अरुण माहेश्वरी
साहित्य के आलोचक अक्सर ‘पृथ्वी पर आवास’ की कविताआें पर अतियथार्थवाद (surrealism) के प्रभाव की बात करते हैं। इसके बारे में जेनिफर कुरिन ने अपने एक बहुत ही बेहतरीन लेख ‘जादूई यथार्थवादी आवास : पाब्लो नेरूदा का पृथ्वी पर आवास’ में बताया है कि गहराई से देखने पर पता चलता है कि ये कविताएं अतियथार्थवाद की श्रेणी के बजाय जादूई यथार्थवाद की श्रेणी में आती है। इस सिलसिले में उन्होंने प्रसिद्ध आलोचक मैनुअल दुरान और मार्जेरी साफिर का जिक्र किया है, जो यह मानते थेे कि नेरूदा पर अतियथार्थवादियों का असर था। उनका कहना था कि नेरूदा ने अतियथार्थवाद का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से किया था, क्योंकि यह सोच नेरूदा के कम्युनिस्ट और समाजवादी विश्वासों से टकराता था।
कुरिन ने इसका विस्तार से जवाब देते हुए बताया है कि जहां तक प्रभाव का सवाल है, नेरूदा सीधे तौर पर इसे न स्वीकारते हैं और न अस्वीकारते हैं। वे अमूर्त ढंग से कहते हैं कि शब्दों की वायु पराग समान हल्की और शीशे की तरह भारी कविता के अणुओें का वहन करती है और बीज की तरह खेतों की क्यारियों में अथवा लोगों के मस्तिष्क में छिड़क देती हैं, जो बसंत की हवा अथवा युद्ध, सबसे सींचित होकर फूलों और उसके साथ ही मिसाइलों का सृजन करते हैं। नेरुदा अतियथार्थवाद के प्रभाव को नहीं स्वीकारते, लेकिन भाषा की शक्ति को जरूर स्वीकारतेे हैं। इसके लिये वे सभी कवियों से इस शक्ति को साधने की मांग करते हैं। उनके शब्दों में सावधान, एक ही अणु जो महान सुन्दरता(फूलों) की रचना करता है, वही हिंसा (मिसाइलों) का भी सृजन करता है।
दरअसल इस पूरी बहस का एक गहरा संबंध तब स्पैनिश साहित्य में कवियों की दो पीढि़यों के बीच नये साहित्य के बारे में चल रही बहस से गहराई से जुड़ा हुआ है। पूरब के देशों में पांच वर्ष गुजारने के बाद पाब्लो नेरुदा स्पेन आये थे जहां उनका स्पेन की नयी पीढ़ी के कवियों से संपर्क हुआ। इन नये लेखकों में रफायल आल्बेर्ती और फेद्रिको गार्सिया लोर्का की तरह के विश्वविख्यात रचनाकार भी शामिल थे। नयी पीढ़ी के ये रचनाकार उस समय की पुरानी पीढ़ी के स्थापित कवियों के साथ एक प्रकार के अघोषित, लेकिन तीखे संघर्ष में लगे हुए थे। पुरानी पीढ़ी के कवि ‘शुद्ध कविता’ के हिमायती थे। उनमें जुआन रैमोन जिमिनेज की तरह के पुराने कवि नेरूदा और उनके मित्रों की रचनाओं में दिखाई देने वाले प्रयोगवाद को अविश्वास की नजर से देखा करते थे। जिमिनेज ने तो नेरूदा को ‘एक महान बुरा कवि’ कहा था। जिमिनेज के पुराने ढर्रे के सौन्दर्यवाद का जवाब देते हुए 1935 में नेरूदा ने एक सैद्धांतिक लेख लिखा था ‘अशुद्ध कविता की ओर’ (Towards An Impure Poetry )।
