मंगलवार, 25 जून 2024

मृत्युमुखी मोदी सरकार !

—अरुण माहेश्वरी 



मोदी-3  तेज़ी के साथ एक death-drive (मृत्यु उद्दीपन) में फँसी हुई दिखाई देने लगी है ।


यह सच अनायास ही हमें फ्रायड और जॉक लकान के मृत्यु-उद्दीपन संबंधी सूत्रों की याद दिला रहा है । 


आनंद सिद्धांत (जिसका अर्थ होता है प्रमाता का स्वीकृत मर्यादाओं के साथ निबाह करते हुए चलना) से हट कर प्रमाता जब अपने उल्लासोद्वेलन की दिशा में बढ़ता है तो उसके सामने कैसे-कैसे ख़तरे होते है, फ्रायडीय मनोविश्लेषण का सिद्धांत उसी पर टिका हुआ है । 


प्रमाता जब विकल होकर सभी मर्यादाओं को कुचलते हुए बढ़ना चाहता है तो फ्रायड ने कहा था कि इससे हमेशा यह ख़तरा रहता है कि वह आत्मपीड़क या परपीड़क मनोदशा के चक्र में फँस जाए । जॉक लकान ने प्रमाता में मृत्यु-उद्दीपन को इसी चक्र की परिणति बताया था । ऐसे मनोरोगी के लिए जब परिस्थिति बेहद प्रतिकूल हो जाती है तब उसकी विकलता इतनी ज़्यादा बढ़ जाती है कि वह अपने जुनून के लिए मर-मिटने पर उतारू हो जाता है । 


उदाहरण के तौर पर हमने देखा है कि कैसे बालीवुड के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत तीव्र आत्मपीड़क मनोदशा से निकल न पाने के अवसाद में आत्म हत्या की ओर बढ़ गए थे । इसी का एक राजनीतिक उदाहरण हमारे मोदी जी हैं जो अपनी जुनूनियत के चलते पिछले दस साल से भयानक परपीड़क तानाशाह की भूमिका में रहे हैं । 


आज मोदी-3 की बदली हुई प्रतिकूल परिस्थितियों में मोदी की वही परपीड़क उत्तेजना इतनी तीव्र हो गई है कि वे इसके चक्र में फँस कर मर मिटने पर उतारू हो गये हैं। 


स्पीकर पद पर चुनाव की परिस्थिति पैदा करके मोदी सरकार ने अपने अंदर के इसी मृत्यु-उद्दीपन का परिचय दिया है । 


ज़ाहिर है कि आगे यह दृश्य हमें बार-बार देखने को मिलेगा । और हम पायेंगे कि अचानक एक दिन यह सरकार किसी मामूली मुद्दे पर ही मृत्यु के कुएँ में छलांग लगा लेगी । इस सरकार के तमाम लक्षणों से कोई भी इसका अनुमान लगा सकता है । 

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