शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

नेल्सन मंडेला



मैं कोई देवदूत नहीं हूं - नेल्सन मंडेला




नेल्सन मंडेला से जब उनके जीवनीकार अंथोनी सैम्पसन ने जीवनी लिखने के अधिकार की मांग की तो मंडेला ने इसकी अनुमति देते हुए उनसे कहा था - वे उनसे सभी अहम सवालों पर बात करेंगे, सभी जरूरी पत्रों तथा दस्तावेजों को देखने भी देंगे। लेकिन उन सब के आधार पर राय बनाने और उनकी आलोचना करने तक के लिये वे पूरी तरह स्वतंत्र होंगे। ‘‘कोई भी आंदोलन अपनी भूलों से शिक्षा लें, इसके लिये भी यह निहायत जरूरी है।’’ इसके साथ ही उन्होंने बल देकर कहा - ‘‘मैं कोई देवदूत नहीं हूं।’’
सैम्पसन ‘50 के जमाने से ही मंडेला को करीब से जानते थे। उन दिनों मंडेला जोहांसबर्ग में काले लेखकों, संगीतकारों और राजनीतिज्ञों के साथ उठा-बैठा करते थे। सैम्पसन तब ब्रिटेन से निकलने वाली काले लोगों की पत्रिका ‘ड्रम’ का संपादन करते थे और इसी वजह से काले बौद्धिकों के बीच उनकी अच्छी-खासी पैठ थी।
अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) ने 1952 में दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी रंगभेदी सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया था। पेशे से वकील, नौजवान मंडेला इस आंदोलन के लिये कार्यकर्ताओं को जुटाने में लगे हुए थे। इसके बाद सन् 1954 के प्रतिरोध आंदोलन और सोफिया टाउन में रंगभेद की प्रतीक बन चुके एक बस्ती इलाके को उजाड़ने के आंदोलन में वे प्रमुख भूमिका अदा कर रहे थे जिसके लिये उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चला था। सैम्पसन ने उस मुकदमे पर एक पूरी किताब लिखी थी।
स्वतंत्रता आंदोलन के इसी क्रम में ‘60 के दशक तक आते-आते मंडेला को लगने लगा था कि शांतिपूर्ण प्रतिवाद का रास्ता जैसे किसी बंद गली के अंतिम छोर तक पहुंच गया है। उसी समय 21 मार्च 1960 का दिन जब शार्पविले शहर में पुलिस थाने के सामने प्रदर्शनकारी दस हजार लोगों की भीड़ पर बदहवास पुलिस ने गोलियां चला कर 67 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, सैकड़ों लोग जख्मी हुए। इस कत्लेआम ने काले लोगों के राजनीतिक परिदृश्य को जैसे रातो-रात बदल दिया। इसके पहले तक मंडेला के मन में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) और उसकी प्रतिद्वंद्वी पैन अफ्रिकनिस्ट कांग्रेस (पीएसी) को लेकर अंतद्‍र्वंद्व था। वे समझते थे कि पीएसी जनसमर्थन पाने के लिये लालायित नेताओं का जमावड़ा है जो शुद्ध अवसरवाद के जरिये एएनसी की योजनाओं में सेंधमारी करना चाहते हैं। लेकिन शार्पविले की घटना के बाद उन्हें लगा कि पीएसी के नेताओं ने बहादुरी का परिचय दिया है और वे एएनसी से शीघ्र ही नयी परिस्थिति के अनुसार अपनी रणनीति तय करने की मांग करने लगे। यद्यपि बाद में जेल से मंडेला ने लिखा था कि ‘‘पीएसी के पास इस ऐतिहासिक क्षण के लिये जनता को तैयार करने की कोई योजना नहीं थी।’’ उन दिनों पीएसी का यह राष्ट्रीय गान काले लोगों की जुबान पर चढ़ गया था।


We the black people
Are crying out for our land
Which was taken by crooks.
They should leave it alone.

