-अरुण माहेश्वरी
सिर्फ और सिर्फ प्रचार के बल पर टिकी हुई एक चरम विफल सरकार के लिये आम लोगों को बरगलाने का सबसे आजमाया हुआ तरीका है आंकड़ों की हेरा-फेरी। किसी भी अकर्मण्य सरकार का ‘हार्डवर्क’!
बच्चा जब शुरू में गिनती सीखता है, वही उसकी अमूर्त मानसिक गतिविधियों का पहला कदम होता है - शुद्ध ऐंद्रिक बोध से एक प्रकार के अमूर्त सोच की दिशा में उसका पहला कदम। राजनीति में आम लोगों के लिये आंकड़ों की भी कुछ-कुछ ऐसी ही, निहायत प्राथमिक स्तर के राजनीतिक ज्ञान की भूमिका होती है। इसमें धांधली करके राजनीतिक तौर पर अबोध लोगों के बीच में आराम से राजनीतिक विभ्रम पैदा किये जा सकते हैं।
शुद्ध रूप से विभ्रमों और प्रचार की माया पर टिकी मोदी सरकार भ्रमों को पैदा करने के इस अचूक हथियार का प्रयोग न करें, यह कैसे मुमकिन हो सकता है !
नोटबंदी के काल में जब सभी देख रहे थे कि असंख्य कल-कारखाने बंद हो रहे हैं, लाखों मजदूर अपने गांवों में लौटने के लिये मजबूर हो रहे हैं और किसानों को उनकी फसलों का दाम नहीं मिल रहा, वे बुवाई के काम को समय से शुरू नहीं कर पायें, तभी यूपी के चुनाव के आखिरी दौर के बीच आंकड़ों की हेरा-फेरी करके इस सरकार ने घोषित कर दिया था कि नोटबंदी से जीडीपी में कोई खास गिरावट नहीं आई है।
उस समय अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों की इनकी इस बाजीगरी का पर्दाफाश किया था और बताया था कि किस प्रकार केंद्रीय सांख्यिकी विभाग (सीएसओ) के 2015-16 के इसी काल के आंकड़ों को बदल कर जीडीपी में वृद्धि की जो वास्तविक दर 6.2 प्रतिशत थी, उसे 7.2 प्रतिशत दिखा दिया गया है। और प्रधानमंत्री रटने लगे कि यह ‘हार्डवर्क’ का कमाल है, जो हारवर्ड वाले नहीं जानते !
अब जब इस सरकार के तीन साल पूरे हो रहे है और इसके निकम्मेपन पर चर्चा होगी, फिर एक बार भारत में औद्योगिक विकास में वृद्धि के आंकड़ों के मामले में वही खेल खेला गया है। सीएसओ ने कल जारी किये गये अपने आंकड़ों से बताया है कि 2016-17 में भारत में 5 प्रतिशत की दर से औद्योगिक विकास हुआ है जिसे पिछले पांच सालों में सबसे तेज विकास की दर कहा जा सकता है।
आज के “टेलिग्राफ“ ने फिर एक बार आंकड़ों में हेरा-फेरी के इस खेल का पर्दाफाश करते हुए बताया है कि यदि 2004-05 के आंकड़ों को आधार बना कर कूता जाए तो 2016-17 में औद्योगिक विकास की दर बमुश्किल 0.7 प्रतिशत रही है जो पिछले तीन साल में सबसे कम है। 0.7 प्रतिशत को बढ़ा कर 5 प्रतिशत कर देने के इस खेल के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले जहां इस वृद्धि को मापने में 620 चीजों की उत्पादन-क्षमता में विकास को शामिल किया जाता था, वहीं अब उसकी जगह 809 चीजों की उत्पादन-क्षमता को हिसाब में लिया गया है, जिसका स्वाभाविक असर है कि औद्योगिक विकास की दर बढ़ी हुई दिखाई देती है।
मोदी जी का यह खेल कितना सफल हो रहा है, इसे इस विषय पर हिंदी के सभी अखबारों की रिपोर्टों में देखा जा सकता है। इनमें से किसी के पास भी इन आंकड़ों की आलोचनात्मक दृष्टि से जांच करने की शक्ति और कोई नजरिया ही नहीं है। इनका यथार्थ बोध तो शून्य स्तर पर है ही । ये सभी शुद्ध रूप से सरकारी भोंपू बन कर मोदी जी के विभ्रम-उत्पादन अभियान में शामिल हैं।
गौर करने लायक बात यह है कि जब कोई दूसरों को लगातार धोखा देने के खेल में लगा होता है, कालक्रम में देखा जाता है कि वह खुद अपने इन धोखों और विभ्रमों का शिकार होने लगता है। इस प्रकार के झूठे आंकड़ों के कारण ही इस सरकार की प्राथमिकताएं ही आज तक तय नहीं हो पाई है। इसने अर्थ-व्यवस्था के सवालों को राम भरोसे छोड़ कर गोरक्षा और सांप्रदायिक विभाजन से वातावरण को प्रदूषित करते ऐन-केन-प्रकारेण चुनावों की वैतरणी पार करने को ही अपना प्रमुख काम समझ लिया है।
हम यहां आज के ‘टेलिग्राफ’ की इस रिपोर्ट को मित्रों से साझा कर रहे हैं:
https://www.telegraphindia.com/1170513/jsp/frontpage/story_151407.jsp
सिर्फ और सिर्फ प्रचार के बल पर टिकी हुई एक चरम विफल सरकार के लिये आम लोगों को बरगलाने का सबसे आजमाया हुआ तरीका है आंकड़ों की हेरा-फेरी। किसी भी अकर्मण्य सरकार का ‘हार्डवर्क’!
