Supreme Court Asks the Wrong Questions in Kerala ‘Love Jihad’ Case - Vaksha Sachdeva in 'The Quint'.
—अरुण माहेश्वरी
17 अगस्त 2017 के दिन हमने फेसबुक की अपनी वाल पर एक छोटी सी पोस्ट लगाई, फेसबुक की हाईलाइटिंग की सुविधा का प्रयोग करते हुए —
Arun Maheshwari
17 August at 21:07 •
“अन्तर-धर्मीय शादियों में पुलिस बल (एनआईए)से नमूना जाँच के जरिये सुप्रीम कोर्ट की दख़लंदाज़ी शुद्ध रूप से एक विवेकहीन कार्रवाई है ।“
इस पर एक प्रतिक्रिया आई शीतल पी सिंह की, और उनसे विमर्श का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसे यहां दर्ज करके रख रहा हूं —
Sheetal P Singh यह मामला अलग है । कृपया विस्तार में जांय । ऐसा न हो कि हम पैन इस्लामी प्रचार के औज़ार के रूप में इस्तेमाल हो जांय !
Arun Maheshwari मैं ऐसा नहीं समझता । इस प्रकार की नमूना जाँच से हिंदुत्ववादियों के लिये तर्क जुटाने की एक वैसी ही पेशकश की जा रही है जैसी हिंदुत्व को एक जीवन शैली बताने की सुप्रीम कोर्ट की अतार्किक राय के जरिये की गई थी ।
Sheetal P Singh Arun Maheshwari आपको नहीं पता कि प्रसंग क्या है ? विवाद शादी पर नहीं शादी से काफ़ी पहले एक ऐसे संगठन की सदस्याओं के साथ जो केरल के एक कट्टर इस्लामी संगठन के लिये काम करती हैं , धर्म परिवर्तन से शुरू हुआ । मामला हाई कोर्ट में चला । लड़की बालिग़ थी और दूसरी तरफ़ से लीगल फ़ौज और केरल । एक वकील अदालत की तौहीन में जेल गया । इस पूरे दौरान लड़की एक ऐसे गेस्टहाउस में रही जो वही कट्टर मुस्लिम संगठन चलाता है । मुक़दमे के पहलू बदलने के दौरान लड़की के निकाह के काग़ज़ हाईकोर्ट में पेश किये गये जो ताज़े ताज़े थे , यानि की बचाव की कोशिश के तौर पर ! हाईकोर्ट ने दोजजों की बेंच से इस शादी को नल एंड वायड कर दिया । पति सुप्रीम कोर्ट पहुँचा जहाँ पुलिस की एक रिपोर्ट की तसदीक का काम NIA को सौंपा गया है जिसका पति विरोध कर रहा है जिस पर अदालत को शक गहरा रहा है ।
आप क्या समझते हैं ये आप समझते रहें पर तथ्यों को देख जरूर लें ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh मैं समझ रहा हूँ । किसी फौजदारी मामले में अदालत के द्वारा शादी को स्वीकारना या अस्वीकारना ख़ुद में बेहद हास्यास्पद लगता है । हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट भी ग़लत ट्रैक में गया है । किसी की शादी होने न होने से उसके किसी अपराधपूर्ण काम पर राय नहीं दी जा सकती है ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh शायद आप 'लव जेहाद' के नाम पर चलाये जा रहे अभियान के पीछे के तर्कों को, 'हिंदू लड़कियों को फंसाने' की शरारतपूर्ण बातों से या तो अपरिचित है या उन्हें इस मामले से जोड़ नहीं पा रहे हैं ।
Sheetal P Singh Arun Maheshwari कमाल है कि आप तथ्यों को (जो निहायत ही गंभीर हैं ) एक पोस्ट की रक्षा में हवा में उड़ा रहे हैं । जिस व्यक्ति से शादी बताई गई वह उससे (लड़की से)संबंधित नहीं है । एकाएक गल्फ़ से लौटा और यह लड़की जो एक मदरसे के हास्टल में महीनों से कोर्ट केस के चलते एक कट्टर इसलामी संगठन की नज़रबंद थी , उससे ब्याह दी गई और काग़ज़ कोर्ट में लगा दिये गये ।
लड़की के पिता ने इस लड़के के कुछ पुराने आपराधिक मामलों के डिटेल्स , शिक्षा दीक्षा, संबंधित न होने को सामने रखकर कोर्ट से पुनर्विचार को कहा !
