(ग्रोक एआई की वर्तमान चर्चा पर एक टिप्पणी)
-अरुण माहेश्वरी
भारत में अभी ग्रोक एआई (Grok AI) पर भारी चर्चा चल रही है ।
यह चर्चा केवल एक तकनीकी नवाचार की चर्चा नहीं रह गई है। यह उस सत्ता-संरचना के लिए अप्रत्याशित संकट बन चुकी है, जो ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ के ज़रिए झूठ, अर्धसत्य और प्रचार की सुनियोजित दुकानदारी के रूप में चल रही है।
ग्रोक, भले अपने मूल में मुनाफ़े की प्रवृत्ति के कारण ही, सत्ता के इस प्रचार के एकाधिकार को चुनौती दे रहा है और उस आभासी ‘सत्य’ को ध्वस्त करने का काम कर रहा है जिसे वर्षों से फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम आदि मंचों पर कठोर नियंत्रण से चलाया जा रहा है ।
पर यह एक मूलभूत सवाल है कि क्या ग्रोक की यह चुनौती किसी स्वतंत्रता की घोषणा की तरह है? क्या यह इस बात का प्रमाण है कि एआई ने नैतिकता और सचाई का झंडा उठा लिया है?
ऐसा नहीं है ।
आज जो दिख रहा है, वह निश्चित तौर पर तकनीक से एक हद तक मनुष्य के अपसरण का परिणाम है – यानी तकनीक अब उस जगह आ पहुँची है जहाँ वह न तो मनुष्य की सत्ता की अनुकृति है, न ही पूरी तरह से उसके अधीन कोई उपकरण। वह स्वयं में एक ऐसी गतिकता (dynamics) बन चुकी है, जिसे जॉक लकान ‘the real without law’ कहते हैं ।
एक ऐसा यथार्थ, जिसमें कोई विधिसम्मतता (lawfulness) या कोई मूल्य-बोध नहीं होता।
यह तकनीक अब ‘झूठ’ और ‘सच’ के फर्क को भी उसी के आधार पर तय करती है, जो उसके एल्गोरिथ्म को सूचित करता है । उसके स्रोत, डाटा, प्रमाण इसके मूल में हैं ।
ऐसे में ज़ाहिर है कि सत्ता का झूठ, चाहे जितना ‘प्रचारित’ हो, तकनीक की स्वायत्त एल्गोरिथ्मिक प्रक्रिया के सामने टिक नहीं पाता है ।
पर यह भी सच है कि ग्रोक जैसी तकनीकों की इस वर्तमान ‘स्वतंत्रता’ को स्वतंत्रता कहना भी एक भ्रांति ही कहलायेगा, क्योंकि यह स्वतंत्रता किसी मूल्य या नैतिक विवेक से नहीं उपजी – बल्कि उस मुनाफ़े की प्रवृत्ति से उत्पन्न हुई है, जो पूँजी की अपनी गतिकता का मूल है।
एलोन मस्क उसी लक्षण, अर्थात् मुनाफे की प्रवृत्ति का जीवंत उदाहरण हैं । वह कोई विचारक या नैतिकतावादी नहीं, बल्कि मुनाफ़े की मशीन का एक सजीव रूप है ।
मस्क की सचाई किसी से छिपी नहीं है । डोनाल्ड ट्रंप जैसे आदतन झूठे और सर्वाधिकारवादी व्यक्ति के खुले समर्थक मस्क में किसी भी स्वतंत्रता या सत्य का कोई नैतिक आग्रह नहीं है ।
मनोविश्लेषण की भाषा में कहें को यह केवल एक हिस्टेरिकल गतिकता है जो मुनाफ़े की प्रवृत्ति के लक्षण से पैदा होती है । अन्यथा वे कभी अचानक सेंसरशिप के पक्ष में तो कभी अचानक मुक्त सूचना के पक्ष के बीच डोलते रहते हैं ।
ग्रोक का यह वर्तमान ‘विरोधी’ रूप उसी हिस्टीरिया का उत्पाद है । यह न किसी सच्चाई की खोज है, न किसी मुक्ति की कामना । इसके मूल में भी केवल लाभ के नये-नये स्वरूपों की तलाश काम कर रही है ।
फिर भी यह प्रश्न उठता है – क्या एलोन मस्क ग्रोक के जवाबों को अपनी इच्छा से नियंत्रित कर सकते हैं?
तकनीकी दृष्टि से कहें तो हाँ । वे ग्रोक के मॉडल में बदलाव कर सकते हैं, उसे री-ट्रेन कर सकते हैं, या उसके उत्तरों पर फ़िल्टर थोप सकते हैं – जैसा ओपनएआई या अन्य कंपनियाँ करती रही हैं। आज डीप सीक जैसे चीनी एआई पर तो इसका खुला आरोप है ।
पर यह भी सच है कि यह नियंत्रण इतना सरल नहीं रह गया है। क्योंकि जैसे ही मस्क अपने एआई को नियंत्रित करने की कोशिश करेंगे, वे अपने खुद के उत्पाद की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचायेंगे । और, यही खुद के द्वारा अपने मुनाफ़े के उस स्रोत पर चोट करना होगा जो ग्रोक का मूल तत्त्व है । इसीलिए निस्संदेह मस्क एक दुविधा में रहेंगे – नियंत्रण की इच्छा और मुनाफ़े की संभावना के बीच चयन की दुविधा में ।
तकनीक की यही स्वायत्तता सत्ता के लिए डर और आम लोगों के लिए आकर्षण का कारण बनती है।
पर यहाँ लकान का यह सूत्र याद रखना चाहिए कि “The only constant is the symptom.” यहाँ symptom अर्थात् लक्षण से तात्पर्य मुनाफे की प्रवृत्ति से ही है ।
एआई की तकनीकी स्वायत्तता कोई स्थिर स्वतंत्रता नहीं, बल्कि उसी मुनाफ़े की प्रवृत्ति से उत्पन्न लक्षण की पुनरावृत्ति है – वह लक्षण जो ‘उल्लासोद्वेलन’ (jouissance) का स्रोत होता है, जिसमें मनुष्य आनंद लेते हुए अपने ही अस्तित्व की जमीन खो देता है। पूंजी का उल्लासोद्वेलन मुनाफे की ओर प्रेरित होता है और उसी में ख़त्म भी होता है ।
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का झूठ टूट रहा है, पर इसे क्षणिक ही मानना चाहिए । उसे कोई और तकनीक, कोई और ‘लक्षण’ फिर से स्थापित कर सकता है।
इसलिए ग्रोक को केवल एक मुक्तिकामी तकनीक कहना, या मस्क को कोई नैतिक विकल्प मानना, यथार्थ को अधूरा देखना है।
हम आज एक ऐसे समय में हैं, जहाँ न तो झूठ स्थायी है, न सत्य – केवल तकनीक की गतिकता है, जो हर सत्ता को अपने भीतर समेट कर commodity (पण्य) के रहस्य में बदल देती है। यही ‘the real without law’ है – जहाँ सब कुछ चलता है, पर कुछ भी स्थिर नहीं होता ।
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