गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

यह जुनूनी विक्षिप्तता मोदी जी को कहां ले जायेगी ?


-अरुण माहेश्वरी

नरेन्द्र मोदी में अभी चुनाव को लेकर एक अजीबोग़रीब जुनूनी विक्षिप्तता दिखाई देने लगी है जो चुनाव उनके हाथ से निकल चुका है, उसे येन केन प्रकारेण फिर से अपने क़ब्ज़े में करने की ज़िद से पैदा हुई बदहवासी दिखाई देने लगी है किसी भी संतुलित मस्तिष्क के दूसरे नेता में शायद ही आपको ऐसी चुनावी मुर्च्छना देखने को मिलेगी !

मोदी की राजनीति पर नज़र रखने वाला हर व्यक्ति इस बात की आशंका करता था कि अंत में वे अपनी बदहवासी में किसी ब्रह्मास्त्र की तरह ही पाकिस्तान के साथ युद्ध का ख़तरनाक खेल भी खेलने से बाज़ नहीं आयेंगे सबके देखते देखते, चुनाव की तिथियों की घोषणा के हफ़्ते भर पहले उन्होंने अपने इस अस्त्र का भी प्रयोग कर लिया  

जाहिर है कि किसी भी क़दम के स्वरूप में उसके पीछे काम कर रहे लक्ष्य की भी भूमिका होती है पाकिस्तान के कथित आतंकवादी ठिकानों पर कार्रवाई का यह प्रकरण भी इसके पीछे के मोदी जी के लक्ष्य से निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है फिर भी आखिरकार यह युद्ध के ख़तरनाक खेल का मामला था इसमें अगर थोड़ी भी चूक हो जाए तो इसका स्वरूप किसी की इच्छा की सीमा से बँधा नहीं रह सकता था !

14 फरवरी से लेकर इन चंद दिनों में भारत ने जम्मू-कश्मीर में अपने तक़रीबन साठ जवान गँवाये हैं फिर भी जब भारत ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन करके पहला हमला किया उसके बाद से ग़नीमत यह हुई की भारत की कार्रवाई से कोई हताहत हुआ और परवर्ती पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई से किसी प्रकार की ख़ास जान-माल की क्षति हुई भारत ने एक लड़ाकू विमान खोया, उसका पायलट पाकिस्तान की गिरफ़्त में गया, लेकिन फिर भी इसे किसी ने युद्ध नहीं माना। इसके साथ ही सारी अन्तरराष्ट्रीय ताक़तें तनाव को कम करने के लिये उतर गई मामला दोनों देशों के बीच कूटनीतिक चैनल के हवाले हो गया इस टिप्पणी को लिखने के समय तक पाकिस्तान के द्वारा पकड़े गये विंग कमांडर का वापस आना भी तय हो चुका है  

इतने सारे अघटन के बीच भी मोदी जिस प्रकार की निष्फिक्रता और निस्पृहता का परिचय दे रहे हैं, और उनमें अपने व्यापक चुनावी कार्यक्रमों को पूरा करने की जो हवस दिखाई दे रही है, वही उनके चरित्र के जुनूनी विक्षिप्तता (obsessional neurosis)के पहलू को पूरी तरह से खोल कर सामने रख देता है  

विगत पांच साल में सत्ता के सही प्रयोग में पूरी तरह से विफल, बल्कि तुगलकी साबित हुए मोदी जी किसी जुनूनी विक्षिप्त व्यक्ति की तरह स्थाई तौर पर इस सवाल के तनाव में रहते हैं कि वे जिंदा है या नहीं ? फ्रायड के दिये ब्यौरे के अनुसार जुनूनी आदमी कुल मिला कर एक अभिनेता होता है जो अपने अभिप्रेत कामों को पूरा करने के लिये कुछ इस प्रकार का अभिनय करता है, मानो वह मृत हो, या जो हो रहा है उसे कुछ पता ही नहीं है, जबकि वह काम उसके लिये ज़िंदगी और मौत के प्रश्न की तरह होता है इस खेल में वह अपने को ऐसे प्रदर्शित करता है कि कुछ भी क्यों हो जाए, उस पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, वह अपराजेय है अपने निकट के छोटे लोगों पर छड़ी घुमा कर वह दूसरों में अपनी श्रेष्ठता का झूठा भ्रम पैदा करने की कोशिश करता रहता है  

लेकिन सच यह है कि ऐसा आदमी अपनी असमर्थताओं पर पर्दा डालने के चक्कर में अपने खोल में घुसा हुआ वास्तव में पूरी तरह जड़ हो चुका होता है दिखाता है कि वह अपने दैनन्दिन कामों को निष्ठा से पूरा कर रहा है; अपने को बाकी पचड़ों से दूर रखे हुए है यह युद्ध के मैदान में उस सैनिक की मनोदशा है जो शत्रु की नज़र से बचने के लिये मृत पड़े रहने का अभिनय करता है ऐसी मनोदशा वाले की विडंबना है कि वह मृत्यु को धोखा देने के चक्कर में ख़ुद ही अपने को जड़ कर लेता है जीवित रहते हुए ही संभावना-शून्य होकर मृत समान हो जाता है

मोदी ने युद्ध की तरह का खतरनाक खेल तो खेल दिया लेकिन इससे अपने चुनावी दौरों को जरा भी प्रभावित नहीं होने दिया पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश के पहले दिन तक तो वे इशारों में अपने बाहुबल का खूब प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन दूसरे दिन जब पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई से स्थिति बदल गई तो उन्होंने इस प्रकार पूरे विषय से हट कर सेना के अधिकारियों को सामने कर दिया, मानो इस मामले का राजनीति से कोई संबंध ही नहीं था, और खुद सीमा की मजबूती के बजायबूथ की मजबूतीके अपने धंधे में लग गये !

जुनूनी विक्षिप्त व्यक्ति की तरह दूसरी तमाम एजेंशियों सीबीआई, आईटी, ईडी आदि के बाद अंत में सेना तक का प्रयोग कर लेने के बाद मोदी अब वस्तुत: पूरी तरह से निहत्थे हो चुके हैं मोदी जी की चुनावी लालसाओं के चलते ही अभी पूरा उत्तर-पूर्व सुलग रहा है अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग देश भर में उनसे बुरी तरह नाराज है वही दशा मध्यवर्ग के लोगों की भी है  

फलत: आगे चुनाव के मैदान में मोदी लोगों में विकर्षण ज्यादा पैदा करेंगे उनकी भूमिका बेहद निष्प्रभावी रूटीन किस्म की रह जायेगी अपने तमाम कारनामों से उन्होंने विपक्ष की एकता को सुदृढ़ करके भी अपनी पराजय को सुनिश्चित कर लिया है