सोमवार, 11 सितंबर 2023

एक नई वैश्विक भूमिका के मुक़ाम पर भारत

 

(भारत की राजनीति में अघटन (catastrophe)की कुछ बिल्कुल ताज़ा सूरतें

 


अरुण माहेश्वरी 

 


अघटन ऐसा कोई आसन्न विध्वंस नहीं होताजिससे हम सही रणनीतिबना कर अपने को बचा सकते हैं  अघटन अपने तात्त्विक अर्थ में हमारेजीवन में पहले से ही घटित सत्य हैऔर हमारा अस्तित्व उससे बचे हुएलोगमानो अवशिष्ट की तरह होता है  ‘हम , भारत के लोगका अर्थ है —  उपनिवेशवाद के अंत की एक भारी उथल-पुथल के बाद के बचे हुए लोग  

 

यह कुछ वैसे ही है जैसे धरती पर हुई भारी उथल -पुथल ने कोयला औरईंधन को पैदा किया और फिर धरती पर जब मनुष्य आया जो उसने इसईंधन का उपयोग करके अपने जीवन का यह विशाल महल तैयार किया।इस प्रकारमानव जाति की सामान्यता हमेशा किसी सर्वनाश के बादसत्य ही होता है  मानव सभ्यता मूलगामी क्रांतियों से आगे बढ़ती है  

 

आज हम मोदी युग के बाशिंदे हैं  अभी 2024 में नहींहमारे जीवन में मोदी नामक घटना-चक्र का सर्वनाश तो 2014 मेंही घटित हो गया था  आज हम उस अघटन से उत्पन्न सामाजिक ईंधन से अपना जीवन नए सिरे से तैयार कर रहे हैं।अर्थात्हम 2014 के अघटन के परवर्तीबचे हुए लोग है  अघटनोत्तर अवशिष्ट  

 

अपने बारे मे इस सत्य को बिना समझे हम कभी अपनी वास्तविकता को नहीं पहचान सकते हैं  राजनीति के क्षेत्र मेंग़नीमत है कि ‘भारत जोड़ों’ यात्रा के बाद ‘इंडिया’ मोर्चे के गठन से भारत के विपक्ष ने इस यथार्थ बोध का परिचय देनाशुरू कर दिया है  ज़ाहिर है कि इस लड़ाई के परिणाम भी 2014 के पहले की स्थिति में पुनरावर्तन के रूप में सामने नहींआयेंगे  उनसे आज के विश्व में भारत के पुनर्निर्माण की एक नई चुनौती पैदा होगी।इसीलिए अभी से ‘इंडिया’ मोर्चे कासंचालन उसके दूरगामी लक्ष्यों को सामने रखते हुए किया जाना चाहिए  इस मायने में सचमुच 2024 का महत्व एक औरआज़ादी की लड़ाई से कम नहीं होगा  यह दुनिया में उत्तर-उपनिवेशवाद की तरह ही उत्तर-फासीवाद के एक नए युग काप्रारंभ होगा  

 

आइयेयहाँ हम इस नई परिस्थिति की कुछ बिल्कुल ताज़ा सूरतों को विचार का विषय बनाके हैं। मसलन्सबसे पहलेधारा 370 के विषय को ही लिया जाए  

 

सुप्रीम कोर्ट में धारा 370

 

सुप्रीम कोर्ट में धारा 370 पर चली लगभग अठारह दिन की बहस के बीच से सरकार की इच्छा के विपरीत यह बातबिल्कुल स्पष्ट रूप में सामने आई है कि धारा 370 भारत के संविधान का एक अभिन्न अंग है  यह हमारे संविधान केसंघीय ढाँचे की अर्थात् संविधान की धारा -1 की पुष्टि करने वाली एक सबसे महत्वपूर्ण धारा है  

 

इसमें यह भी साफ़ हुआ कि धारा 370 ने भारत के साथ कश्मीर के पूर्ण विलय में कभी किसी बाधक की नहींबल्किसबसे बड़े सहयोगी की भूमिका अदा की है  पिछले पचहत्तर साल का भारत का संवैधानिक और राजनीतिक इतिहास भीइसी बात की गवाही देता है  संघीय ढाँचा भारत के वैविध्यपूर्ण स्वरूप की एकता और अखंडता की एक मूलभूत शर्त औरभारत के संविधान की आत्मा है  इसीलिए धारा 370 को किसी भी शासक दल की राजनीतिक सनक का विषय नहींबनाया जा सकता है  धारा -370 को हटाना भारत के संघीय ढाँचे और संविधान पर कुठाराघात से कम नहीं है  

