मंगलवार, 5 मई 2015

कार्ल मार्क्स के 198वें जन्मदिवस पर सरला माहेश्वरी की कविता :


जन्मदिन का उपहार

नहीं देना चाहती
तुम्हें कोई संबोधन
तुम हर बोधन से बड़े हो

तुम्हारा नाम ही सबसे प्रिय है मुझे

इसलिये हे मार्क्स !
आज तुम्हारे जन्मदिवस पर
देना चाहती हूँ
ख़बरों के दो उपहार

पहली खबर है स्वीडन से
शोषितों में भी शोषित
दुनिया की पहली शोषिता स्त्री के बारे में

वेश्यावृति अब मान ली गयी है वहाँ
औरतों और बच्चों के खिलाफ सामाजिक हिंसा
मजबूरी में देह बेचनेवाली औरत नहीं
देह ख़रीदने वाला पुरूष और समाज भी है अपराधी

सरकार ने ही मान ली है इसे
अपनी ज़िम्मेदारी
और देखो !
देखते ही देखते ये असाध्य सा रोग
अब लगने लगा है एक साध्य बीमारी

और,
दूसरी खबर है तुर्की से

आने वाले चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी की
सभी साढ़े पाँच सौ उम्मीदवार बनी हैं महिलाएँ

नहीं यह किसी महिला अस्मिता
या किसी सामाजिक संतुलन की बात
शोषक समाज के विरुद्ध
सोच-समझ कर लिया गया निर्णय है

कहना है वहाँ की पार्टी का
महिलाएँ ही रहीं थीं सबसे आगे
उलट दिये थे उन्होंने अपने नाम लिखे सारे पुराने संबोधन
नहीं डरी थी वे आँसू गैस से
नहीं डरी थी पुलिस की गोली और डंडे की मार से
हिला दी थी उन्होंने ही शासन की चूलें
वे ही तो हैं दैनन्दिन शोषिता
सबसे शोषक, निर्मम निज़ाम की

इसीलिये
उन्हें ही, सिर्फ उन्हें ही बनाया है उम्मीदवार

है न खबर ज़ोरदार !

आज तुम्हारे जन्मदिवस पर
स्वीकार करो हमारा यह उपहार ।

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