ध्यान रहे कि पहले इसी हाईकोर्ट ने लड़की को धर्मपरिवर्तन कर पिता से अलग रहने की मंज़ूरी दी हुई थी ।
नये तथ्यों के समय केरल से २१ लोगों के ISIS के लिये सीरिया जाकर लड़ने की रिपोर्ट आ चुकी थी । यह लड़का संदिग्ध था ही और हाईकोर्ट के सवालों पर उसके जवाब अनियमित और गलत निकले , तब हाई कोर्ट ने पुलिस से रिपोर्ट माँगी और संदेह सच पाने पर यह फैसला दिया ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh कमाल की बात यह है कि जो एक फ़ौजदारी मामला हो सकता है , उसे शादी का मामला बना दिया जा रहा है । कौन आईसिस का है, कौन नहीं , यह मेरी पोस्ट का विषय ही नहीं है । किसी अपराधी की शादी के मामले पर विचार का कोई दूसरा मानदंड नहीं हो सकता है । यह शुद्ध रूप से दो वयस्कों के बीच का निजी मामला है ।
Sheetal P Singh Arun Maheshwari आप पीडीपी से परिचित हैं या नहीं ? चूँकि RSS लव जिहाद नामक राजनैतिक हथकंडा अपनाता है तो आप इसी वजह से सचमुच के ISIS भर्ती प्रकरण पर आँख मूँद लेंगे ? (अगर यह सच हुआ तो भी )? जाँच ही तो हो रही है , वह भी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज के अधीन ! हो लेने दें तब खारिज करें ।
Arun Maheshwari और मामले की गंभीरता ! हमारे यहाँ मुसलमानों से जुड़ा हर मामला कुछ लोगों के लिये हमेशा बहुत गंभीर ही होता है ! इसे अदालत पर छोड़ दीजिए ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh मैंने कहा न इस आइसिस या नक्सल या अन्य आतंकवादी के विषय को अदालत और कानून और व्यवस्था की मशीनरी पर छोड़ दीजिए । हमारी पोस्ट शादी को विवाद में लाने के पीछे की मानसिकता के बारे में है ।
जब भी संक्षेप में, हाईलाइट करते हुए किसी नुक़्ते को उठाया जाता है को यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसके पीछे के दूसरे विषयों से लेखक अनजान है ।
Sheetal P Singh Arun Maheshwari काश आप इसे अदालत पर छोड़े होते ? आपने तो अदालत के निर्देश पर ही (बिना संदर्भ लिये) कटाक्ष किया है ! जो उस उग्र इसलामी संगठन का sponsored प्रचार है(अनजाने में ), जो इस मामले में वकील / पैसा / दूल्हा (petitioner) सब मुहैया करा रहा है ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh पूरे मामले के इस शादी वाले पहलू को हम इसलिये सिर्फ अदालत पर छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि इसके दूसरे व्यापक विचारधारात्मक आयाम भी है । जैसे 'हिंदुत्व' को जीवन शैली बताने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हम अदालत की राय मान कर स्वीकार नहीं सकते हैं ।
21 अगस्त 2017 को हमने फिर 'टेलिग्राफ' में प्रकाशित मानिनी चटर्जी के लेख को साझा करते हुए एक पोस्ट लगाई —
Arun Maheshwari
""कोई नहीं कह सकता कि परिवार, समाज और राज्य की ताकत के भारी दबाव के बाद भी हादिया की आस्था और उसकी स्वतंत्र इच्छा बरक़रार रहेगी । लेकिन इतना तय है कि यदि हादिया जन्मजात मुसलमान होती और उसने हिंदुत्व के कट्टरपंथ का रास्ता अपना लिया होता, किसी गौ रक्षक से शादी करके अपना नाम अखिला रख लिया होता, तो उसकी नियति कुछ और ही होती ।"
यह है केरल के बहुचर्चित अखिला और सफीन जहाँ की शादी के मामले पर आज के 'टेलिग्राफ' में मानिनी चटर्जी का लेख जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 'लव जेहाद' और उग्रवाद के कोण से जाँच के लिये एनआईए को सौंपने का अविवेकपूर्ण फैसला किया है :
Of Akhila and Hadiya
At first glance, the special leave petition before the Supreme Court of India in the matter of Shafin Jahan (petitioner) and Asokan K.M. & others (respondents) may seem like a page out of a hackneyed screenplay.
