−अरुण माहेश्वरी
कल (18 अगस्त 2025) के ‘टेलिग्राफ़ ‘ में प्रकाशित न्यूयॉर्क टाइम्स से लिया गया लेख “Seggs, Rizzs and Algospeak” हमें आज के समय में भाषा-निर्मिति की एक नई सच्चाई से अवगत कराता है। TikTok और सोशल मीडिया मंचों ने किशोरों के बीच एक ऐसी भाषा गढ़ दी है जिसे algospeak कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति कोरी शरारतों, खेल या मज़ाक से नहीं हुई है, बल्कि algorithmic सेंसरशिप की वजह से हुई है। जिन शब्दों को “खतरनाक” या “अनुचित” मानकर इन मंचों पर काम कर रहा एल्गोरिद्म दबा देता है, उन्हें किशोरवय का एक तबका ध्वनि और वर्तनी के छोटे-छोटे खेल से नए रूप देकर उस सेंसरशिप से उन्हें बचा लेता है । उनके यहाँ Sex बन जाता है seggs, dead बन जाता है unalive, और suicide sewer slide ।
जाहिर है कि यह भाषा किसी भी व्याकरणिक नियम की परवाह किए बिना इस वय के समूहों में वैसे ही आनंद से पैदा हो रही है, जैसे बच्चे माँ की बोली से ध्वनि और लय के रूप में आनंदित होते हैं। वह ध्वनि जो सहृदयों में आनन्द का चमत्कार है, जिसे हमारे आचार्य आनंदवर्धन काव्य की आत्मा कहते हैं, जो “पूर्णरूप से नवीन” होता है । जिसे काव्य जगत की सृष्टि के लिए कारण-कलाप की कोई आवश्यकता नहीं होती । और जिसे उन्मूलित करने के लिए हर सत्ता आमादा होती है ।
अभिनवगुप्त के शब्दों में –
“अपूर्व यद्वस्तु प्रथयति बिना कारणकलां
जगद्ग्रावप्रख्यं निजरसभरात्सारयति च ।
(कारण के बिना ही जो सर्वथा नवीन वस्तु को उद्भासित करता है; अपने रस के भार से जो पत्थर समान जड़ जगत् को सरस तथा गतिमान बना देता है ।)
गौर करने लायक बात है कि हम यहां जिस ध्वनि-चमत्कार की बात कर रहे हैं वह अकारण नहीं, बेहद सकारण है । यह सत्ता के उन्मूलनकारी प्रहारों के प्रतिरोध से पैदा होने वाले चमत्कारिक आनन्द का कारण है । यह वह आनंद है जो एल्गोरिद्म की सेंसरशिप को ठुकराने की इच्छा से उत्पन्न होता है । अभिनवगुप्त के शब्दों में मन में निर्वृति स्वरूप, शांति, संतोष और आनंद पैदा करने वाले चमत्कार की उत्पत्ति का कारण ।
इसमें हमारे लिए अतिरिक्त मजे की बात यह है कि इसी उपक्रम के बीच से हम भाषाओं और भाषिक समुदायों के गठन की सामाजिक प्रक्रियाओं के संकेत भी पा रहे हैं ।
जॉक लकान ने जब प्रमाता की भाषा के लिए lalangue शब्द गढ़ा था, तब उनका उद्देश्य यही दिखाना था कि भाषा केवल संकेतक (signifier) और संकेतित (signified) के बीच के संबंध का अनुशासन नहीं है। उसमें एक और स्तर है, ध्वनि का, लय का, उच्चारण का, जहाँ शब्द अर्थ से पहले आनंद (jouissance) पैदा करते हैं। यही कारण है कि बच्चा भाषा को पहले ध्वनि के रूप में पकड़ता है, न कि अर्थ के रूप में, और उसीसे आनंदित होकर किलकारियां भरता है। अर्थात् यह ध्वनि ही प्रमाता के उल्लासोद्वेलन का मूल स्रोत है, जिसे यदि हम फिर से अभिनवगुप्त की भाषा में परिभाषित करना चाहे तो यह भी कह सकते हैं – ‘स्वात्मपरामर्श की शेषता का नाद’ ।