बच्चा जब शुरू में गिनती सीखता है, वही उसकी अमूर्त मानसिक गतिविधियों का पहला कदम होता है - शुद्ध ऐंद्रिक बोध से एक प्रकार के अमूर्त सोच की दिशा में उसका पहला कदम। राजनीति में आम लोगों के लिये आंकड़ों की भी कुछ-कुछ ऐसी ही, निहायत प्राथमिक स्तर के राजनीतिक ज्ञान की भूमिका होती है। इसमें धांधली करके राजनीतिक तौर पर अबोध लोगों के बीच में आराम से राजनीतिक विभ्रम पैदा किये जा सकते हैं।
शुद्ध रूप से विभ्रमों और प्रचार की माया पर टिकी मोदी सरकार भ्रमों को पैदा करने के इस अचूक हथियार का प्रयोग न करें, यह कैसे मुमकिन हो सकता है !
नोटबंदी के काल में जब सभी देख रहे थे कि असंख्य कल-कारखाने बंद हो रहे हैं, लाखों मजदूर अपने गांवों में लौटने के लिये मजबूर हो रहे हैं और किसानों को उनकी फसलों का दाम नहीं मिल रहा, वे बुवाई के काम को समय से शुरू नहीं कर पायें, तभी यूपी के चुनाव के आखिरी दौर के बीच आंकड़ों की हेरा-फेरी करके इस सरकार ने घोषित कर दिया था कि नोटबंदी से जीडीपी में कोई खास गिरावट नहीं आई है।
उस समय अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों की इनकी इस बाजीगरी का पर्दाफाश किया था और बताया था कि किस प्रकार केंद्रीय सांख्यिकी विभाग (सीएसओ) के 2015-16 के इसी काल के आंकड़ों को बदल कर जीडीपी में वृद्धि की जो वास्तविक दर 6.2 प्रतिशत थी, उसे 7.2 प्रतिशत दिखा दिया गया है। और प्रधानमंत्री रटने लगे कि यह ‘हार्डवर्क’ का कमाल है, जो हारवर्ड वाले नहीं जानते !
अब जब इस सरकार के तीन साल पूरे हो रहे है और इसके निकम्मेपन पर चर्चा होगी, फिर एक बार भारत में औद्योगिक विकास में वृद्धि के आंकड़ों के मामले में वही खेल खेला गया है। सीएसओ ने कल जारी किये गये अपने आंकड़ों से बताया है कि 2016-17 में भारत में 5 प्रतिशत की दर से औद्योगिक विकास हुआ है जिसे पिछले पांच सालों में सबसे तेज विकास की दर कहा जा सकता है।
आज के “टेलिग्राफ“ ने फिर एक बार आंकड़ों में हेरा-फेरी के इस खेल का पर्दाफाश करते हुए बताया है कि यदि 2004-05 के आंकड़ों को आधार बना कर कूता जाए तो 2016-17 में औद्योगिक विकास की दर बमुश्किल 0.7 प्रतिशत रही है जो पिछले तीन साल में सबसे कम है। 0.7 प्रतिशत को बढ़ा कर 5 प्रतिशत कर देने के इस खेल के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले जहां इस वृद्धि को मापने में 620 चीजों की उत्पादन-क्षमता में विकास को शामिल किया जाता था, वहीं अब उसकी जगह 809 चीजों की उत्पादन-क्षमता को हिसाब में लिया गया है, जिसका स्वाभाविक असर है कि औद्योगिक विकास की दर बढ़ी हुई दिखाई देती है।
मोदी जी का यह खेल कितना सफल हो रहा है, इसे इस विषय पर हिंदी के सभी अखबारों की रिपोर्टों में देखा जा सकता है। इनमें से किसी के पास भी इन आंकड़ों की आलोचनात्मक दृष्टि से जांच करने की शक्ति और कोई नजरिया ही नहीं है। इनका यथार्थ बोध तो शून्य स्तर पर है ही । ये सभी शुद्ध रूप से सरकारी भोंपू बन कर मोदी जी के विभ्रम-उत्पादन अभियान में शामिल हैं।
गौर करने लायक बात यह है कि जब कोई दूसरों को लगातार धोखा देने के खेल में लगा होता है, कालक्रम में देखा जाता है कि वह खुद अपने इन धोखों और विभ्रमों का शिकार होने लगता है। इस प्रकार के झूठे आंकड़ों के कारण ही इस सरकार की प्राथमिकताएं ही आज तक तय नहीं हो पाई है। इसने अर्थ-व्यवस्था के सवालों को राम भरोसे छोड़ कर गोरक्षा और सांप्रदायिक विभाजन से वातावरण को प्रदूषित करते ऐन-केन-प्रकारेण चुनावों की वैतरणी पार करने को ही अपना प्रमुख काम समझ लिया है।
हम यहां आज के ‘टेलिग्राफ’ की इस रिपोर्ट को मित्रों से साझा कर रहे हैं:
https://www.telegraphindia.com/1170513/jsp/frontpage/story_151407.jsp
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