इसी दिन Sheetal P Singh ने अपनी वाल पर केरल हाईकोर्ट की पूरी राय को देते हुए लिखा —
कुछ लोग सिमी(SIMI) नामके एक प्रतिबंधित इस्लामी आतंकवादी संगठन को विक्टिम मानते हैं । ये तालिबान अल कायदा ISIS और दुनिया भर के इसलामी आतंकी संगठनों को भी अमरीकी कारगुज़ारी मानते हैं और इनके कारनामों पर बात उठते ही उसे एक फलसफाना सवाल बना देते हैं !
कुछ लोग नहीं मानते कि RSS दंगे orchestrate करता है / कर सकता है , कि गांधी जी की हत्या में उसकी भूमिका थी , कि इस्लाम से घृणा फैलाना राजनीति है इससे वोट मिलते हैं ! बहुत से लोग इसपर बात होते ही नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे,औरंगज़ेब कसाई था और बांग्लादेश / पाकिसतान में हिंदुओं के हाल देख लो पर पहुँचा देते हैं !
माहौल यह है कि गोरखपुर का डा० कफ़ील या तो हीरो है या विलेन ! इन्सान तो नहीं ही है ।
सच इस कश्मकश का रियल विक्टिम है ।
सरकार / कोर्ट्स / ख़ुफ़िया तंत्र के रिकार्ड में सिमी भारत में मुसलमानों के एक हिस्से के नौजवानों का आतंकवादी संगठन है जो प्रतिबंधित है । इससे निकल कर केरल में एक संगठन सामने आया पीपुल्स फ़्रंट आफ इंडिया । तमाम हिंसक / आतंकी घटनाओं में यह फँसा और निशाने पर आ गया तो तीसरा नाम सामने आया SDPI, इस पर भी अब तक कई हिंसक मामले दर्ज हुए हैं । २०१५ में सीपीएम के दो कार्यकर्ताओं पर हुए हिंसक हमले के सीसीटीवी फ़ुटेज टीवी चैनलों पर चल जाने से इसने वह घटना स्वीकार भी कर ली । बाद में NIA ने इसके कुछ लोगों को ISIS से संबंध में पकड़ा !
वक़्त फ़िलहाल इस पोस्ट में इसकी चर्चा केरल की एक बालिग़ हिंदू लड़की के इस्लाम में धर्म परिवर्तन और एक कोर्ट केस की सुनवाई के दौरान अचानक इसी संगठन के एक कार्यकर्ता से किये गये विवाह से उभरी है । जिस पर बहस छिड़ गई है ।
केरल हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान (कई महीनों लगातार चली ) पाया कि धर्म परिवर्तन करने वाली लड़की के चारों तरफ़ इसी संगठन के लोग हैं । वे ही बड़े बड़े वकील मुहैया करा रहे हैं (लड़की बेरोजगार है) , उन्हे बदल रहे हैं , लड़की के ठहरने / भोजन/ वस्त्र के इंतज़ाम कर रहे हैं और वह कोर्ट के आदेश से इनसे मुक्त होकर अपनी पढ़ाई पूरी न कर सके इसलिये अचानक उसकी शादी के दस्तावेज़ कोर्ट में पेश कर दे रहे हैं !