बहरहाल, एएनसी ने मंडेला को एक नया सैनिक संगठन ‘Spear of the Nation’ के गठन का जिम्मा दिया। सैंपसन ने मंडेला की जीवनी में लिखा है कि मंडेला के गांधीवादी भारतीय दोस्तों ने तब एएनसी की बैठक में ही ऐसे सैनिक संगठन के गठन का विरोध करते हुए कहा था कि ‘‘अहिंसा हमारी कसौटी पर विफल नहीं हुई है, हम अहिंसा की कसौटी पर विफल हो रहे हैं।’’
खुद मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन और खुद पर भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और उसके नेताओं के गहरे असर के बारे में काफी लिखा है। वे कहते थे कि हमारे अग्रजों ने लड़ाइयां तो लड़ी, लेकिन उन्होंने अपने अनुभवों का कोई लिखित इतिहास नहीं छोड़ा था, जिसे पढ़ कर हम उनसे सीख पाते। इसकी तुलना में गांधी और नेहरू सदा अपने आंदोलनों के अनुभवों को लिखते रहे और हमने उन्हें पढ़ कर ही जन-आंदोलन की शिक्षा अर्जित की। मंडेला खुद पर गांधी के बजाय नेहरू का प्रभाव ज्यादा मानते थे। ‘‘गांधी और नेहरू को पढ़ कर ही हमने जाना कि कैसे एक एकजुट और संगठित आंदोलन किसी भी स्थापित शासक शक्ति को पराजित कर सकता है।’’
जो भी हो, इसके साथ ही रंगभेदी सरकार द्वारा काले लोगों कोे दिये जाने वाले पासों को जलाने का आंदोलन, आपातकाल, तमाम नेताओं की धर-पकड़ और मंडेला की गिरफ्तारी तथा 1964 में उन्हें आजीवन कारादंड का दीर्घ इतिहास है। सन् 1964 के 27 साल बाद वे 1991 में ही जेल से निकल पाये थे।
सैम्पसन ने बताया है कि कैसे अपने बंदी जीवन में मंडेला अधिक से अधिक यथार्थवादी और शक्तिशाली होते चले गये। मंडेला के इस बंदी जीवन को वे उनके राजनीतिक जीवन के समग्र विकास की कुंजी मानते हैं। इस लंबे बंदी जीवन ने मंडेला को एक उद्दाम राजनीतिक कार्यकर्ता से एक आत्मानुशासित, विश्व राजनेता में रूपांतरित कर दिया। जेल की दीवारों के बारे में कहा - सबसे भयानक दीवारें वे है, जो हमारे मस्तिष्क में उठ खड़ी होती है।
सन् 1996 में, राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ब्रिटेन गये थे जहां लंदन के वेस्टमिनिस्टर हॉल में ब्रिटेन की सरकार की ओर से उनका अभिनंदन किया गया था। उस समय ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की मार्गरेट थैचर प्रधानमंत्री थी। इसके नौ साल पहले, इन्हीं श्रीमती थैचर ने कहा था कि जो लोग यह सोचते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में एएनसी का शासन होगा, वे मूर्खों के स्वर्ग ( एक वायवीय आदर्शवादी राज्य ) में वास कर रहे हैं। सन् 1996 में वेस्टमिनिस्टिर हॉल में वही ‘मूर्खों का स्वर्ग’ साक्षात दिखाई दे रहा था। वहां मंडेला ने अपने भाषण में सभी उपस्थित जनों को यह याद दिलाया कि आठ दशक पहले एएनसी ने ब्रिटिश पार्लियामेंट से दरख्वास्त करके इस बात का प्रतिवाद किया था कि क्यों उन्हें गोरे रंगभेदी शासन की दया पर रख छोड़ा गया है? आज हमारा सवाल है कि आखिर क्यों हम लोग हिटलर के जर्मनी और अफ्रीका के रंगभेदी शासन की तरह के उन भयावह नस्लवादी अपराधों को चलते रहने की अनुमति देते हैं ?
और इसप्रकार, मंडेला सिर्फ दक्षिण अफ्रीका के नेता के तौर पर नहीं, पूरी मानवता के नेता के तौर पर न सिर्फ ब्रिटेन के नेताओं को, बल्कि सारी दुनिया को संबोधित कर रहे थे। मनुष्यता के खिलाफ किये जाने वाले जुल्मों को जारी रहने की अनुमति देने के अपराध के लिये वे खुद से भी सवाल कर रहे थे।
आज मंडेला नहीं रहे। काफी दिनों से बीमार थे। उनके जैसे विश्व मानवता के राजनेता को हमारी आंतरिक श्रद्धांजलि।

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