मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

भाषा के मूल से दृश्य के ज़रिये ध्वनि का विस्थापन और इसके स्नायविक प्रभाव


आज के ‘टेलिग्राफ’ में प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक जी एन देवी का महत्वपूर्ण लेख है - दृष्ट की जीत ( मनुष्यता सामूहिक स्मृतिलोप की ओर बढ़ रही है ) । 

इस लेख का प्रारंभ उन्होंने सभ्यता के इतिहास में अलग-अलग जगहों पर आदिम ध्वनियों से वर्ण-शब्द-वाक्य की प्रक्रिया के ज़रिए लिपियों और भाषाओं के उद्भव की कहानी का ज़िक्र करते हुए आज के काल में तेज़ी से अनेक मातृ भाषाओं के अवलोप की कहानी की चर्चा से किया है । 


पर श्री देवी के इस लेख का मूल विषय है आज के काल में, जब कृत्रिम स्मृति (artificial memory) का बोलबाला है, मानव-संचार के लिए ध्वनि-आधारित भाषाओं का स्थान क्रमशः दृश्य -आधारित भाषा लेती जा रही है और इसका सीधा प्रभाव मानव मस्तिष्कों के गठन तक पर पड़ रहा है । 


उन्होंने इसमें ख़ास तौर पर दो अध्ययनों, Maryanne Wolf की पुस्तक Proust and Squid तथा Michael Charles Corballis की पुस्तक ‘The Recursive Mind:The origins of Human Language, Thought and Civilization’ का उल्लेख किया है । 


Wolf के अध्ययन से पता चलता है कि आज के समय में स्कूल के छात्रों में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है जिनमें पढ़ने की क्षमता अभाव होता है, अर्थात् जो डिस्लेक्सिया के शिकार हैं । Corballis की पुस्तक में मनुष्यों में भाषा संबंधी स्नायविक क्षमताओं के विकास का ऐतिहासिक अध्ययन किया गया है । 


इन दोनों अध्ययनों के आधार पर श्री देवी ने यह महत्वपूर्ण स्थापना दी है कि “Non-reading dyslectic-types are a necessary part of human evolution. “  ( पढ़ने में अक्षम डिस्लेक्टिक प्रकार मानव के विकास का एक ज़रूरी हिस्सा है ।) 


हम जानते हैं पिछले दिनों जेनेटिक विज्ञान के ऐसे तमाम अध्ययन प्रकाश में आ चुके हैं जिनसे पता चलता है कि शरीर के अंगों का विशेष प्रकार से निरंतर प्रयोग करने से जीवों के जेनेटिक गठन तक में बदलाव हो जाता है और आगे की पीढ़ियाँ उसी प्रकार के परिवर्तित गठन की बनने लगती है । 

श्री देवी ने अपने इस लेख के अंत में इस ‘विकास’ को सलाम करते हुए समाज में आर्थिक विषमताओं की चर्चा की है और इस बात पर चिंता ज़ाहिर की है कि आज एक तबका जहां डिजिटल उपायों से संचार की नई भाषा को आयत्त करने में समर्थ है, वही दूसरा डिजिटल साधनों से वंचित तबका इस नए भाषा बोध को प्राप्त करने में पिछड़ जा रहा है । इसी वजह से इस तकनीकी परिवर्तन के कारण स्मृतिलोप का जो संकट पैदा हो रहा है, उसका सबसे अधिक शिकार यह गरीब और वंचित तबका ही होने वाला है । 

श्री देवी के इस लेख को गंभीरता से पढ़ा जाना चाहिए : 


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