शुक्रवार, 7 जून 2019

इसे कहते हैं अव्यवस्थित विचार बुद्धि

-अरुण माहेश्वरी



आज के टेलिग्राफ़ में रामचंद्र गुहा का लेख है - ‘शाश्वत बुद्धिमत्ता’ (Timeless Wisdom) । इस लेख के मूल में है 14 वीं सदी के अरबी विद्वान इब्न खाल्दुन का एक कथन जिसमें वे कहते हैं कि ‘राजनीतिक वंश परंपरा में तीसरी पीढ़ी के आगे तक राजनीतिक प्रभाव और साख नहीं चल पाती है ।’ इसी शाश्वत बुद्धिमानी की बात के आधार पर उन्होंने सोनिया गांधी को यह सलाह दी है कि वे राहुल गांधी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखने का अपना हठ छोड़ दें ।

जाहिर है कि गुहा इस महान बुद्धि का परचम इसीलिये लहरा पाए क्योंकि 2014 और 2019 में दो बार लगातार राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस मोदी के हाथों पिट गई । गुहा के लिये इस बात का कोई मायने नहीं है कि इन दोनों चुनावों में ही, विशेष तौर पर इस बार के चुनाव में, मोदी को पूरे देश के पैमाने पर चुनौती देने वाला दल कांग्रेस ही था ।

गुहा यह नहीं सोच पा रहे हैं कि जनतंत्र में चुनाव में अगर एक दल जीतता है तो हारने वाले दल का महत्व कम नहीं हो जाता । लेकिन वे तो वंशवाद के विषय को उठा कर जनतंत्र पर राजशाही के तर्क को लागू करना चाहते हैं, जिसमें राजा के अलावा अन्य किसी की कोई हैसियत नहीं हुआ करती है । मोदी भी यही समझते हैं । जनतंत्र के अंदर सभी फासीवादी ताक़तें शासन की राजशाही परंपरा को क़ायम करने में लगी होती हैं जिसमें एक राजा और बाक़ी सब प्रजा होते हैं ।

यही वजह है कि गुहा राहुल गांधी के नेतृत्व की कांग्रेस की पराजय को एक परम सत्य मान रहे हैं । यह जानते हुए भी कि भारत में पिछले तीस साल से नेहरू गांधी परिवार का कोई प्रधानमंत्री नहीं रहा है, वे कांग्रेस में वंशवाद के अलावा दूसरा कोई सच नहीं देख पा रहे हैं ।

बहरहाल, इब्न खाल्दुन के जिस कथन को गुहा अजर-अमर बता कर राहुल गांधी के राजनीतिक नेतृत्व के अंत की कामना कर रहे हैं, वे ज़्यादा दूर नहीं, भारत के ही हाल के इतिहास को देखते तो उन्हें पता चल जाता कि राजशाही में वंश-परंपरा कितनी पीढ़ियों तक बाक़ायदा क़ायम रहती है । बाबर के काल (1526-1530) से लेकर बहादुर शाह (1837-1857) के बीच के मुग़ल साम्राज्य की छठी पीढ़ी के औरंगज़ेब ने साम्राज्य को सबसे बड़ा विस्तार दिया था । दुनिया का इतिहास सदियों तक एक ही वंश के शासन के इतिहास से भरा हुआ है ।

इसीलिये, जिस तर्क पर गुहा राहुल को राजनीतिक पटल से हट जाने की सलाह दे रहे हैं, वह एक पूर्वाग्रह-ग्रस्त अव्यवस्थित विचार-बुद्धि के उदाहरण के अलावा और कुछ नहीं है । हम यहाँ उनके लेख का लिंक दे रहे है :

https://m.telegraphindia.com/opinion/why-sonia-gandhi-should-read-ibn-khaldun/cid/1691973?ref=opinion_opinion-page

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