अपनी इकलौती लड़की के मांबाप दर दर की ठोकरों पर हैं क्योंकि लड़की बालिग़ है , वेजानते हैं कि लड़की (gullible ) है , पढ़ने लिखने में कमज़ोर थी , पढ़ाई बीच में छोड़ SDPI वालों के साथ मुसलमान बनने चली गई ,बहकाई जा सकती है और किसी आतंकी घटना में human bomb बनाकर चिथड़ों में बदली जा सकती है (सारे human bomb नाबालिग़ ही तो नहीं थे )! मांबाप की पहली याचिका केरल हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी ,भावुक वकील को कोर्ट की अवमानना में
एक महीने की जेल कर दी थी ।
दूसरी याचिका तब सुनी गई जब केरल के २१ युवाओं (ज़्यादातर बालिग़) के सीरिया में ISIS में होने का मामला खुल गया ।
लड़की के बाप ने याचिका दी कि केरल के कई युवा (नये बने मुसलमान ) कट्टरवादी मुस्लिम संगठनों के क़ब्ज़े में हैं जो सीरिया भेजे जा सकते हैं , उनकी लड़की भी उनमें से एक है ।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लड़की से पूछा कि वह अपनी होमियोपैथिक डाक्टर की डिग्री पूरी क्यों नहीं कर रही ? उसका ख़र्च कौन और क्यों उठा रहा है ? उसके लिये वकील कौन खड़े कर रहा है ? जवाब में लड़की ने हास्टल में रहकर डिग्री पूरी करने की बात कही , कोर्ट ने मान लिया और लड़की के बाप ने हास्टल की फ़ीस चुकाने का एफेडेविट दिया !
हफ़्ते बाद अगली सुनवाई पर लड़की के वकील ने कोर्ट को बताया कि पिछली सुनवाई के दिन ही शाम को लड़की ने SDPI के सोशल मीडिया प्रमुख से निकाह कर लिया है । लड़का बेरोजगार निकला । माँ UAE में घरों का सफाई का काम करती है ।
आप समझ सकते हैं कि क्या हुआ होगा ?
कोर्ट ने पुलिस रिपोर्ट में पाया कि लड़का AIYF के एक युवा पर जानलेवा हमले का अभियुक्त है । प्रेमसंबंध की जगह मैट्रीमोनियल विवाह का आधार बताया गया । लड़के का दोस्त कुछ दिन पहले NIA द्वारा आतंकवाद के संदेह में धरा जा चुका था । और लड़का वापस विदेश जाना चाहता है !
कोर्ट ने आदेश में सब तिथिवार दर्ज किया है । लड़की के चार चार नाम (परिवर्तित धर्म के ) चार भिन्न एपीडेविट पर हैं ।
तीन बार वकील बदले , सिर्फ एक वकालतनामा साइन हुआ ।
लड़की के इर्द गिर्द के सारे लोग SDPI से मिले , सब बेरोजगार !
केरल हाईकोर्ट ने शादी null n void कर दी । पुलिस द्वारा बड़ी जाँच के आदेश दिये ।
इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती पर SC ने केस जाँच के लिये NIA को सौंपा है
और इसके साथ ही जवाब-सवाल का यह सिलसिला शुरू हुआ —
Arun Maheshwari मैं यहाँ आज के टेलिग्राफ़ में मानिनि चटर्जी के लेख का लिंक दे रहा हूँ। आप मामले की जिन तफसीलों का जिक्र कर रहे हैं, वैसी नोटिंग्स के बिना तो मामला ही नहीं बनता । ये सब फ़ौजदारी के विषय है । वादी प्रतिवादी के वक़ील अगर इतनी बातें नहीं कहेंगे तो कहेंगे क्या ? यह सामान्य ज्ञान की चीज है ।
इस मामले का दूसरा पहलू, जो खतरनाक विचारधारात्मक रुझान की ओर संकेत करता है , वह 'लव जिहाद' का पहलू हैं । हत्या षड़यंत्र के अपराधियों को फाँसी दो, जेल में सड़ाओ। लेकिन इससे हत्यारे की शादी तोड़ देने का मसला विचार का विषय कैसे बन सकता है ?
