आज के ‘आनंदबाजार पत्रिका’ में यह व्यंग्य छपा है। लेखक का नाम नहीं है, अर्थात एक प्रकार का संपादकीय ही है। इसकी तेज धार को देख कर अपने को रोक नहीं पाया। तत्काल इसका अनुवाद करने बैठ गया। यहां मित्रों से साझा कर रहा हूं। मूल का लिंक भी दे रहा हूं -
बल है, बुद्धि नहीं
सचमुच तबियत ठीक नहीं लग रही। इतने दिनों से देश के शीर्ष पर बैठा हूं , कितनी लंबी-चौड़ी हांक कर सत्ता पर आया हूं, लेकिन इतिहास में नाम दर्ज कराने लायक क्या किया ? राजपथ पर भुजंग आसन का डिसप्ले किया, सोचा कि चारों दिशाओं से योग के प्रदर्शन के निमंत्रण मिलेंगे, कार्नेगी हॉल में हलासन, आइफल टावर में शीर्षासन। अरे! लोगों ने इस महान भारतीय परंपरा के सेल की ओर ध्यान ही नहीं दिया। कई बार सोचा, पाकिस्तान पर अटैक करूं। लेकिन वह भी कोई कमजोर बच्चा तो है नहीं, बख्शेगा नहीं, और, आज के समय में युद्ध छेड़ने पर दुनिया में किसी को चेहरा दिखाना भी नामुमकिन हो जायेगा। ऊपर से उसके बगल में चीन है, धो डालेगा। फेसबुक के लोग तो लड़ाई करने जायेंगे नहीं। फिर क्या करें ? सोचते-सोचते अचानक दिमाग में एक कौंध उठी। कामिक्स के हीरों का जैसे सही समय में बल्ब जल जाता है। मैं अपने को क्यों सता रहा हूं? टेंशन लेने का नहीं, देने का होता है। जो मुझे सर पर लेकर नाच नहीं रहे है, उन सब मूर्खों को क्यों न एक बांस दिया जाए ? समुद्र से हिमालय तक 135 करोड़ लोगों में त्राहि-त्राहि मच जाए, लोग पाई-पाई के लिये दौड़ें और मैं स्टैडियम में बैठा मजा लूं, पॉपकौर्न खाऊं ! भारत में बस एक ही बात रह जाए, कोहली आठ सौ रन भी बना ले तो कोई ध्यान न दें, महफिलों में, सपनों के मोनोलाग में एक ही बात पर परेशान रहे ! चेलों ने बताया, सर, लोग तो दिन भर सिर्फ रुपयों की चिंता में रहते हैं, रुपये की दुनिया में एक बर्बादी ला दो। सबके जीवन में भूचाल आ जायेगा। हम उसे क्रांति बतायेंगे। काफी देर तक ठुक-ठुक के बाद यह हुआ छक्का !
