गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

कार्ड विक्रेता मोदी-जेटली कंपनी क्या प्लास्टिक मनि वाली काली अर्थ-व्यवस्था की प्रणेता साबित होगी ?


-अरुण माहेश्वरी

कालाधन की आड़ में मोदी-जेटली कंपनी कार्ड के रूप में प्लास्टिक मनि की बिक्री के एक नये वित्तीय कारोबार को बढ़ावा रहे हैं , इस बात पर अब कोई पर्दादारी नहीं है ।
सब जानते हैं, इस कथित प्लास्टिक मनि के कारोबार पर भारत के रिज़र्व बैंक का पूरा नियंत्रण नहीं है । राष्ट्रीयकृत बैंकों के अलावा देशी-विदेशी निजी बैंक ही नहीं, बल्कि पेटीएम की तरह की ग़ैर-बैंकिंग कंपनियाँ भी इस प्लास्टिक मनि के कारोबार में ज़ोर-शोर से लगी हुई है । अन्य बैंकों की क्लियरिंग के काम में एक बड़ी भूमिका रिज़र्व बैंक की, अर्थात भारत सरकार की होती है, लेकिन इन ग़ैर-बैंकिंग संस्थाओं के कारोबार में क़ानूनन कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता । इनमें प्रत्येक ग्राहक अपने रुपये अलग से जमा कराता है और ये कंपनियाँ अपने पास जमा उन रुपयों को प्लास्टिक मनि के ज़रिये ख़र्च करने की सेवाएँ देती है ।

चूँकि अभी इन बड़ी कंपनियों के पास क्लियरिंग के सर्वर की इतनी बड़ी सुविधा उपलब्ध नहीं है कि वे खुद स्वतंत्र रूप में इन सारे लेन-देन को नियंत्रित कर सके, इसलिये ये अपने काम में बैंकों की मदद जरूर लेती है, लेकिन बैंक की ऐसी मध्यस्थता के लिये इन पर कोई क़ानूनी बाध्यता नहीं है । बाज़ार में प्लास्टिक मनि चलाने वाली कई छोटी-छोटी ऐसी निजी कंपनियाँ भी है, जो सीमित लोगों के बीच काम करती है और अपने काम में बैंकिंग प्रणाली से कोई मदद नहीं लेती है ।

ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में पेटीएम की तरह की निजी कंपनियाँ रिज़र्व बैंक की प्रणाली से पूरी तरह स्वतंत्र रह कर अपनी खुद की पूरी क्लियरिंग प्रणाली तैयार कर लें तो अभी के क़ानून के अनुसार शायद उन्हें कोई रोक नहीं सकता है ।

इस प्रकार मोदी-जेटली कंपनी भारत के रिज़र्व बैंक के समानांतर एक और मुद्रा प्रणाली के विकास का नया रास्ता खोल रही है, जो सरकारी नियंत्रण के बाहर होने के कारण हर प्रकार की घपलेबाजी का सबसे बड़ा शरण-स्थल बन सकता है । इससे भविष्य में आतंकवादियों की मदद करने वाली प्लास्टिक मनि तक के संचालन की नई कंपनियाँ शुरू हो जाए को कोई अचरज की बात नहीं होगी ।

इसप्रकार, प्लास्टिक मनि के विक्रेता की भूमिका में मोदी-जेटली कंपनी एक समानांतर प्लास्टिक मनि वाली काली अर्थ-व्यवस्था के उद्भव का काम करने वाली कंपनी साबित हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी । देश के अभी तक के क़ानून में ऐसी काली अर्थ-व्यवस्था के उदय को रोकने की कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं दिखाई देती है । 

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