मंगलवार, 16 मई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (12)

.अरुण माहेश्वरी

कवि मार्क्स 
(प्यार जेनी है, प्यार का नाम जेनी है)

मार्क्स सिर्फ अठारह साल के थे। जेनी से मुहब्बत और उससे दूर बर्लिन में रहने की मजबूरी। विरह की दीवानगी ने कवि मार्क्स को जन्म दिया। अपने पिता को उन्होंने लिखा ही था, ‘‘ ऐसे में मेरे सबसे पहले विषय के रूप में गीत का होना स्वाभाविक थाए मेरा सबसे प्रिय और तात्कालिक विषय।...मेरा स्वर्ग, मेरी कला, वैसे ही मेरे से दूर की दुनिया हो गये जितना दूर मेरा प्यार था। हर यथार्थ चीज धुंधली हो गई और जो धुंधली थी, उनकी कोई रेखा ही नहीं रही।”

दो साल में जेनी के लिये कविताओं के तीन खंड लिखे जिनमें दो का शीर्षक था - ‘प्यार की किताब’ (Book of love) एक थी ‘गीतों की किताब’ (Book of songs), एक संकलन पिता को समर्पित किया, ‘कविता की किताब’ (Book of verse) जिसमें एक व्यंग्यमूलक उपन्यास ‘वृश्चिक और फेलिक्स’ (Scorpion and Felix) के कुछ अंश और इटली के पर्वतीय इलाके की पृष्ठभूमि में लिखे गये एक दुखांत नाटक उनानम (oulanem) के कुछ अंक भी शामिल है।

साहित्य के शोधकर्ताओं ने मार्क्स की इन कविताओं की शैली और कथ्य पर काफी खोज की है। किसी ने इनमें युवा शिलर के प्रभाव को देखा है तो कोई गेटे के काव्य-नाटकों के प्रभाव को। हाइने के व्यंग्यात्मक यात्रा संस्मरणों के प्रभावों की भी इन कविताओं के संदर्भ में चर्चा की गई है। (देखें - S S Prawer, Karl Marx and World literature, Oxford, Clarendon Press, 1976 ; Mikhail Lifshtz & The Philosophy of Art of Karl marx, London, Pluto Press, 1973 ; P. Demetz, Marx and Engels and the poets : Origin of Marxist Literary Criticism, University of Chicago Press, 1967, 1959)

मार्क्स जेनी के प्रति कितने संवेदनशील थे, इसका एक अनुमान उनके नाम उनकी बड़ी बहन सोफी की उन चंद पंक्तियों से भी लगता है, जिसे उन्होंने पिता के 28 दिसंबर 1836 के उस पत्र के अंत में लिखा था, जिसमें पिता भी जेनी से हुई अपनी बातचीत के बारे में बताया है। इसमें वे लिखती है - ‘‘प्रिय कार्ल, तुम्हारे अंतिम पत्र ने मुझे दुखी करके रुला दिया ; तुमने कैसे यह सोच लिया कि मैं तुम्हें तुम्हारी जेनी की खबर देने में कोई कोताही करूंगी ? मैं सिर्फ तुम दोनों के बारे में सपना कल्पना करती और सोचती हूं । जेनी तुमसे प्यार करती है ; यदि उम्र में फर्क उसे चिंतित कर रही है तो वह सिर्फ उसके माता-पिता के कारण। वह अब धीरे-धीरे अपने को तैयार कर लेगी। इसके बाद तुम खुद उनको लिखना; उनकी भी तुम्हारे बारे में ऊंची राय है। जेनी अक्सर हमारे यहां आती रहती है। कल वह हमारे साथ थी और तुम्हारी कविताओं को पाकर खुशी और दर्द के आंसू बहा रही थी।’’ (MECW, vol.1, page – 666)


मार्क्स की कविताओं में जाने-पहचाने रूमानी बिंबों और आख्यानों के जरिये प्रेम की अमरता के गीत गाये गये थे। इसमें एक ऊर्जस्वित प्रेमी नायक को साफ देखा जा सकता है। ‘जेनी के लिये’ लिखी गई उनकी इस कविता को देखिये, जिसका हिंदी के कवि सोमदत्त ने अनुवाद किया है:






‘‘जेनी ! दिक करने को तुम पूछ सकती हो
सबोधित करता हूँ गीत क्यों जेनी को
जबकि तुम्हारी ही ख़ातिर होती मेरी धड़कन तेज़
जबकि कलपते हैं बस तुम्हारे लिए मेरे गीत
जबकि तुम, बस तुम्हीं, उन्हें उड़ान दे पाती हो
जनकि हर अक्षर से फूटता हो तुम्हारा नाम
जबकि स्वर.स्वर को देती हो माधुर्य तुम्हीं
जबकि साँस.साँस निछावर हो अपनी देवी पर !
इसलिए कि अद्‌भुत्त मिठास से पगा है यह प्यारा नाम
और कहती है कितना.कुछ मुझसे उसकी लयकारियाँ
इतनी परिपूर्ण, इतनी सुरीली उसकी ध्वनियाँ
ठीक वैसे, जैसे कहीं दूर, आत्माओं की गूँजती स्वर.वलियाँ
मानो कोई विस्मयजनक अलौकिक सत्तानुभूति
मानो राग कोई स्वर्ण.तारों के सितार पर ! “ (1836)

इसी गीत के दूसरे भाग की अंतिम पंक्ति है - ‘प्यार जेनी है, प्यार का नाम जेनी है।’

क्रमश:

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