संघ परिवार अपने राजनीतिक वर्चस्व को कायम करने के लिये किस प्रकार ‘गाय’ का इस्तेमाल कर रहा है, इसका एक और निंदनीय उदाहरण सामने आया है। इसबार उन्होंने निशाना बनाया है देश के जाने-माने रंगकर्मी, नाट्य निदेशक, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त लेखक और अभिनेता गिरीश करनाड को। हाल में जबसे महाराष्ट्र में गोमांस पर पाबंदी लगाने का कदम उठाया गया, गिरीश करनाड ने गोमांस को लेकर कुछ ऐसी बातें कही थी, जो संघ परिवार के लोगों को पसंद नहीं आईं । इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के इस जघन्य कदम के खिलाफ प्रदर्शन में शिरकत भी की थी।
करनाड के इसी जुल्म के खिलाफ संघ परिवार ने संगठित रूप से अब उनके नाटकों के प्रदर्शन पर रोक लगाने और उन्हें प्रताड़ित करने का निर्णय लिया है। पिछली 10 मार्च को उडुपी में विश्व हिंदू परिषद ने एक विराट हिंदू समाजोत्सव करके बाकायदा यह निर्णय लिया था कि प्रदेश में करनाड के नाटकों के प्रदर्शनों में बाधा डाली जायेगी। अब इस फैसले पर उनके अमल का पहला परिणाम सामने आगया है।
इसी 30 अप्रैल को मणिपाल के श्री नरसिंघे मंदिर में करनाड के एक नाटक ‘नाग मंडला’ का प्रदर्शन तय हुआ था। 1988 में लिखे गये करनाड के इस नाटक के कर्नाटक के कोने-कोने में अब तक कई प्रदर्शन हो चुके हैं। इसपर एक कन्नड़ फिल्म भी बन चुकी है। यह मनुष्य का रूप धर कर एक शारीरिक और भावनात्मक तौर पर असंतुष्ट स्त्री को अपने प्रभाव में लेने की कोबरा सांप की कहानी है। हाल में इस नाटक का दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी कर्नाटक में बोली जाने वाली टुलु भाषा में अनुवाद हुआ था और इसी भाषा में इसे श्री नरसिंघे मंदिर में खेला जाना था। उडुपी में पिछले 35 सालों से सक्रिय ‘रंगभूमि’ नाट्य मंडली इसका प्रदर्शन करने वाली थी और काफी रुपये खर्च करके उसने इसकी पूरी तैयारियां कर ली गयी थी।
लेकिन 30 अप्रैल के ठीक पहले दिन, संघ परिवार की संस्था संस्कार भारती ने मंदिर के न्यास के अधिकारियों को धमकी दी कि यदि मंदिर में करनाड के नाटक का प्रदर्शन किया गया तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। संघ परिवारियों के उपद्रव के भय से मंदिर के न्यास ने नाटक के प्रदर्शन को रोक दिया।
सांस्कृतिक क्षेत्र में संघ परिवार के ऐसे नग्न हस्तक्षेप की जितनी निंदा की जाए कम है। यह सीधे तौर पर संस्कृतिकर्मियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।
नागमंडला नाटक की दो तस्वीरें
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