मानिनि चटर्जी के इस लेख से शायद आपको कुछ समझ में आयें, यदि आपने 'लव जेहाद' के बारे में अपनी कोई राय न बना ली हो ।
https://www.telegraphindia.com/.../story_168199.jsp...
Of Akhila and Hadiya
At first glance, the special leave petition before the Supreme Court of India in the matter of Shafin Jahan…
TELEGRAPHINDIA.COM
Arun Maheshwari Sheetal P Singh आप मामले की जिन तफसीलों का जिक्र तर रहे हैं, वैसी नोटिंग्स के बिना तो मामला ही नहीं बनता । ये सब फ़ौजदारी के विषय है । वादी प्रतिवादी के वक़ील अगर इतनी बातें नहीं कहेंगे तो कहेंगे क्या ? यह सामान्य ज्ञान की चीज है ।
इस मामले का दूसरा पहलू, जो खतरनाक विचारधारात्मक रुझान की ओर संकेत करता है , वह 'लव जिहाद' का पहलू हैं । हत्या षड़यंत्र के अपराधियों को फाँसी दो, जेल में सज़ाओं । लेकिन इससे हत्यारे की शादी तोड़ देने का मसला विचार का विषय कैसे बन सकता है ।
मानिनि चटर्जी के इस लेख से शायद आपको कुछ समझ में आयें, यदि आपने 'लव जेहाद' के बारे में अपनी कोई राय न बना ली हो ।
Sheetal P Singh मैंने द वायर और मानिनी दोनों के लेख पढ़े । पर आप तीनों ने बुनियादी डाक्यूमेंट (केरल हाई कोर्ट का आदेश)ही नहीं पढ़ा यह शर्मिंदगी की बात है ।
मैंने जो लिखा है वह सिर्फ तथ्य भर है , आपके पास इनको गलत साबित करते तथ्य हों तो दें ।
गल्प में मेरा यक़ीन नहीं है ।
Sheetal P Singh क्यूँकि आप पढ़ते तो पाते कि यह कहीं भी लव जिहाद का मामला ही नहीं है । पक्ष विपक्ष किसी के दर्जनों एफेडेविट या बहस में यह शब्द तक नहीं आया ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh लव जिहाद अपने में विषय नहीं है, एक लड़की को जो बालिग़ है, उसे फँसा कर शादी करने का
Sheetal P Singh Arun Maheshwari आपका क्या जवाब दूँ । मैं ५८ वर्ष का हूँ आपको लगता है कि मुझे क ख ग घ फिर पढ़ना चाहिये ?
Arun Maheshwari Sheetal P Singh और, सुप्रीम कोर्ट किस ठौर बैठेगा, अभी कहना मुश्किल है । लेकिन 'हिदुत्व' को एक जीवन पद्धति कहने वाला भी यही सुप्रीम कोर्ट है । इसीलिये इस ख़तरे की आशंका पर चिंतित न होने का कोई कारण नहीं है ।
Sheetal P Singh यह शादी का मामला था ही नहीं ! शादी का मामला आख़री पेशी पर बना । तीस पेशियों और दो दो पिटीशनों में यह दूसरा मामला था । फिर अनुरोध करूँगा कि अखबारी कतरनों की जगह सौ पृष्ठ से ज्यादा में पसरा बहुत अच्छी साफ़ भाषा में लिखा केरल हाईकोर्ट का जजमेंट पढ़ लें और उसे किसी पत्रकार की सौ लाइनों से खारिज न करें ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh क्या कहा जाए । आरएसएस के हमारे अपने अनुभव और अध्ययन भी बताते हैं कि कैसे धोखे से सम्मानित लोगों और पीठों की सम्मतियों को वसूल करके उनकी राजनीति ( संस्कृति) का कारोबार चलता रहा है ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh अदालतों के पेपर बुक्स में सारा कचरा भरा होता है ।
Sheetal P Singh
http://www.livelaw.in/kerala-hc-nullifies-marriage-muslim-convert-fathers-habeas-corpus-petition-read-judgment/
http://www.livelaw.in/kerala-hc-nullifies-marriage.../
Kerala HC Nullifies Marriage Of Muslim Convert In Her Father’s…
LIVELAW.IN
Sheetal P Singh Arun Maheshwari ऐसे सरलीकरण पर मैं क्या कह सकता हूँ ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh इसमें अदालत ने एक बालिग़ लड़की को उसकी शादी को खारिज करके सुरक्षित हाथ में सौंपने का फैसला सुनाया है ! ' लव जेहादी' तो यही करते हैं ।
"This court, exercising parens patriae jurisdiction, is concerned with the welfare of a girl of her age. The duty cast on the court to ensure the safety of at least the girls who are brought before it can be discharged only by ensuring that Akhila is in safe hands."
