिन किसी की भी स्वाभाविक बोलचाल की भाषा और उसकी भाव-भंगिमाओं पर ऐसा बवाल बिल्कुल अस्वाभाविक और हास्यास्पद है । तब तो जीवन में सबसे पहले गालियों के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए , बाक़ी बातें तो बहुत दूर की है । भाषा पर स्त्री के सतीत्व की तरह की सात्विक संवेदनशीलता खुद में एक बड़ा धोखा है ।
बलात्कार शब्द को इतना विशिष्ट बना देना कि इसका प्रयोग सिर्फ पीडि़त महिला के लिये ही किया जा सकता है, भाषा के साथ बलात्कार है। जब करों का चाबुक आम लोगों पर पड़ता है तो सामान्य तौर पर कहा जाता है कि यह सरासर जनता का बलात्कार है। बलात्कार शब्द का प्रयोग किसी दूसरे रूप में करना यदि पीडि़त महिला के अपमान की तरह का अपराध है तो क्या महिला आयोग को पागलों का समूह कहना पागलों का अपमान नहीं है ! या शासन में आज बौने लोग बैठे हैं, कहना क्या बौने लोगों का अपमान नहीं है !
यहां तक कि बलात्कृत महिला की पीड़ा भी उतनी विशिष्ट नहीं है कि उसकी आदमी की किसी भी दूसरी पीड़ा के संदर्भ में चर्चा ही नहीं की जा सकती है।
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