नेरूदा के इस लेख की तुलना बहुताें ने उस वक्त के अतियथार्थवादी आंद्रे ब्रेतां के ‘अतियथार्थवाद के घोषणापत्र’( Manifesto Of Surrealism ) से की थी। इस घोषणापत्र को जिस प्रकार ब्रेतां आदि की कविताआें के शास्त्र के तौर पर लिया गया था, उसी प्रकार पाब्लो के लेख को भी उनके संकलन ‘पृथ्वी पर आवास’ के काव्यशास्त्र के तौर पर समझा गया क्योंकि इसके पहले पाब्लो के महत्वपूर्ण कृतित्व के तौर पर ‘प्रेम की बीस कविताओं से बिल्कुल भिन्न स्वरों वाली कविताओं का यही संकलन प्रकाशित हुआ था। ब्रेतन और पाब्लों के ये दोनों लेख वास्तव में उस वक्त के प्रतिभाशाली नौजवान लेखकों द्वारा अपने समय मेें कविता के रास्ते की बाधाओं के बारे में लिखे गये थे। ब्रेतन ने अपने तब के समकालीनों पर मौलिकता के अभाव का आरोप लगाते हुए लिखा था, उनका खोखलापन अतुलनीय है। उनकी कविताएं पुराने पड़े कैटलॉग से ली गयी कई सूपरइम्पोज्ड छवियों के अलावा और कुछ नहीं है। नेरूदा ने भी अपने लेख में समकालीन कविता की विषय-वस्तु के बारे में चिंता जाहिर की थी। अपने साथी कवियों की उन्होंने इस बात के लिये आलोचना की थी कि वे यह मानते हैं कि कविता में आम चीजों और स्थानों के लिये कोई जगह नहीं होती। नेरूदा की उनके बारे में यह तीखी टिप्पणी थी कि जो चीजों के ‘बुरे स्वाद’ से नाक- भौं सिकोड़ते हैं, वे बर्फ पर चित्त गिर जायेंगे।
जेनिफर कुरिन ने बताया है कि ब्रेतां और नेरूदा, दोनों का ही कविता के बारे में जनतांत्रिक और समावेशकारी नजरिया होने के बावजूद उन दोनों के घोषणापत्र के पीछे की विचारधारा में मूलभूत फर्क था। ब्रेतां का घोषणापत्र कला का सृजन करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा के गीत गाता था। उसका मानना था कि कोई भी व्यक्ति कलाकार बन सकता है यदि वह अपनी कल्पनाशीलता पर लगी अर्गलाओं को खोल देता है। वे कविता में कल्पना के बल पर उत्कर्ष की बात करते थे, जबकि इसके विपरीत नेरूदा हमेशा ‘धरती की ओर वापसी’ की कामना करते थे। अपने लेख ‘एक अशुद्ध कविता की ओर’ में उन्होंने उन ठोस वस्तुओं के प्रति आस्था व्यक्त की थी जो कलाकार को प्रेरित करती है। उनके अनुसार, खुद चीजें, न कि वे लोग जो उन्हें व्यक्त करते हैं, प्रशंसा के पात्र होती हैं। ब्रेतां के घोषणापत्र में तीव्र आवेग के साथ लंबी-चौड़ी आदर्शवादी बातें कही गयी थी, जबकि नेरूदा का लेख काफी विनम्र और दोस्ताना किस्म का था। इस लेख का शीर्षक ही किसी घोषणापत्र की प्रचण्ड उद्घोषणा के बजाय विचार के लिये आमंत्रित करता हुआ प्रतीत होता था। बे्रतन का घोषणापत्र 44 पन्नों का था जबकि नेरुदा का घोषणापत्र मात्र डेढ़ पन्नों का और इसकी भाषा भी काफी काव्यात्मक और मिी से जुड़ी हुई थी।
नेरूदा द्वारा अपनी बात को रखने का ढंग देखिये : यह अच्छा होता है यदि दिन और रात के कुछ घंटे पड़ी हुई चीजों की दुनिया को बहुत नजदीक से देखने के लिये दिये जाए। वे चक्के जो खनिजों और सब्जियों के बोझ के साथ, कोयले के बोरों, पीपों और झूडियों के साथ, बढ़ई के औजारों की बक्सा के लिये हैंडल और हत्थों के साथ कितनी धूल भरी दूरियों को तय कर आये हैं। उन्हीं से प्रवाहित होता है आदमी के साथ धरती का संपर्क, जैसे सभी व्याकुल गीतकारों के गीत। चीजों की इस्तेमाल कर ली गयी सतह, चीजों को हाथ की दी हुई छीजन, हवा, कभी दुखांत तो कभी कारुणिक, ऐसी सभी चीजों की - ये सभी दुनिया की सचाई के बारे में अनोखा आकर्षण पैदा करती है जिसके मूल्य को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।