 

सुप्रीम कोर्ट में धारा 370 पर चली बहस से ये बातें बिल्कुल साफ़ रूप में उभर कर सामने आई हैं। 

 

इस विषय पर सरकारी पक्ष संवैधानिक दलीलों के बजाय राजनीतिक नारेबाज़ियों का सहारा लेता हुआ दिखाई दिया सरकार की ओर से लगातार संघीय ढाँचे के खिलाफ केंद्रीयकृतएकात्मक ढाँचे के पक्ष मेंराष्ट्रपति में तमाम संवैधानिकशक्तियों और सार्वभौमिकता के निहित होने की तरह की तानाशाही की पैरवी करने वाली दलीलें दी जा रही थीं। इससेसिर्फ मोदी सरकार का तानाशाही चरित्र ही खुल कर सामने आया।

 

अब यह सवाल साफ़ हो चुका है कि संविधान के मूलभूत ढाँचे से जुड़ी इस प्रकार की एक धारा के बारे में कोई भी राय देनेके पहले किसी के भी सामने यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह भारत में किस प्रकार का राज्य चाहता हैजनतांत्रिकधर्म-निरपेक्ष और संघीय राज्य या तानाशाहीधर्माधारित और केंद्रीयकृत राज्य  आपका यह नज़रिया ही धारा 370 केप्रति आपके रुख़ को तय करेगा  

 

धारा 370 में एक जनतांत्रिकधर्म-निरपेक्ष और संघीय भारत की अधिकतम संभावनाओं के सूत्र निहित है  इसे हटा करइनकी संभावनाओं को कम किया गया है  इस अर्थ में धारा 370 भारतीय संविधान का एक master signifier है 

 

भारतीय राज्य का सच यह है कि वह विविधता का महाख्यानबहु-जातीय आख्यानों का समुच्चयबहु-राष्ट्रीय राज्यअर्थात् एक आधुनिक उत्तर-आधुनिक राष्ट्र है। इसीलिए उसे बहु-देशीय उपमहादेश कहा जाता है। हमारे संविधान कीभाषा में, “इंडियायानी भारतराज्यों का एक संघ”  यह कोई एकात्मककेन्द्रीकृत राज्य या तानाशाही नहींराज्यों कास्वैच्छिक संघविकेंद्रित सत्ता पर आधारित सच्चा जनतंत्र है 

 

इसी बुनियाद पर भारत के संविधान में सार्वभौमिकता सिर्फ़ जनता (We the people) में निहित है  राज्य के बाक़ी सारेअंगोंन्यायपालिकाविधायिका और कार्यपालिका का दायित्व है कि वह जनता के मूलभूत अधिकारोंनागरिकस्वतंत्रताओंजन-जीवन में धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं अर्थात् धर्म-निरपेक्षता और विभिन्न राज्यों के अपनेविधायी अधिकारों अर्थात् राज्य के संघीय ढाँचे की रक्षा करें  कमोबेश यही भूमिका राज्य के चौथे स्तंभ पत्रकारिता से भीअपेक्षित है  

 

भारत में कश्मीर के विलय के साथ संविधान में जिस धारा 370 को जोड़ा गयाउसके पीछे परिस्थितियों का कोई भीदबाव क्यों  रहा होउसमें अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर की जनता को प्रकट रूप में कुछ अतिरिक्त अधिकारों कीघोषणा के बावजूद वह भारतीय संविधान के संघीयजनतांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष ढाँचे से पूरी तरह से संगतिपूर्ण था।फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि धारा 370 के ज़रिए भारत के संघीय ढाँचे के अंतर के उस तात्त्विक सच को कहीं ज्यादा व्यक्तरूप में रखा गयाजिसकी बाक़ी राज्यों के मामले मेंअर्थात् सामान्यतः कोई ज़रूरत नहीं समझी गई थी  

 

