गुरुवार, 21 नवंबर 2024

रूपक कैसे बनते हैं !

−अरुण माहेश्वरी




आज के ‘टेलिग्राफ’ में रविवार के खास पन्ने ‘इनसाइट’ में एक दिलचस्प रिपोर्ताज है – A House for Bygone (व्यतीत का घर) । इसकी लेखिका अनुसूया बसु ने कोलकाता के बालीगंज इलाके के गरियाहाट, फर्न रोड, बालीगंज गार्डेन्स आदि पर बने हुए कुछ पुराने घरों के नामों को देख कर उन्हें इस रिपोर्ताज का विषय बनाया है । 

मसलन् बालीगंज सर्कुलर रोड पर एक तिमंजिला पुराना मकान है जिसके साथ बड़े करीने से एक आम के पेड़ के साथ एक बगीचा और बरामदा है । इस मकान का नाम है – सुचारु । शादी के बाद से वहां रह रही परमिता गुप्ता ने अनुसूया को बताया कि यह मकान 1970 में उसके ससुर जिवांशु मोहन गुप्ता ने बनाया था । इसका नाम ‘सुचारु’ उन्होंने अपनी मां के नाम पर रखा था । मकान के बाहर के नाम-पट पर उनके ससुर की अपनी लिखावट में ही ‘सुचारु’ लिखा हुआ है । 

इसी सड़क पर आगे सुचारु की तरह ही एक मकान है ‘ब्रजनंदिनी’ । इस मकान में इतिहासकार वरुण डे रहते थे । इससे सटा हुआ हूबहू वैसा ही एक मकान है जिस पर कोई नाम नहीं है । वरुण डे की बेटी उर्मीला ने अनुसूया को बताया कि उनके दादा बसंत कुमार डे और चक्रवर्ती नाम के उनके एक मित्र ने मिल कर 20 कट्ठे की यह जमीन गौरीपुर के जमींदार ब्रजेन्द्र किशोर रायचौधरी से खरीदी थी । दोनों मित्रों ने इस जमीन पर एक जैसे दो घर बनाये और उन्होंने तय किया था कि वे इन दोनों के बीच कोई दीवार नहीं बनायेंगे। बसंत कुमार ने जमींदार ब्रजेन्द्रनाथ और नगेन्द्र नंदिनी के सम्मान में इस घर का नाम ब्रजनंदिनी रख दिया । 

उर्मीला ने अनुसूया को बताया कि कैसे उनका बचपन इस घर के आंगन में उत्पात मचाते हुए खेलते-कूदते बीता था । बाद में दूसरा घर बिक जाने से दो मकानों के बीच दीवार खड़ी हो गई है, पर नाम का पट सिर्फ एक मकान के साथ रह गया है। 

इसी प्रकार अनुसूया ने बेहाला में सुमन गांगुली के एक घर का जिक्र किया है जिसका नाम है – कींकर्तव्यविमूढ़ । गांगुली ने अनुसूया को बताया कि इस घर का यह विचित्र सा नाम उनकी पत्नी ने रखा था । यह घर उनके लिए शुभ भी नहीं रहा। पत्नी का देहांत हो गया, परिवार के सब लोग बिखर गए । अब वे इसे बेच देने की फिराक में है । इस मकान की देख-रेख करना मरीन इंजीनियर गांगुली के वश में नहीं है।

इसी संदर्भ में अनुसूया बताती है कि एक कंसलटेंट स्टेटिशियन महुआ सेन के  शांतिनिकेतन के घर का भी यही नाम है – कींकर्तव्यविमूढ़ । महुआ ने उसे बताया था कि घर बना लेने के बाद लोगों ने कहा कि वहां की जमीन काफी बालूई है । इसके कारण वह मकान कभी भी गिर सकता है । लेकिन मकान बन चुका था । अब उसके पास दूसरा कोई चारा नहीं था । इसीलिए उसने मकान का नाम रख दिया – कींकर्तव्यविमूढ़ । 

अनुसूया लिखती है कि महुआ की दादी की अपनी चीजों को एक अलग नाम देने की खास फितरत थी। वे अपने चश्मे को दृष्टिनंदन कहती थी, छाते को मालती । महुआ ने खुद जब कोलकाता के नागेर बाजार में अपना फ्लैट लिया तो दादी की परंपरा में ही उसने उसका नाम दिया – प्रत्युत्पन्नमति, अर्थात् हाजिर बुद्धि, फौरी विचार ।

इसी प्रकार अनुसूया ने इस रिपोर्ताज में और भी कई मकान के नामों की कहानी बताई है । अनुसूया लिखती है कि कोलकाता के पुराने इलाकों में मकानों का स्थापत्य अपने-अपने समय के, खत्म हो रही सभ्यताओं के साक्ष्य के रूप में मौजूद है । उनके नाम ऐसे पासवर्ड की तरह है जिनसे आप उनके पीछे के लंबे इतिहास और उन प्रभावों, विचारों और विचारधाराओं में प्रवेश कर सकते हैं जो गारा-पानी में ढल कर एक मकान और घर का रूप लिया करते हैं ।

महुआ का यह कथन हमें भाषा की निर्मितियों के नियमों की याद दिलाता है । संकेतक, संकेतित और संकेतन के अपने प्रसिद्ध सिद्धांत के संदर्भ में मनोविश्लेषक जॉक लकान ने कहा था कि रूपकों को तैयार करने का सबसे आसान उपाय है दो संकेतकों को एक साथ मिला दो । हम यहां यही देख रहे हैं कि कैसे मकान और उसका नाम, इन दो संकेतकों के विलय से एक रूपक तैयार हो रहा है, जो खुद में एक अलग ही कहानी का बखान किया करता है !

अन्यथा, Signifier/signified (S/s) के नियम के अनुसार संकेतक संकेतित पर छाया रहता है, जैसे तने पर पेड़ । तना नहीं, उस पर छाया पेड़ ही वृक्ष की पहचान हो जाता है।


10.11.2024



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