हम जब किशोरों की इस नई भाषा algospeak की बात करते हैं तब भी हमारा लक्ष्य भाषा को अर्थ से हटाकर ध्वनि, मज़ाक और समूह की पहचान के स्तर पर उसे घटित होते हुए देखना हैं। मसलन्, rizz शब्द को लें। कहते हैं कि यह charisma का एक छोटा और विकृत रूप है, पर किशोर इसे एक ऐसे आकर्षण के लिए प्रयोग करते हैं जिसमें sexual appeal और coolness का मिश्रण होता है। यह शब्द एक गुदगुदी पैदा करता है। एक खिलंदड़पन जिसमें ध्वनि, सामाजिक संकेत के साथ फैंटेसी से जुड़ी आत्म-छवि, सब एक साथ मिल जाते हैं। इसी तरह delulu है, जो delusional का छोटा रूप है । डॉन क्विगजोट की तरह की एक हास्यास्पद फैंटेसी गढ़ने वाला शब्द । जब कोई कहता है कि “he’s my boyfriend, I’m just being delulu,” तो वह गंभीर अर्थ में नहीं बल्कि फैंटेसी को मज़ाक के रूप में जीने की एक सामूहिक अनुभूति है। इस प्रक्रिया में एल्गोरिद्म की बड़ी भूमिका है क्योंकि वह उस दमन की भूमिका निभाता है, जिससे अवचेतन में दबी हुई इच्छा की फिसलन की तरह ऐसे-ऐसे नये पद या चुटकुले (joke) जन्म लेते है । हम जब इसमें मनुष्य के भावों की अदम्यता का स्वरूप देखते हैं तो यह सब और भी सुंदर लगने लगता है ।
आज (19 अगस्त ’25) के टेलिग्राफ में ऐसी ही एक और खबर है जिसका शीर्षक है − Are you skibidi? इसका पहला वाक्य है – अंग्रेजी भाषा में यह कैसी skibidi हो रही है ? (What the skibidi is happening to the English language?)
इस साल कैम्ब्रिज डिक्शनरी में जो 6000 नए शब्द जोड़े गये हैं, उनमें एक शब्द यह भी है । यह यूट्यूब पर एक सिरीज से उपजा निर्रथक सा शब्द है जिसका ऐंकर इसका प्रयोग बात-बात में बकवास के अर्थ में करता रहता है । वहीं से यह शब्द नौजवानों के बीच लोकप्रिय हो गया और गड़बड़झाले के अर्थ में अंग्रेजी डिक्शनरी तक में शामिल हो गया है । इसी प्रकार पारंपरिक पत्नी के लिए एक शब्द आया है – tradwife (traditional wife) । delulu भी डिक्शनरी में शामिल हो गया है । दफ्तर के बजाय बाहर से काम करने वालों के लिए नया शब्द आया है – mouse jiggler ।
ये तमाम शब्द बताते हैं कि कैसे TikTok आदि के दमन और मौज-मस्ती में जिसे अभिनवगुप्त ‘आमोद विसर्ग’ कहते हैं, कैसे ध्वनियों के खेल खेले जाते हैं और उनके गोपनीय संकेतों को पकड़ने वाले किशोरों के नये समुदाय तैयार हो रहे हैं । इस प्रकार दमन ही एक अनोखे सर्जनात्मक खेल का रूप ले लेता है ।
