बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

कैंसर की कोशिकाओं का जीनोम तैयार






आज के ‘टेलिग्राफ’ के पहले पेज पर वैज्ञानिक खोजों की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक खोज की खबर है जिसमें बताया गया है कि कम से कम 38 प्रकार के कैंसर के 2500 से अधिक ट्यूमर्स की कोशिकाओं के जीन्स के परिवर्तन पथ के पूरे नक्शे, जीनोम को तैयार कर लिया गया है । इस काम को चार महादेशों के 750 लोगों और संस्थाओं ने मिल कर किया है । इस जीनोम से पता चलता है कि इस परिवर्तन पथ में इन जीन्स में तकरीबन चार करोड़ 70 लाख परिवर्तन होते हैं जिनमें से 705 परिवर्तनों का बार-बार आवर्त्तन होता है । इससे पता चलता है कि ट्यूमर के बनने में इन आवर्त्तित परिवर्तनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । इतने तमाम परिवर्तनों के मूल तक जाते-जाते यह लक्षित किया गया है कि आदमी के शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले जीन्स के कैंसर ट्यूमर का रूप लेने के काफी पहले इनमें मूलतः ऐसे चार-पांच प्रकार के परिवर्तन होते हैं जो कोशिकाओं को कैंसर की दिशा में ढकेल दिया करते हैं । सिर्फ पांच प्रतिशत मामलों में ही इन परिवर्तनों को नहीं पाया गया है ।

इस प्रकार इस खोज से सबसे पहले तो यह अंतिम तौर पर स्थापित हो गया है कि कैंसर एक जेनेटिक रोग है । कैंसर को आदमी के शरीर की कोशिकाओं में मूल रूप से पांच प्रकार के जेनेटिक परिवर्तनों का ही परिणाम पाया गया है, जिसे कैंसर के इलाज में एक क्रांतिकारी उपलब्धि माना जा सकता है । इससे कैंसर के उभर कर सामने आने के काफी पहले ही शरीर में उसके बनने की प्रक्रिया को देखा जा सकेगा और बहुत प्रारंभिक स्तर पर ही इन बिगड़ी हुई कोशिकाओं को ट्यूमर का रूप लेने से रोकना संभव हो पायेगा । इससे कैंसर की ऐसी चंद दवाओं का बनना अब संभव हो पाएगा जो सिर्फ गलत दिशा पकड़ चुकी कोशिकाओं पर हमला करेगी, बाकी स्वस्थ कोशिकाएं उनसे प्रभावित नहीं होगी ।

यह खोज कुछ उसी प्रकार की है जैसे मनोविश्लेषण में आदमी की विक्षिप्तता के मूलभूत कारणों को उसके जन्म के बाद उसके चित्त के निर्माण की प्रक्रिया के बिल्कुल प्रारंभिक चरण के खास प्रसंगों और परिवेश की जकड़नों में पाया गया है और मनोचिकित्सा के क्रम में खास प्रक्रियाओं के जरिये उन्हें खोज कर उनके प्रभावों को दूर करने के उपक्रम किये जाते हैं । जैसे हमारे तंत्र की भाषा में 'महाजाल’ के प्रयोग से समस्त अध्वाओं के मध्य से 'प्रेत के चित्त' को खींच कर बाहर स्थित करने की पद्धति की चर्चा की जाती है । मनोविश्लेषण के भीष्म पितामह सिगमंड फ्रायड ने भी एक ही चीज के आवर्त्तन से ही विक्षिप्तता के लक्षणों की पहचान की बात कही थी ।

इस प्रसंग में देखने की बात यह होगी कि यह खोज शरीर के उन संकेतकों की खोज करने में कहां तक सक्षम होती है जिनसे इन जीन्स के प्रारंभिक पांच भटकावों के कारणों का भी पता लग सके ताकि मनुष्य के आरोग्य के बारे में एक मूलगामी वैकल्पिक दृष्टि विकसित की जा सके । इसी बिंदु पर कैंसर एक जेनेटिक रोग और कैंसर एक शारीरिक रोग को एकात्म रूप में देखते हुए उससे मुकाबले की दैनंदिन चर्याओं को गहन विचार का विषय बनाया जा सकता है । अभी तक जिन रोगियों के नमूनों से यह जिनोम पूरा हुआ है, उनके निजी जीवन से जुड़े तथ्यों का विश्लेषण नहीं किया जा सका है । उनके लिंग, उनके परिवारों का चिकित्सकीय इतिहास, उनकी अपनी अन्य बिमारियों और इलाजों का इतिहास वगैरह इस अध्ययन के फल को आगे व्यवहार में लाने के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि यह पहले ही देखा जा चुका है कि आदमी की वंशानुक्रमिक संरचना पर और कई बाहरी चीजों का, मसलन् वे जहां रहते है, वहां के मौसम, खान-पान और दूसरी सांस्कृतिक आदतों का भी असर पड़ता है ।

आज कल पश्चिम के चिकित्सा संबंधी गवेषणाओं के जगत में इस विषय पर खोज को भी काफी बल दिया जा रहा है, जीन्स के कैंसर की दिशा में भटकाव को रोकने में शरीर की खुद की प्रतिरक्षात्मक शक्ति के विकास के पहलू पर, इम्यूनोथिरैपी पर । जीनोम पर चल रहे अगले चरण में आदमी के निजी जीवन से जुड़े तथ्यों को समाहित करने की एक बड़ी चुनौती रहेगी । कैंसर कोशिकाओं के परिवर्तन पथ के ऐसे एक समग्र नक्शे के तैयार हो जाने से निश्चित तौर पर कैंसर के इलाज की खास दवाओं के विकास के कामों का रास्ता सुगम होगा ।


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