मंगलवार, 9 जुलाई 2019

दिल्ली के स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा प्रसंग :



दिल्ली सरकार की स्कूलों में सीसीटीवी कैमरा का विषय निश्चित रूप से एक सही विवाद का है ।

अरविंद केजरीवाल का कहना है कि बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते हैं, किसी और चीज के लिये नहीं । उनकी पढ़ाई अच्छी करने के लिये इस प्रकार की तकनीकी मानिटरिंग पर क्यों कोई सवाल उठा रहा है ?

बच्चों के स्कूल और अनुशासन, बल्कि बच्चे और अनुशासन का विषय एक बहुत जटिल सवाल हैं । आदमी की पहचान के सारे रूप जहां अन्य की उपस्थिति से तय होते हैं, वहीं उसका अहम् उन दबावों से इंकार के आधार पर बनता है । मनुष्य के मन की स्वातंत्र्य गति का सामाजिक परिवेश की बाधाओँ से द्वंद्व ही मनुष्यों के चित्त के जगत का विस्तार करते हैं ।

आधुनिक काल के मानव मन का मूलभूत मंत्र है स्वतंत्रता । मन के संदर्भ में आधुनिक तकनीक का भी मूलत: इसीलिये स्वागत किया जाता है कि वह मनुष्य को अनेक अनावश्यक कार्यों के दबावों से मुक्त करती है । लेकिन विडंबना यह है कि यही तकनीक आज राज्य के हाथ में पड़ कर राज्य की स्वतंत्रता को बल पहुंचाते हुए नागरिक की स्वतंत्रता के हनन का हेतु बन रही है । तकनीक का यह पागलपन, इससे जुड़ी बुराइयों का दुष्चक्र हमें आगे ले जाने के बजाय पीछे धकेलने लगता है ।

हम बचपन में जिन स्कूलों में पढ़े हैं, वे आज की तरह के आधुनिक मांटेसरी स्कूल नहीं थे । मारजा गुरू के विद्यालय थे, जिनमें मास्टर हाथ में छड़ी लिये रहता था । बच्चों की उंगलियों में बरता या पेंसिल दबा कर उन्हें असहनीय पीड़ा देने में उन मास्टरों की सानी नहीं थी । लेकिन मां-बाप भी इसी में बच्चों की भलाई समझते थे ।

आज की आधुनिक दुनिया में मां-बाप तक का बच्चों पर हाथ उठाना बाकायदा कानूनी अपराध माना जाने लगा है ।

इसकी मूल वजह है — बचपन से ही आदमी में स्वतंत्रता के मूल्यों को प्रतिष्ठित करने के सचेत प्रयत्न । तमाम मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह देखा गया है कि आदमी में किसी भी प्रकार की दमित भावनाएं ही उसके मस्तिष्क के विकास में सबसे बड़ी बाधा साबित होती हैं । दमन का कोई भी रूप, भले वह शिक्षा के नाम पर ही क्यों न हो, मनुष्यत्व के लिये हितकर नहीं है । परिवेश की उनमुक्तता ही आदमी के चित्त के स्वस्थ विकास के हित में होती है ।

स्कूलों को सुरक्षित रखना, बच्चों को भयमुक्त रखना किसी भी स्कूल प्रशासन का दायित्व है । लेकिन इसके नाम पर बच्चों को शुरू से ही इस प्रकार की खुफिया आंख की निगरानी में पालना उनके अंदर उनमुक्तता के सहज भाव को बाधित करने के समान है । यह घर की चारदिवारी के बाहर बन रहे बच्चों के मानस को बाधित ही करेगा । घर के जिस बंद और सीमित परिवेश से मुक्ति के लिये स्कूल की परिकल्पना की जाती है, यह फिर तकनीक के जरिये स्कूल को भी बंद और सीमित बनाने का काम करेगा । यह मां-बाप के अभिभावकीय अहम् की भले तुष्टि करें, लेकिन स्कूल में बच्चे के उनमुक्त विकास के हित के विरुद्ध होगा । जिस चीज से बच्चों को बचाने के लिये स्कूल हुआ करते हैं, यह उसे ही बल पहुंचायेगा । बच्चों में जिस स्वतंत्र मूल्य-बोध को पैदा करने के लिये स्कूल होते हैं, यह उसे कमजोर करेगा ।

वैसे हमारे देश में, जो कोई समाज को जितना पीछे ले जाने वाले कदम उठायेगा, राजनीतिक तौर पर उसे उतना ही अधिक लाभ होगा । आम आदमी पार्टी भी इससे लाभान्वित होगी । दूसरी कोई पार्टी भी इसके विरोध में एक शब्द नहीं कहेगी ।

राजनीति की चिंता तात्कलिक लाभ से जुड़ी होती है, पीढ़ियों के बाद सामने आने वाले सभ्यता के अच्छे-बुरे परिणामों से नहीं । बच्चों के क्लास रूम को अच्छा बनाने में सीसीटीवी कैमरा जैसी चीज की कोई भूमिका नहीं हो सकती है ।       

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