हमारी पुस्तक ‘अथातो चित्त जिज्ञासा’ का अंतिम लेख है – ‘जेम्स जॉयस एक लक्षण : भाषा जहां भाषा नहीं है (जेम्स जॉयस का लकानियन विश्लेषण) । इसमें लकान ने जेम्स जॉयस की लेखन-शैली को सिंथोम (sinthome) कहा था । उनका तात्पर्य जॉयस के लक्षण की गाँठ से था जो भाषा की बनावट में ही बंध जाता है। जॉयस ने व्याकरण और शब्दों की शब्दकोशीय संरचना को तोड़कर शब्दों की ध्वनि से नए शब्दों की रचना की, जो लकान अपने विश्लेषण से पाते हैं कि वे उनके अवचेतन का लेखा-जोखा भी थे। लकान ने अपने सेमिनार में ऐसे कई शब्दों को पकड़ कर उनके विरूपीकरण के साथ जेम्स जॉयस के जीवन के तारों को जोड़ा था ।
हम कह सकते हैं कि आज TikTok और इंस्टाग्राम की किशोर भाषा भी एक सामूहिक sinthome ही है। यह एक पूरी पीढ़ी का लक्षण है, जो एल्गोरिद्म के दमन और सामूहिक खिलंदड़पन के प्रभाव में लिखा जा रहा है।
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एल्गोरिद्म स्वयं एक नया ‘अन्य’ (Other) बन चुका है। मनोविश्लेषण में ‘अन्य’ वह है जो हमारे संकेतकों (signifiers) को नियंत्रित करता है। पहले जो भूमिका परिवार, समाज या संस्कृति निभाते रहे हैं अब उनमें एक नया और बड़ा नाम एल्गोरिद्म का भी जुड़ गया है । वह तय करने लगा है कि कौन-सा शब्द दिखेगा और कौन-सा छिपा दिया जाएगा। और ठीक उसी दमन के चलते जुबान की फिसलन की तरह नए-ऩए शब्द बनने लगे हैं।
यह वैसा ही है जिसे फ्रायड कहते हैं कि अवचेतन जुबान की फिसलन और चुटकुलो के ज़रिए बोलता है। इस अवचेतन में एल्गोरिद्म शब्दों की पैदाइश में दाई की भूमिका निभा रहा है। इसलिए हमें यह जरूरी लग रहा है कि एल्गोरिद्म से जुड़े लैलैंग (algorithmic lalangue) को भी परिभाषित करना जरूरी है। यह वह नया सामूहिक भाषा-रूप है जो एल्गोरिद्म के दमनकारी प्रभाव से उत्पन्न होता है, जिसमें ध्वनि का चमत्कारी खेल, अर्थ का विरूपीकरण और अतिरिक्त आनंद वाला जुएसाँस के तत्व एक साथ मिल जाते हैं।
हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं हो रही है कि यह भाषा न तो पूरी तरह से नई है और न ही केवल बदजुबानी (slang); यह हमारे समय के अवचेतन का दर्पण है। इसीलिए इसे केवल सांस्कृतिक फैशन नहीं कहा जा सकता है । इसमें वही गूढ़ संकेत छिपे हैं जिन्हें लकान ने भाषा और अवचेतन के संबंध में, भारत के ध्वनिवादियों ने ध्वनि में, विचार में रूपांतरित भावों के बाद भी अवशिष्ट नाद में खोजा था। किशोर जब एल्गोरिद्म को चकमा देकर नए शब्द बनाते हैं, तो वे केवल सेंसर से नहीं बचते, भाषा की अनियंत्रित शक्ति को, मनुष्यत्व की अदम्यता को भी जीते हैं। लकान इसी शक्ति को जुएसाँस कहते हैं, जिसके अतिरेकी लक्षणों को समेटते हुए हम उल्लासोद्वेलन कहते हैं और अभिनवगुप्त ने जिसे ‘आमोद विसर्ग’ कहा था । यह वह आनंद है जो अर्थ से बाहर निकलकर केवल ध्वनि और फैंटेसी में जीता है। यही तमाम लोगों के लिए हमारे समय का सबसे बड़ा सबक है कि भाषा दबाई नहीं जा सकती। नियंत्रण अवचेतन का हो या एल्गोरिद्म का, फिसल कर ही भाव व्यक्त होंगे ही और ग्रहीत भी होंगे । यह फिसलन ही जुएसाँस है , algorithmic lalangue भी और एक आमोद विसर्ग भी ।