इस धारा के ज़रिएकश्मीर की नाज़ुक परिस्थितियों के दबाव में ही क्यों  होजनता के आत्म-निर्णय के उस अधिकारको प्रकट स्वीकृति दी गई थी जिसे किसी भी संघीय ढाँचे के सत्य का मर्म कहा जा सकता है। राज्यों के आत्म-निर्णय केअधिकार को ही संघीय ढाँचे का अंतिम सच कहा जा सकता है  अर्थात् उसे हासिल करने का अर्थ है राज्यों का अपनीप्राणी सत्ता में सिमट जाना और उनके प्रमातासंघीय ढाँचे के अंग के रूप का अंत हो जाना  

 

यही वजह है कि राज्यों का ‘स्वैच्छिक संघ’ विविधता में एकता का एक सबसे मज़बूत सूत्र है जिसमें हर राज्य अपनीअस्मिता से किंचित् समझौता करके ही संघ के साथ अपने को जोड़ता है  

 

कहना  होगाआज़ाद भारत कुल मिला कर एक ऐसे ही आधुनिक राष्ट्र के निर्माण का प्रकल्प था जिसमें कश्मीर काविलय इसके संघीय ढाँचे के लचीलेपन की पराकाष्ठा को मद्देनज़र रख कर किया गया था  भारत में जो तमाम कथितराष्ट्रवादी ताक़तें बिल्कुल प्रकट रूप मेंहमेशा भुजाएँ फड़काने वाले मज़बूत और केन्द्रीकृत भारत की कामना करती रहीहैंकश्मीर की विशेष स्थिति उन्हें कभी मान्य नहीं थी  उन्हें कश्मीर को अलग रखना मंज़ूर थापर उसे भारत में कोईविशेषाधिकार देना नहीं  इसीलिए इतिहास में वे कश्मीर को अलग रखने के पक्षधर महाराजा हरिसिंह के साथ खड़ी थी  

 

यह ज़ाहिर है कि भारत के पुनर्निर्माण के इस आधुनिकता के प्रकल्प में शुरू में उनकी जिस आवाज़ को दबा दिया गया थावही दमित आवाज़ अब धारा 370 को ख़त्म करने की बहस के ज़रिये प्रतिहिंसा के भाव के साथ लौट कर  रही है  यहभारत के आधुनिकता के प्रकल्प में सांप्रदायिकता और धर्म-निरपेक्षता के बीच के अन्तर्विरोधों की अभिव्यक्ति है  

 

सांप्रदायिक ताक़तें धारा 370 पर हमला करके भारत की एकता के ‘स्वैच्छिक संघ’ के सबसे मूलभूत सूत्र को कमजोरकर रही है और भारत में विभाजनकारी ताक़तों के लिए ज़मीन तैयार करती है  मज़े की बात है कि इस भारत-विरोधीमुहिम का नेतृत्व वर्तमान केंद्रीय सरकार खुद कर रही है  इसीलिए इस धारा पर विचार के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट को पूरीमोदी सरकार के दक्षिणपंथी प्रकल्प पिपरा अपनी राय सुनानी है 

 

जी-20 सम्मेलन

 

अब दूसरा उदाहरण बिल्कुल ताज़ा जी-20 सम्मेलन का लिया जा सकता है  

 

सचमुचइसे देख कर लगता है कि मानो यह दुनिया एक अनोखीउल्टी-पुल्टी दुनिया है  भारत में जब शासक दल की राजनीति का मुख्यएजेंडा सांप्रदायिक असहिष्णुता पैदा करनानफ़रत फैला कर समाज कोतोड़ना और सभी जन-प्रचार माध्यमों पर क़ब्ज़ा करके अभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता का हनन है तब इसी देश के तत्वावधान में जी-20 सम्मेलन केघोषणापत्र में गाजे-बाजे के साथ धार्मिक सहिष्णुता और अभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता के पक्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ की मूलभूत प्रतिबद्धता को दोहरायागया है !

