मंगलवार, 4 अगस्त 2015

सुमित्रा महाजन और हिटलर का संसदीय इतिहास

अरुण माहेश्वरी


हिटलर, गोरिंग, गोयेबल्स और हेस

लोक सभा से कांग्रेस के 25 सांसदों को निष्काषित करके जिस प्रकार लोक सभा को चलाने की कोशिश की जा रही है, वह अनायास ही हिटलर के पार्लियामेंट (राइखस्टाग) की यादों को ताजा कर देती है। आइये, यहां हम संक्षेप में राइखस्टाग के उस काले अध्याय के पृष्ठों पर सरसरी तौर पर नजर डालते हैं।

हिटलर ने जर्मनी के चांसलर के रूप में सबसे पहले 30 जनवरी 1933 के दिन शपथ ली थी। चुनाव में जर्मन पार्लियामेंट की 583 सीटों में नाजी पार्टी और उसकी सहयोगी संरक्षणवादी नेशनलिस्ट पार्टी के पास कुल मिला कर 247 सीटें थी। द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद न्यूरेमबर्ग में हिटलर और उसके सहयोगी नाजियों के अपराधों पर जो मुकदमा चला था, उसमें रखे गये दस्तावेजों से पता चलता है कि शाम के पांच बजे हिटलर के चांसलर बनने के पांच घंटे बाद ही उसके कैबिनेट की एक बैठक हुई थी। इस बैठक में विचार का मुख्य विषय यह था कि कैसे पार्लियामेंट में उनके गठबंधन के अल्पमत को बहुमत में बदला जाए। तब सेंटर पार्टी के पास 70 सीटें थी और यह तय किया गया कि उस पार्टी के नेताओं के साथ संपर्क किया जाए। हिटलर ने अपने सहयोगी गोरिंग को इस काम का जिम्मा दिया।

सेंटर पार्टी के नेताओं से बातचीत करके गोरिंग ने कैबिनेट को बताया कि उनकी शर्तें ऐसी है कि जिनके कारण उनका समर्थन नहीं मिल सकता है, इसलिये फिर से चुनाव कराने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हिटलर गोरिंग के इस प्रस्ताव से तत्काल सहमत होगया था, लेकिन नेशनलिस्ट पार्टी के नेता हगेनबर्ग तैयार नहीं थे। उन्हें लगता था कि अगर अभी फिर से चुनाव होता है तो हिटलर राज्य की पूरी ताकत झोंक कर चुनाव जीत लेगा और तब उसे किसी सहयोगी पार्टी के समर्थन की जरूरत नहीं होगी। उल्टे, हगेनबर्ग ने कैबिनेट में राजसत्ता के प्रयोग से कम्युनिस्टों को कुचल देने का प्रस्ताव रखा, जिनके पास तब 100 सीटें थी।

हिटलर इसके लिये तैयार नहीं हुआ और उसने खुद सेंटर पार्टी के नेताओं से बात करने का जिम्मा ले लिया। बिल्कुल सोचे-समझे ढंग से इस बातचीत को विफल करने के उद्देश्य से ही हिटलर ने सेंटर पार्टी के नेता मोनसेनियर कास से बात शुरू की। कास ने हिटलर के सामने कई शर्ते रखी, उनमें एक शर्त यह भी थी कि वह संविधान के अनुसार काम करें। लेकिन हिटलर ने दुनिया को बताया कि कास ने उनके सामने बिल्कुल असंभव शर्ते रखी है, इसलिये उनसे समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है। और, राष्ट्रपति से पार्लियामेंट को भंग करके फिर से चुनाव कराने की सिफारिश कर दी गई। 5 मार्च 1933, नये चुनाव की तारीख मुकर्रर हुई।

30 जनवरी 1933 के दिन हिटलर चांसलर बना और 31 जनवरी को गोयेबल्स ने अपनी डायरी में लिखा कि ‘‘हमने फ्युहरर के साथ बैठक करके लाल आतंक से लड़ने का पूरा खाका तैयार कर लिया है। हम उनसे सीधे नहीं टकरायेंगे, बल्कि पहले बोल्शेविक क्रांति का विस्फोट होने देंगे। तभी मौका देख कर वार करेंगे।’’

चुनाव की घोषणा के बाद ही हिटलर ने सबसे पहले पूंजीपतियों की एक बड़ी सभा बुलाई जहां लगभग डेढ़ घंटे का लंबा भाषण दे कर उन्हें तमाम प्रकार की सुविधाएं देने और कम्युनिस्टों से हमेशा के लिये बचाने का वादा करके हिटलर के प्रचार अभियान को पूरा समर्थन देने का आह्वान किया। उधर सरकार में गोरिंग ने सभी महत्वपूर्ण पदों पर नाजी पार्टी के ‘तूफानी दस्तों’ के लोगों को बैठाने का काम शुरू कर दिया। हिटलर ने पुलिस को यह साफ निर्देश दे दिया कि वह नाजी पार्टी के ‘तूफानी दस्तों’ के लोगों से कभी न उलझे और साथ ही हिटलर के विरोधियों के खिलाफ बंदूक का प्रयोग करने से कभी न हिचके। गोरिंग ने अलग से पचास हजार लोगों का एक सहयोगी पुलिस बल तैयार किया। और इसप्रकार पुलिस का काम नाजी गुंडे करने लगे। हिटलर के चुनाव-प्रचार में राज्य की पूरी मशीनरी को झोंक दिया गया।

