सोमवार, 5 मई 2014

दुखती रग


सरला माहेश्वरी

एनडी टीवी के रवीश कुमार लमही पंहुचे। आज (29 अप्रैल) ‘प्राइम टाइम’ पर देखा। वहां उनके साथ पूरे समय प्रेमचंद अनुरागी सुरेश दूबे जी थे। पूरी तरह प्रेमचंदमय। प्रेमचंद साहित्य उनके लिये किसी धर्म-ग्रंथ से कम हैसियत नहीं रखता। उसमें उनकी पूरी दुनिया समाहित है। बात-बात पर भाव-विह्वल हो रहे थे। प्रेमचंद की चर्चा के साथ ही कोई न कोई कहानी सुनाते हुए उनकी आंखों से आंसू झरने लगते थे।

गांव में कोई ऐसा नहीं था, जो प्रेमचंद को न जानता हो और उनकी विरासत पर गर्व न कर रहा हो। बच्चे, जवान, बूढ़े, पुरुष, औरतें। एक नौजवान बात-बात में कह रहा था - ‘प्रेमचंद की धरती पर खड़े होकर हम झूठ नहीं बोल सकते।’

रवीश कुमार अपने कैमरे के साथ प्रेमचंद के घर, स्मारक, उनके नाम से बने सरोवर और उस जगह भी गये जहां अभी धीमी गति से ‘प्रेमचंद स्मारक तथा शोध व अध्ययन केंद्र’ के निर्माण का काम चल रहा है। उन्होंने शिलान्यास के उस पत्थर को भी दिखाया जिसपर एक समय के केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री जयपाल रेड्डी और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव के साथ ही प्रेमचंद 125वी जयंती समारोह समिति के संयोजक के नाते मेरा नाम भी खुदा हुआ है।

एकबारगी, लगभग आठ साल पहले, सन् 2005 की प्रेमचंद की 125वीं जयंती के समय की यादें ताजी होगयी। भारत सरकार ने उस जयंती समारोह के लिये जिस कमेटी का गठन किया था, मुझे उसका संयोजक बनाया गया था। उस पूरे साल देश में कई कार्यक्रम किये गये। प्रेमचंद साहित्य के प्रचार-प्रसार की कई योजनाएं बनी। लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण योजना लमही में प्रेमचंद स्मारक शोध व अध्ययन केंद्र के निर्माण की थी। इसे एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान के रूप में निर्मित करने की परिकल्पना की गयी थी। देश के लेखकों और संस्कृतिकर्मियों का एक तीर्थ-स्थान और सारी दुनिया के साहित्य-प्रेमी पर्यटकों का भ्रमण-स्थल भी। इसका स्वरूप कुछ इसप्रकार का सोचा गया था ताकि भारतीय साहित्य पर शोध करने वाला दुनिया का कोई भी शोधार्थी इस संस्थान में जरूर आये। बनारस के घाट, विश्वनाथ मंदिर, सारनाथ जितना ही बनारस का एक और महत्वपूर्ण स्थल।

इसीलिये इस योजना पर अमल के लिये बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और भारत सरकार के शिक्षा विभाग को भी जोड़ दिया गया था। राज्य सरकार की भूमिका तो थी ही। माना जा रहा था कि इसके लिये संसाधनों की कोई कमी नहीं होगी। 31 जुलाई 2005 के दिन हमलोग बड़े उत्साह से इस शिलान्यास कार्यक्रम के लिये लमही पहुंचे थे। वह व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए एक कठिन समय था, कीमोथेरापी शुरू हो चुकी थी। पहला चक्र पूरा हो गया था। दूसरा चक्र 15 दिन बाद लगने को था। उसी के बीच में गयी। विमान में जयपाल रेड्डी ने कहा भी कि इस समय काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। भीड़-भाड़ की जगहों से बचना चाहिए। लेकिन बिना किसी विशेष मुश्किल के हमने उस कार्यक्रम में पूरे जोश के साथ भागीदारी की।

बहरहाल, शिलान्यास तो होगया, लेकिन असली निर्माण का काम कैसे हो, यह तय ही नहीं हो पाया। संस्कृति मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, बीएचयू और राज्य सरकार - इतनी एजेंशियों में कौन नेतृत्व लेकर इस काम को करेगा, यह निर्धारित नहीं किया जा सका और इतने साल बीत गये। इस बीच सबसे पहला झटका तभी लग गया था जब जयपाल रेड्डी की जगह अंबिका सोनी संस्कृति मंत्रालय में आगयी। बार-बार कोशिश करके भी हम प्रेमचंद को उनकी प्राथमिकता में शामिल ही नहीं करा पायें। उनको और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न जाने कितने पत्र लिखे, लेकिन उन्होंने पत्र की प्राप्ति की स्वीकृति का सौजन्य भी नहीं दिखाया। बीच में खुद प्रधानमंत्री भी संस्कृति मंत्रालय का काम संभालते थे। उनके घर जाकर हाथ से हमने चिट्ठी दी थी। लेकिन कोई जवाब नहीं।

उधर, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार नहीं रही और मायावती सरकार को प्रेमचंद से कोई लेना-देना नहीं रहा। बीच में एकाध बार बीएचयू के उपाचार्य के दफ्तर से फोन पर बात हुई, लेकिन वे भी यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें क्या और कैसे काम करना है। और इसीप्रकार समय बीतता चला गया।
हाल में उत्तर प्रदेश में फिर से समाजवादी पार्टी की जीत के बाद मुलायम सिंह को याद दिलाते हुए अपने पत्र में मैंने लिखा था कि ‘‘उत्तर प्रदेश में परिवर्तन के इस महत्वपूर्ण मुकाम पर मैं उन चंद क्षणों को याद कर रही हूं जो हमने प्रेमचंद की 125वीं जयंती के मौके पर 31 जुलाई 2005 के दिन आपके साथ बिताये थे। तब हमने लमही में उनके जन्म-स्थल पर प्रेमचंद स्मृति और शोध संस्थान के निर्माण की आधारशिला रखी थी। वह भारत के सभी साहित्य-प्रेमियों और जनवादी विचारों के लोगों को दी गयी एक महत्वपूर्ण प्रतिश्रुति थी, जिसकी प्रदेश की पिछली सरकार और केंद्रीय सरकार ने भी अन्यायपूर्ण ढंग से अवहेलना की। आज फिर प्रदेश के शासन में आपकी पार्टी की वापसी से हमें उम्मीद है कि भारत के लोगों से किये गये उस वादे की पूरी ईमानदारी और शिद्दत के साथ रक्षा की जायेगी और लमही में एक अन्तरराष्ट्रीय स्तर के साहित्य शोध संस्थान के निर्माण के जरूरी काम को पूरा किया जायेगा।’’

रवीश कुमार की रिपोर्ट में उस स्थल पर निर्माण के काम की थोड़ी सी हलचल देखकर मैं भी वैसे ही भाव-विगलित हुई जैसे सुरेश दूबे जी हो रहे थे। यह छोटी सी हलचल जैसे जिंदगी का कोई नया राग हो!
29.04.2014

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