नेरूदा बाह्य दुनिया की, और उसकी पदार्थर्ता की प्रशंसा करते हैं न कि कवि के मानस की आंतरिक क्रियाओं की। वे कहते हैं कि यह भौतिक जगत हमारी कविता का विषय होना चाहिये। किसी भी व्याकुल गीतकार के लिये चीजें खुद ही उनका पाठ होती है।
कुरिन ने लिखा है कि नेरूदा के इस लेख को देखने के बाद कोई भी ‘पृथ्वी पर आवास’ की उनकी कविताओं को अतियथार्थवाद की श्रेणी में नहीं रखेगा। उसके कई बिंबों को अतियथार्थवादी माना जा सकता है, लेकिन उस पाठ के पीछे के दृष्टिकोण को नहीं। नेरूदा जीवन में अतार्किकता का जवाब कला में अतार्किकता से देने तक सीमित नहीं थे। उन्होंने बाहर की दुनिया से एक संपर्क साधना चाहा था। वे दुनिया पर अपने शब्दों से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अपनी जिम्मेदारी महसूस करते थे। नेरूदा अक्सर लोगों को वह कहानी सुनाया करते थे कि किस प्रकार इस संकलन की कविताओं को पढ़ कर एक नौजवान ने आत्म-हत्या कर ली थी, जिसका कि हम पहले जिक्र कर आये हैं। आत्म हत्या की इस घटना के बाद ही नेरूदा ने ‘पृथ्वी पर आवास’ की अपनी कविताओं की उसके अंधेरेपन और उसकी दुख और विषाद से भरी विषय-वस्तु के लिये सार्वजनिक तौर पर भत्र्सना की थी।
नेरूदा ने ‘पृथ्वी पर आवास’ की अधिकांश कविताएं 1927 से 1933 के दौरान एशियाई देशों की यात्रा के समय लिखी थी। इनके बारे में उन्होंने लिखा था कि मुझे यकीन नहीं होता कि तब की मेरी कविताओं में एक हिंसक और भिन्न दुनिया में रोप दिये गये किसी बाहरी व्यक्ति के अकेलेपन के अलावा शायद ही कोई दूसरी चीज जाहिर हुई हो। कुरिन ने इस संदर्भ को उठाते हुए एक अमेरिकी कवि डेविड यंग की बात का जिक्र किया है कि युद्ध के, महाविनाश के, पुलिस उत्पीड़न के संसार में भाषा का क्या मूल्य है? साहित्य का क्या अर्थ रह जाता है? कैसे कला जीवन पर, उसके विस्तार पर तो दूर की बात, लागू हो सकती है? इन कठिन सवालों का जवाब ढूंढते हुए एक ऐसे साहित्य की रचना हुई है जो अक्सर बाहर की ओर दिशान्वित होता है, जिसमें चीजों के प्रति लगाव होता है। यंग ने यह बात पूर्वी युरोप के कवियों के बारे में कही थी। कुरिन ने लिखा है कि यह बात लातिन अमेरिका के लेखकों पर भी लागू होती है, जहां हमेशा इसी प्रकार की राजनीतिक उथल-पुथल मची रही हैं। जीवन के इसी यथार्थ से बहुत से जादूई यथार्थवादी पाठों की व्याख्या की जा सकती है। जादूई यथार्थवादी पाठों में जड़ चीजों में, प्रकृति की तरह, अक्सर मानवीय गुण दिखाई देते हैं। समय समान गति से नहीं गुजरता। मुर्देर् फिर से जी उठते हैं। ‘स्व’ कभी भी ‘अन्य’ मंें बदल सकता है। मनुष्य उड़ रहे होते हैं अथवा अन्य जानवरों की तरह का व्यवहार करते हैं। धार्मिक चरित्र अधार्मिक संदर्भों में आते हैंं। जादूई यथार्थवाद यदि दुनिया को सर के बल खड़ा करना नहीं तो और क्या है? यदि यह संभव है कि मासूम लोगों को यंत्रणा दी जा सकती है और उनकी हत्या की जा सकती है, तब यह क्यों संभव नहीं हो सकता कि लोग उड़ सकते हैं?