मुश्किल यह है कि पीटने वाले प्लेयर को तालियां तो मिलती है, लेकिन एक्सपर्ट लोग उसके बैट और पैड के बीच की दूरी को देख लेते हैं। बता देते हैं कि उसमें बुद्धि नहीं है, इसीलिये ऐसा साहस है। जैसे अमत्र्य सेन, कौशिक बसु, और दूसरे आलतू-फालतू लोग बोल रहे हैं। लेकिन उससे क्या आता-जाता है, क्योंकि पब्लिक उनकी बातों का एक शब्द भी नहीं समझती है। इस देश की पब्लिक सिर्फ नौटंकी का खेल समझती है। इसीलिये जापान से लौट कर एक सभा में हां-हां करके रो दिया। अरे भाई, और कुछ नहीं कर सकता तो एक्टिंग तो ऊंचे दर्जे की हो। हमारे मूर्ख देशवासियों ने मेरा मान रखा है। वे सोच रहे हैं कि आदमी जब कष्ट दे रहा है, तब भगवान जरूर मिलेगा। हाहा, देश को जितना देखता हूं, हंसी रोक नहीं पाता हूं। इन्होंने सफरिंग को कितने गर्व से अपनाया है, हांफते हुए रोगी तक को महत्व का अहसास करा रहे हैं। एटीएम की विशाल लाईन में बिना खाये, धूप में बेहाश हो कर गिर रहे हैं लेकिन मुझे गरियाना तो दूर, कह रहे हैं, आदमी में दम है ! एक बार भी मन में यह सवाल नहीं आता कि दम है, लेकिन बुद्धि नहीं है।
असल में मैं पल्स समझ गया हूं। ये लोग सत्तर-अस्सी के जमाने का हिंदी सिनेमा चाहते हैं। वहां लास्ट दिन बड़ा आदमी मार खाता और गरीब जीत जाता था। मैंने अभी इतना सा कहा है, बड़े लोगों का सर्वनाश कर दिया। बस मैजोरिटी सैडिज्म एकदम उत्तेजित हो गया है। उन्होंने सोचा कि मेरी नाक कट रही है, कटे, लेकिन बगल के मकान के उस ऊंची नाक वाले का तो सर्वनाश हो रहा है! बहुत अच्छा! दे धक्का ! मैं नौकर को महीना नहीं दे पा रहा हूं। दुकान पर मक्खियां उड़ा रहा हूं। अपना अनाज घर नहीं ला पा रहा हूं। अतिथियों को निंबू और नमक खिला कर बेटी की शादी करनी पड़ रही है। आलू-परवल का बाजार मेरी पहुंच के बाहर है। रोज का जीवन ही नरक हो गया है। कोई परवाह नहीं। अमुक डाक्टर ने छत पर पांच सौ का नोट जलाया है। तमुक वकील तो फंदे से लटक जाना चाहता था लेकिन कैश नहीं होने के कारण अच्छी रस्सी नहीं खरीद पाया और वह फटाक से टूट गई।
मैंने हड़बड़ी में एक निर्णय सुना दिया लेकिन उस पर अमल के बारे में मुझे रत्ती भर ज्ञान नहीं है। पहले पचास दिन मांगे कि सब ठीक कर दूंगा, लेकिन अब मेरा वित्त मंत्री अंगुली के इशारे से बोल रहा है, थोड़ा, बस नौ महीनों का समय लगेगा। नाटक-भिक्षुक जनता सब कुछ ओवरलुक कर रही है। यही तो मेरी रीडिंग थी। बाजार में नगदी कम हो जाने पर क्या नुकसान है, इस देश के लाखो-करोड़ों लोग कैश के भरोसे, रोज कमाते हैं, रोज खाते हैं। पेटीएम में दे रहा हूं, कहने पर फटी आंखों से ताकने लगते हैं। उनका क्या होगा, कारोबार कम होने पर नीचे तेजी से छंटनी होगी, उनमें वह खुद भी हो सकता है, आधे लोगों को इन सबकी जरा भी चिंता नहीं है। वे तो क्लाइमेक्स के जोश में जिंदा है। उनको शाहरुख की फिल्म से क्या मतलब, क्योंकि वे तो खुद को सुपरहिट ईस्टमैनकलर में देखना चाहते हैं। उस सीन में एक दिन धनकुबेरों की मर्सीडीज पर कौवा बीट करेगा। और भारत का राष्ट्रीय खेल होगा - एटीएम-एटीएम।
