-अरुण माहेश्वरी
कोई यदि किसी के बारे में कहे कि वह है तो बहुत दुष्ट और पाजी भी। मुंह का खराब, शराबी, जुआड़ी और औरतबाज भी। यहां तक कि उसपर बलात्कार का आरोप भी लग चुका है। वह किसी की परवाह नहीं करता। ‘लेकिन’ फिर भी कहूंगा कि वह बहुत साहसी है। जो सोचता है, वह कहता ही नहीं, करता भी है। फिर, स्त्रियां ही कौन सी दूध की घुली हुई है ! ताली एक हाथ से तो नहीं बजती। जिसे बलात्कार कहते हैं उसे ही ‘पीड़क आनंद’ भी कहा जाता है ! उसके पास धन है। विरोधी का जबड़ा तोड़ देने की ताकत भी है। तमाम बुराइयों के बावजूद, इन अच्छाइयों के लिये ही भला उससे कौन प्रेम नहीं करेगा !
किसी की ऐसी बातों को सुन कर एक भले, विवेकवान आदमी को क्या लगेगा ? क्या ऐसा नहीं लगेगा कि जैसे वह आदमी अपने ही किसी सगोत्र संबंधी के बारे में बोल रहा हो ! वह उसके पाजीपन और बलात्कारी रूप को जानता है, ‘लेकिन’ फिर भी उससे अपने को अलग नहीं कर पा रहा है ! उसके अपराधी चरित्र को ही उसकी खूबी बता कर उसकी प्रशंसा करने से बाज नहीं आ रहा है !
आज के ‘टेलिग्राफ’ में संघी पत्रकार स्वपन दासगुप्त के डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में लेख ‘Look out for anger” पढ़ के हमें बिल्कुल ऐसी ही अनुभूति हुई। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में उतरे ट्रम्प के बारे में स्वपन दासगुप्त कहते हैं कि यह खरबपति अपनी गंदी जुबान के लिये सारी दुनिया में बदनाम हो चुका है। उसने डेमोक्रेटिक हिलैरी क्लिंटन के बारे में यहां तक ट्वीट किया है कि ‘‘ जो अपने पति को संतुष्ट नहीं कर सकती, वह अमेरिका को क्या संतुष्ट करेगी।’’ मेक्सिको के आप्रवासियों के बारे में कहता है कि मेक्सिको की सरकार ने अपने इन अवांछित अपराधियों, नशेडि़यों, बलात्कारियों... को अमेरिका में ढकेल दिया है। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को वह कोरी बकवास मानता है। मुसलमानों का तो अमेरिका में प्रवेश ही प्रतिबंधित कर देना चाहता है। इसीप्रकार, तमाम तरह की गंदी से गंदी बातों को वह दहाड़ते हुए कहता घूम रहा है।
स्वपन दासगुप्त ने अपने लेख में इन सब बातों को स्वीकारा है।
लेकिन ! इसी ‘लेकिन’ में छिपी हुई है ट्रम्प के प्रति उनकी सारी सगोत्रीय ‘सहानुभूतियां’! आगे, वे साफ कहते हैं कि अमेरिका का एक तबका अमेरिका को इतना ही असभ्य और जंगली देखना चाहता है। और इसके लिये वे लोग दोषी हैं जो उस समाज में अल्पसंख्यकों के विषयों पर कुछ ज्यादा ही चिंतित रहते हैं। ये लोग उनकी भावनाओं का अनादर करते हैं जिनकी राष्ट्रीयता के विचार उनकी परंपरा में निहित है और सच है। ‘‘ट्रम्प की परिघटना अमेरिका जैसा था, उसे वैसा ही बनाये रखने के ‘श्वेत’ आक्रोश का एक अपरिष्कृत विस्फोट है।’’(The Trump phenomenon is a crude explosion of ‘white’ anger to keep America what it was.)
अमेरिका की तरह की एक महाशक्ति में जिस ट्रम्प के उदय को सारी दुनिया मानवता के अस्तित्व के लिये हिटलर से भी बड़े खतरे के रूप में देख रही है, स्वपन दासगुप्त अपने इस लेख के अंत में उसके पीछे की ‘जनता’ को अर्थात ‘जन-भावनाओं’ को समझने की बात कह रहे हैं!
इसे ही कहते हैं - बौद्धिक कमीनापन! दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों की एक सबसे बड़ी विशेषता। इन्हें खींसे निपोड़ कर अपनी ‘दुष्टताओं’ को स्वीकारने से कभी कोई परहेज नहीं हुआ करता है।
भारतीय पत्रकारिता में स्वपन दासगुप्त ऐसे चरित्र का एक सबसे प्रकट उदाहरण है। अंबर्तो इको की शब्दावली में इसे एक प्रकार की कलात्मक ‘जघन्यता’ भी कह सकते हैं, जिसके बारे में लगभग सभी सौन्दर्यशास्त्रीय सिद्धांतों में, प्राचीन युनान से लेकर आधुनिक काल तक, माना गया है कि एक प्रकार के निष्ठापूर्ण और प्रभावशाली कलात्मक चित्रण से किसी भी प्रकार की जघन्यता का उन्मोचन किया जा सकता है।’’
(“And, talking of artistic ugliness, let us remember that in almost all aesthetic theories, atlest from ancient Greek to Modern times, it has been recognized that any form of uglinesscan be redeemed by a faithful and efficacious artistic portrayal.” - On Ugliness, edited by Umberto Eco, Page- 19)
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