इसके साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय पर छापे मारे गये। उकसावे की और भी कई कार्रवाइयां हुई। लेकिन इन उकसावों के बावजूद, कहीं से कम्युनिस्ट क्रांति की ऐसी कोई ‘लपट’ नहीं उठी जिसकी प्रतीक्षा में हिटलर का पूरा कुनबा बैठा हुआ था। तभी, 27 फरवरी 1933 का दिन आया। हिटलर गोयेबल्स के घर पर एक डिनर में गया था। गोयेबल्स के अनुसार, जिस समय वे ग्रामोफोन पर गाने सुन रहे थे, उसी समय एक फोन आया कि राइखस्टाग में आग लग गयी है। हिटलर और गोयेबल्स तत्काल आग की जगह पहुंच गये और वहां जाते ही बिना किसी जांच के हिटलर ने चिल्लाते हुए यह घोषणा कर दी - ‘यह कम्युनिस्टों का अपराध है’।

राइखस्टाग में लगी इस आग की सचाई अब तक भी पूरी तरह से सामने नहीं आई है, लेकिन तत्कालीन चीफ आफ जर्मन जैनरल स्टाफ, जैनरल फ्रैंज हाल्डर ने न्युरेमबर्ग में यह गवाही दी थी कि ‘‘1942 में हिटलर के जन्मदिन पर हुए भोज में जब राइखस्टाग की इमारत की कलात्मकता पर गप चल रही थी तब मैंने अपने कानों से गोरिंग को उस बातचीत में हस्तक्षेप करके ऊंची आवाज में यह कहते सुना था कि ‘सिर्फ एक आदमी राइखस्टाग के बारे में सच को जानता है और वह मैं हूं, क्योंकि मैंने ही उसमें आग लगाई थी।’’

बहरहाल, राइखस्टाग की आग और कम्युनिस्ट क्रांति का भूत खड़ा करके ही हिटलर ने राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग को मजबूर किया और संविधान के उन सातों प्राविधानों को खारिज करवाने का अध्यादेश जारी करवा लिया जिनमें व्यक्ति और नागरिक के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई थी। कहा गया कि यह कदम राज्य को कम्युनिस्टों की हिंसक कार्रवाइयों से बचाने लिये उठाये गये आत्म-रक्षा के कदम हैं।

इस प्रकार, भारी उत्तेजना की परिस्थतियों में जर्मनी में 5 मार्च 1933 का चुनाव हुआ जिसे हिटलर के काल का अंतिम चुनाव कहा जा सकता है। तमाम सरकारी, गैर-सरकारी संसाधनों का पूरी नग्नता से इस्तेमाल करके और दमन और आतंक की खुली कार्रवाइयों के बावजूद, इस चुनाव में भी नाजियों को अकेले पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया। नेशनलिस्ट पार्टी का समर्थन जोड़ लेने पर उसे बहुमत से सिर्फ 16 सीटें ज्यादा मिली थी। दो तिहाई बहुमत तो बहुत दूर की बात थी।

15 मार्च 1933 के दिन हिटलर के कैबिनेट की एक बैठक हुई। इस बैठक में विचार का एक प्रमुख विषय था, कैसे इस पूर्ण बहुमत को दो तिहाई बहुमत में बदला जाए। उसीमें यह तय किया गया कि कम्युनिस्ट पार्टी के जो 81 सदस्य है, उन्हें पार्लियामेंट में घुसने से रोक कर समस्या का थोड़ा सा समाधान हासिल किया जा सकता है। इसके अलावा, गोरिंग ने यह प्रस्ताव भी रखा था कि सोशल डैमोक्रेटिक पार्टी के भी कुछ सदस्यों को पार्लियामेंट में घुसने से रोका जा सकता है। और इसप्रकार, साधारण बहुमत को आसानी से दो-तिहाई बहुमत में बदल देने की रणनीति तैयार कर ली गई।

इतिहासकारों ने इस तथ्य पर गौर किया है कि उस काल में हिटलर तो पूरे जोश में था। 28 फरवरी के राष्ट्रपति के अध्यादेश से उसे यह अधिकार मिला हुआ था कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना कोई कारण बताए गिरफ्तार कर सकता है। कैबिनेट की इसी बैठक में कैथोलिक सेंटर पार्टी का भी प्रश्न उठा था और हिटलर ने साफ कहा था, उनकी परवाह न करें। वे हमारे खिलाफ एक शब्द नहीं बोल पायेंगे। नेशनलिस्ट पार्टी के हगेनबर्ग को हिटलर के हाथ में सारी सत्ता के संकेंद्रण से चिंता थी, लेकिन उसे भी डरा-धमका कर दबा दिया गया।

और इसप्रकार, हिटलर ने जर्मन पार्लियामेंट में अपनी अल्पमत की पार्टी को दो-तिहाई बहुमत की पार्टी में बदल कर खुद को जर्मनी का एकछत्र शासक बना लिया। इसके बाद के उसके जुल्मों और दरींदगी की कहानी सारी दुनिया जानती है।

लोकसभा में कांग्रेस के 25 सदस्यों को एकमुश्त सदन से निकाल कर सुमित्रा महाजन ने सदन को चलाने की जो पेशकश की है, उसमें संसद पर एकक्षत्र अधिकार कायम करने की हिटलरी जोर-जबर्दस्ती की झलक मिलती है।

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