सोचता हूं, दो हजार का नोट बंद कर दूं। फिर सोचता हूं, सोना पर पाबंदी लगाऊ ताकि लॉकर रूमों तक हाहाकार फैल जाए। भारी लत सी लग गई है। ट्रायल-एरर पद्धति से अमरता की ओर बढ़ रहा हूं, पूरे देश में मेरे गिनिपिग किलबिला रहे हैं। आज लैब में जाकर इसे यह जहर दूं तो कल उसे लटका दूं। दूसरे गुण्डे तो ऐसे ही फुंफकारते हैं, ऐसा स्वीपिंग स्मैश क्या कोई दिखा पाया है, जिसमें से लगातार मूर्खता, अहंकार, सस्ती लोकप्रियता की चमक के साथ ही निष्ठुरता की आग निकल रही है। हां, सब नेता तो अपनी चोंच दिखाते हैं, मैंने अपना बल दिखाया है।
http://www.anandabazar.com/editorial/country-leader-has-good-decisive-power-but-no-planning-1.525770
बल है, बुद्धि नहीं
सचमुच तबियत ठीक नहीं लग रही। इतने दिनों से देश के शीर्ष पर बैठा हूं , कितनी लंबी-चौड़ी हांक कर सत्ता पर आया हूं, लेकिन इतिहास में नाम दर्ज कराने लायक क्या किया ? राजपथ पर भुजंग आसन का डिसप्ले किया, सोचा कि चारों दिशाओं से योग के प्रदर्शन के निमंत्रण मिलेंगे, कार्नेगी हॉल में हलासन, आइफल टावर में शीर्षासन। अरे! लोगों ने इस महान भारतीय परंपरा के सेल की ओर ध्यान ही नहीं दिया। कई बार सोचा, पाकिस्तान पर अटैक करूं। लेकिन वह भी कोई कमजोर बच्चा तो है नहीं, बख्शेगा नहीं, और, आज के समय में युद्ध छेड़ने पर दुनिया में किसी को चेहरा दिखाना भी नामुमकिन हो जायेगा। ऊपर से उसके बगल में चीन है, धो डालेगा। फेसबुक के लोग तो लड़ाई करने जायेंगे नहीं। फिर क्या करें ? सोचते-सोचते अचानक दिमाग में एक कौंध उठी। कामिक्स के हीरों का जैसे सही समय में बल्ब जल जाता है। मैं अपने को क्यों सता रहा हूं? टेंशन लेने का नहीं, देने का होता है। जो मुझे सर पर लेकर नाच नहीं रहे है, उन सब मूर्खों को क्यों न एक बांस दिया जाए ? समुद्र से हिमालय तक 135 करोड़ लोगों में त्राहि-त्राहि मच जाए, लोग पाई-पाई के लिये दौड़ें और मैं स्टैडियम में बैठा मजा लूं, पॉपकौर्न खाऊं ! भारत में बस एक ही बात रह जाए, कोहली आठ सौ रन भी बना ले तो कोई ध्यान न दें, महफिलों में, सपनों के मोनोलाग में एक ही बात पर परेशान रहे ! चेलों ने बताया, सर, लोग तो दिन भर सिर्फ रुपयों की चिंता में रहते हैं, रुपये की दुनिया में एक बर्बादी ला दो। सबके जीवन में भूचाल आ जायेगा। हम उसे क्रांति बतायेंगे। काफी देर तक ठुक-ठुक के बाद यह हुआ छक्का !
मुश्किल यह है कि पीटने वाले प्लेयर को तालियां तो मिलती है, लेकिन एक्सपर्ट लोग उसके बैट और पैड के बीच की दूरी को देख लेते हैं। बता देते हैं कि उसमें बुद्धि नहीं है, इसीलिये ऐसा साहस है। जैसे अमत्र्य सेन, कौशिक बसु, और दूसरे आलतू-फालतू लोग बोल रहे हैं। लेकिन उससे क्या आता-जाता है, क्योंकि पब्लिक उनकी बातों का एक शब्द भी नहीं समझती है। इस देश की पब्लिक सिर्फ नौटंकी का खेल समझती है। इसीलिये जापान से लौट कर एक सभा में हां-हां करके रो दिया। अरे भाई, और कुछ नहीं कर सकता तो एक्टिंग तो ऊंचे दर्जे की हो। हमारे मूर्ख देशवासियों ने मेरा मान रखा है। वे सोच रहे हैं कि आदमी जब कष्ट दे रहा है, तब भगवान जरूर मिलेगा। हाहा, देश को जितना देखता हूं, हंसी रोक नहीं पाता हूं। इन्होंने सफरिंग को कितने गर्व से अपनाया है, हांफते हुए रोगी तक को महत्व का अहसास करा रहे हैं। एटीएम की विशाल लाईन में बिना खाये, धूप में बेहाश हो कर गिर रहे हैं लेकिन मुझे गरियाना तो दूर, कह रहे हैं, आदमी में दम है ! एक बार भी मन में यह सवाल नहीं आता कि दम है, लेकिन बुद्धि नहीं है।
