आज मुरादाबाद में मोदी जी के भाषण को बहुत ध्यान से सुन रहा था। उनकी एक-एक भाव-भंगिमा को देख रहा था। सोच रहा था कितनी परस्पर-विरोधी चीजों का पुंज है यह व्यक्ति।
हम सब जानते हैं, बड़े इजारेदार पूंजीपति तो इनकी आस्था के विषय है। अन्यथा मुकेश अंबानी ने उनकी पीठ पर हाथ न रखा होता। और मध्यवर्ग पूंजीवाद का आधार होने के नाते, मोदी जी अपने को उसका प्रतिनिधि मानते हैं । लेकिन जिसे मध्यवर्ग की राजनीतिक शक्ति कहते हैं, विवेक और बुद्धि के विचारों की शक्ति, उसके प्रति वैर-भाव भी रखते हैं। मध्यवर्ग रहे, लेकिन अपनी ऐतिहासिक राजनीतिक-सामाजिक भूमिका की विशिष्टता को छोड़ कर, मोदी-मोदी का जाप करने वाली भक्तों की फौज के रूप में। मोदी जी पूंजीवाद के चौखटे में किसानों, दलितों की सेवा करना चाहते हैं और इस चक्कर में कभी-कभी ऐसी मुद्राएं भी अपना लेते हैं जिन्हें देख कर वामपंथियों का भी सर चकराने लगे। और, सर्वोपरि, वे भारत के लंपट राजनीतिज्ञों के ही भाजपा नामक एक गिरोह के प्रतिनिधि है, जो हमेशा सत्ता में आकर राजकोष से अपने लिये लौटरियां निकलवाने की फिराक में रहा करते हैं।
जाहिर है, इतनी सारी परस्पर-विरोधी भूमिकाओं को निभाने वाले मोदी जी की सरकार भी उतनी ही परस्पर-विरोधिताओं से भरी होगी। वह हमेशा अंधेरे में तीर चलाने के लिये अभिशप्त है। कभी इस ओर दौड़ती है, कभी उस ओर। कभी इस वर्ग को पकड़ती है, तो कभी उसको। मोदी जी सबके हितैषी बनना चाहते हैं, जो मुमकिन नहीं है। इसीलिये वे एक प्रकार से समूचे भारत को चुरा कर उसे फिर से भारतवासियों को लौटाने और सबको कृत-कृतार्थ करने का खेल खेल रहे हैं।
नोटबंदी से उन्होंने देश भर के लोगों के धन पर दिन-दहाड़े डाका डाल कर उन्हें भिखारियों की तरह बैंकों के सामने कतार में खड़ा कर दिया और अब किश्तों में उनके धन को उन्हें दे रहे हैं; अपनी दयालुता की डुगडुगी बजवा रहे हैं। गौर करने की बात यह है कि भारत को इस प्रकार अपने अधीन करके फिर उसे भारत को ही लौटाने के इस मायावी लेन-देन के बीच हम देख रहे हैं कि कमीशन के तौर पर कुछ प्रतिशत पेटिएम, रिलायंस, अडानी, माल्या की तरह के लोगों और कंपनियों और देशी-विदेशी बैंकों की जेबों में अलग से पहुंचा दिया जा रहा है।
यह और कुछ नहीं, बाज की तरह ऊंची उड़ान का धोखा देने वाले एक कौंवे की छुद्र उड़ान जैसा है, जो अंत में अपने चंद खैर-ख्वाहों की जेब गर्म करने में ही अपनी बहादुरी समझता है। मुरादाबाद में भारत का प्रधानमंत्री लोगों को खुले आम अनैतिकता का पाठ पढ़ा रहा था। वह आम लोगों को कह रहा था कि दूसरों के रुपये मार कर बैठ जाओ। ‘बड़े लोग अब गरीबों के पैरों पर गिरे हुए हैं !’लाईन में खड़े लोगों का, और आम भारतवासियों का मजाक उड़ा रहे थे। कह रहे थे अब तो भिखारी भी कार्ड से भीख लेने लगा है।
मुरादाबाद के भाषण में मोदी जी के ये सारे रूप एकदम साफ दिखाई दे रहे थे। उनमें समा रहा डर भी बोल रहा था, जब उन्होंने अपनी ‘फकीरी’ की बात कहके कभी भी झोला उठा कर चल देने की बात कही।
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