Sheetal P Singh Arun Maheshwari आप इधर उधर के टुकड़े से बहस में विजयी होने के लिये स्वतंत्र हैं , बधाई । मैंने जजमेंट कमेंट में लगा दिया है । जिसकी रुचि होगी पढ़ लेगा और विवेक होगा तो सही गलत जान लेगा ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh यह 'इधर उधर' का कमेंट नहीं, सौ पेज के फैसले का मुख्य आपरेटिंग पार्ट , अर्थात सार तत्व है ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh मुश्किल है कि जजमेंट को पढ़ना भी एक खास प्रकार की योग्यता की माँग करता है । जो भी बातें कही जा रही है, वे सब जजमेंट पर ही आधारित है , उससे बाहर की नहीं है । फिर भी आप बेधड़क इन्हें 'शर्मनाक' बता दे रहे है ।
Sheetal P Singh Arun Maheshwari मैंने तो अयोग्यता स्वीकार कर ली सर ! आपके पास तो मानिनी चटर्जी / द वायर का रेफरेन्स भी है । आप जीते सर ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh हमारे लिये जीत हार का सवाल ही नहीं है । हमारी नज़र दूसरी ओर है - धर्म-निरपेक्षता के दायरे में 'तर्क और विवेक के पागलपन' के जरिये भी आरएसएस के एजेंडा के अनुप्रवेश की ओर । अन्यथा मैं कत्तई इस बहस में नहीं पड़ता ।
Arun Maheshwari Sheetal P Singh आपकी जानकारी के लिये ही सिर्फ और एक बात कहना चाहता हूँ । आपने हमें पढ़ने के लिये केरल हाईकोर्ट के सौ पेज के जजमेंट को रैफर कर दिया । क्या आप जानते है कि सुप्रीम कोर्ट के जज या किसी भी उच्चतर अदालत के जज भी नीचे की अदालत की भारी-भरकम पूरी राय को नहीं पढ़ा करते हैं । इस काम में उनकी मदद के लिये ही अदालत के सीनियर कौंसिल हुआ करते हैं जो निचली अदालत की राय के पोथों में से मुद्दे की बात को उच्चतर अदालत के सामने रखते हैं । इसके बाद उच्चतर अदालत अपने विवेक के अनुसार मामले को आगे बढ़ाती है ।
इसीलिये जब केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते वक़्त प्रतिवादी पक्ष के साथ ही सरकार के पक्ष के कौंसिल की ब्रीफ़ अदालत के सामने जाती है, वह अदालत के निर्णय की दिशा को तय करने में एक प्रमुख भूमिका अदा करती है । ऐसे मामलों में, जिसके फ़ौजदारी चरित्र के कारण किसी तरह से राज्य उसमें शामिल हो जाता है, सरकारी पक्ष की एक भूमिका हो जाती है । और यहीं पर आकर हम जैसों या किसी भी सच्चे पत्रकार की शक की सुईं अटक जाती है । क्योंकि मामले को सरकार के विचारधारात्मक रुझान के अनुसार एक खास रंगत दिये जाने का डर बना रहता है ।
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