 

इस घोषणापत्र में कहा गया है कि “हम संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव /आरईएस/77/318, विशेष रूप से धार्मिकऔर सांस्कृतिक विविधतासंवाद और सहिष्णुता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने की इसकी प्रतिबद्धता पर ध्यान देते हैं।हम इस बात पर भी जोर देते हैं कि धर्म या आस्था की स्वतंत्रताराय या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताशांतिपूर्ण सभा काअधिकार और सहचर्य की स्वतंत्रता का अधिकार एक दूसरे पर आश्रितअंतर-संबंधित और पारस्परिक रूप से मजबूतहैं और उस भूमिका पर जोर देते हैं ये अधिकार धर्म या आस्था के आधार पर सभी प्रकार की असहिष्णुता और भेदभावके खिलाफ लड़ाई में निभायी जा सकती है।’’

 

शब्दकोश के अनुसार उलट-पुलट जाने का अर्थ होता है कि आप जिस काम को बहुत सोच-समझ कर करते हैंवही ऐनआख़िरी वक्त में बिल्कुल बिखर जाएसारी चीज़ें दिशाहीन नज़र आने लगेक्या हो रहा हैक्या नहीं हो रहा हैइसकाकुछ पता ही  चले  पर जिसे हेगेलियन द्वंद्वात्मकता कहते हैंउसमें ‘उलट-पुलट’ का मायने यह है कि किसी भी एकसुचिंतित प्रकल्प का उसके घोषित उद्देश्य के बिल्कुल विपरीत परिणाम निकलना — मसलनस्वतंत्रता के सपने काआतंक में बदल जानानैतिकता का मिथ्याचार मेंबेशुमार दौलत का बहुसंख्यक आबादी की ग़रीबी में तब्दील हो जाना 

 

मोदी चाहते है कि वे जी-20 का प्रयोग भारत में 2024 के चुनाव को जीतने के लिए करेंगे ; इससे अपनी कलंकितछवि को चमकाएँगे ; अपनी डूबती हुई राजनीति को पार करायेंगे  

 

पर जी-20 का सम्मेलन ख़त्म हो गयाहज़ारों करोड़ फूंक कर दिल्ली में भारी तमाशा हुआमोदी दुनिया के अनेकराष्ट्राध्यक्षों के विनयी सेवक बने हुए उनके चारों ओर मंडराते दिखेंलेकिन कुल मिला कर हासिल क्या हुआ ? हासिलवही हुआजिसे हम ‘उलट-पुलट’ कहते हैं  इस सम्मेलन में जिस घोषणापत्र पर सर्वसम्मति बनीउसकी एक भीपंक्ति मोदी की राजनीति का समर्थन नहीं करती है  

 

अर्थात् भारत में आगामी चुनाव प्रचार में मोदी सिर्फ दुनिया के नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें चमका पायेंगेइससम्मेलन में हुई एक भी बात का वे प्रामाणिक रूप में कहीं उल्लेख भी नहीं कर पायेंगे  

 

उल्टेसम्मेलन के घोषणापत्र की बातों से लगेगा कि जैसे इसमें ‘नफ़रत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान खोलने’ कीबात की ताईद की गई है  इसमें ‘धर्म या आस्था के आधार पर सभी प्रकार की असहिष्णुता और भेदभाव’ को ख़त्म करनेकी बात कही गई है जो ‘लव जेहाद’, ‘आबादी जेहाद’, ‘वोट जेहाद’ आदि-आदि नाना जेहादों के नाम पर मोदी औरआरएसएस की मुसलमान-विरोधी राजनीति को एक सिरे से ठुकराती है  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात भी मोदी कीनीतियों के खुले विरोध से कम नहीं है  

 

इस प्रकारआँख मूँद कर कोरे उत्सव-धर्मी भाव से नाचने-कूदने की मोदी की राजनीति के इस प्रहसन वाले हिस्से ने उनकीसमग्र राजनीति की कब्र खुद खोदने का काम किया है  अंत में जाकरजी-20 सम्मेलन के स्थल ‘भारत मंडपम’ मेंबारिश का पानी भर जाने से आयोजन की व्यवस्था की मोदी की दक्षता की भी पोल खुल गई है।

 

यह है 2014 के अघटन के बाद का भारत जिसमें ‘इंडिया’ की जनतांत्रिक राजनीति को एक नए वैश्विक इतिहास कीरचना करनी है  मोदी का ‘विश्वगुरु ‘ का प्रचार इसी प्रकार भारत में जनतांत्रिक आंदोलन की वैश्विक संभावनाओं कोखोल रहा है।