असल में मैं पल्स समझ गया हूं। ये लोग सत्तर-अस्सी के जमाने का हिंदी सिनेमा चाहते हैं। वहां लास्ट दिन बड़ा आदमी मार खाता और गरीब जीत जाता था। मैंने अभी इतना सा कहा है, बड़े लोगों का सर्वनाश कर दिया। बस मैजोरिटी सैडिज्म एकदम उत्तेजित हो गया है। उन्होंने सोचा कि मेरी नाक कट रही है, कटे, लेकिन बगल के मकान के उस ऊंची नाक वाले का तो सर्वनाश हो रहा है! बहुत अच्छा! दे धक्का ! मैं नौकर को महीना नहीं दे पा रहा हूं। दुकान पर मक्खियां उड़ा रहा हूं। अपना अनाज घर नहीं ला पा रहा हूं। अतिथियों को निंबू और नमक खिला कर बेटी की शादी करनी पड़ रही है। आलू-परवल का बाजार मेरी पहुंच के बाहर है। रोज का जीवन ही नरक हो गया है। कोई परवाह नहीं। अमुक डाक्टर ने छत पर पांच सौ का नोट जलाया है। तमुक वकील तो फंदे से लटक जाना चाहता था लेकिन कैश नहीं होने के कारण अच्छी रस्सी नहीं खरीद पाया और वह फटाक से टूट गई।
मैंने हड़बड़ी में एक निर्णय सुना दिया लेकिन उस पर अमल के बारे में मुझे रत्ती भर ज्ञान नहीं है। पहले पचास दिन मांगे कि सब ठीक कर दूंगा, लेकिन अब मेरा वित्त मंत्री अंगुली के इशारे से बोल रहा है, थोड़ा, बस नौ महीनों का समय लगेगा। नाटक-भिक्षुक जनता सब कुछ ओवरलुक कर रही है। यही तो मेरी रीडिंग थी। बाजार में नगदी कम हो जाने पर क्या नुकसान है, इस देश के लाखो-करोड़ों लोग कैश के भरोसे, रोज कमाते हैं, रोज खाते हैं। पेटीएम में दे रहा हूं, कहने पर फटी आंखों से ताकने लगते हैं। उनका क्या होगा, कारोबार कम होने पर नीचे तेजी से छंटनी होगी, उनमें वह खुद भी हो सकता है, आधे लोगों को इन सबकी जरा भी चिंता नहीं है। वे तो क्लाइमेक्स के जोश में जिंदा है। उनको शाहरुख की फिल्म से क्या मतलब, क्योंकि वे तो खुद को सुपरहिट ईस्टमैनकलर में देखना चाहते हैं। उस सीन में एक दिन धनकुबेरों की मर्सीडीज पर कौवा बीट करेगा। और भारत का राष्ट्रीय खेल होगा - एटीएम-एटीएम।
सोचता हूं, दो हजार का नोट बंद कर दूं। फिर सोचता हूं, सोना पर पाबंदी लगाऊ ताकि लॉकर रूमों तक हाहाकार फैल जाए। भारी लत सी लग गई है। ट्रायल-एरर पद्धति से अमरता की ओर बढ़ रहा हूं, पूरे देश में मेरे गिनिपिग किलबिला रहे हैं। आज लैब में जाकर इसे यह जहर दूं तो कल उसे लटका दूं। दूसरे गुण्डे तो ऐसे ही फुंफकारते हैं, ऐसा स्वीपिंग स्मैश क्या कोई दिखा पाया है, जिसमें से लगातार मूर्खता, अहंकार, सस्ती लोकप्रियता की चमक के साथ ही निष्ठुरता की आग निकल रही है। हां, सब नेता तो अपनी चोंच दिखाते हैं, मैंने अपना बल दिखाया है।
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