पूरब में पाब्लो का अंतिम पड़ाव जावा में रहा। जावा मेंं पाब्लो अपने को बहुत ज्यादा एकाकी महसूस करने लगे थे। वहीं उन्होंने शादी करने का निर्णय लिया। उनकी मुलाकात एक डच लड़की से हुई जिसका नाम था मारिया अंतानिएता हेगनार। नेरूदा ने उसी से शादी की। हेगनार स्पैनिश का एक शब्द नहीं जानती थी, लेकिन उसने बहुत जल्द ही कामचलाऊ स्पैनिश सीख ली।
जावा में पाब्लो कई लोगों के संपर्क में आये थे जिनमें एक जर्मन कौंसुल हत्र्ज भी थे। वे सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत लिये हुए एक यहूदी व्यक्ति थे। पाब्लो ने उनसे एक बार पूछा था कि अखबारों में अक्सर जिस हिटलर नामके शख्स का उल्लेख आता है जो एक यहूदी-विरोधी और कम्युनिस्ट-विरोधी नेता है, क्या वह सत्ता पर आ सकता है? इस सवाल के जवाब में हत्र्ज ने उनसे कहा था कि यह असंभव है। नेरूदा ने उनसे कहा कि क्यों असंभव है, इतिहास तो ऐसी बेहूदगियों से भरा हुआ है। इसपर हत्र्ज का जवाब था,आप जर्मनी को नहीं जानते हैं। वह एक ऐसी जगह है जहां हिटलर की तरह के उन्मादी आंदोलनकारी को एक गांव को चलाने के लिये भी नहीं सौंपा जा सकता है।
हत्र्ज के साथ हुई इस बात का उल्लेख करने के बाद ही पाब्लो ने यह टिप्पणी की कि मेरा बेचारा दोस्त, बेचारा कौंसुल हत्र्ज! रत्ती भर के लिये वह उन्मादी सारी दुनिया पर शासन करने से चूक गया। और वह सीधा-सादा हत्र्ज, अपनी समूची संस्कृति और उदार रूमानियत के बावजूद निश्चित तौर पर किसी पैशाचिक, गुमनाम गैस चैंबर में खत्म हुआ होगा।
पाब्लो 1932 में चीले लौट आये।
साहित्य के आलोचक अक्सर ‘पृथ्वी पर आवास’ की कविताआें पर अतियथार्थवाद (surrealism) के प्रभाव की बात करते हैं। इसके बारे में जेनिफर कुरिन ने अपने एक बहुत ही बेहतरीन लेख ‘जादूई यथार्थवादी आवास : पाब्लो नेरूदा का पृथ्वी पर आवास’ में बताया है कि गहराई से देखने पर पता चलता है कि ये कविताएं अतियथार्थवाद की श्रेणी के बजाय जादूई यथार्थवाद की श्रेणी में आती है। इस सिलसिले में उन्होंने प्रसिद्ध आलोचक मैनुअल दुरान और मार्जेरी साफिर का जिक्र किया है, जो यह मानते थेे कि नेरूदा पर अतियथार्थवादियों का असर था। उनका कहना था कि नेरूदा ने अतियथार्थवाद का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से किया था, क्योंकि यह सोच नेरूदा के कम्युनिस्ट और समाजवादी विश्वासों से टकराता था।
कुरिन ने इसका विस्तार से जवाब देते हुए बताया है कि जहां तक प्रभाव का सवाल है, नेरूदा सीधे तौर पर इसे न स्वीकारते हैं और न अस्वीकारते हैं। वे अमूर्त ढंग से कहते हैं कि शब्दों की वायु पराग समान हल्की और शीशे की तरह भारी कविता के अणुओें का वहन करती है और बीज की तरह खेतों की क्यारियों में अथवा लोगों के मस्तिष्क में छिड़क देती हैं, जो बसंत की हवा अथवा युद्ध, सबसे सींचित होकर फूलों और उसके साथ ही मिसाइलों का सृजन करते हैं। नेरुदा अतियथार्थवाद के प्रभाव को नहीं स्वीकारते, लेकिन भाषा की शक्ति को जरूर स्वीकारतेे हैं। इसके लिये वे सभी कवियों से इस शक्ति को साधने की मांग करते हैं। उनके शब्दों में सावधान, एक ही अणु जो महान सुन्दरता(फूलों) की रचना करता है, वही हिंसा (मिसाइलों) का भी सृजन करता है।
दरअसल इस पूरी बहस का एक गहरा संबंध तब स्पैनिश साहित्य में कवियों की दो पीढि़यों के बीच नये साहित्य के बारे में चल रही बहस से गहराई से जुड़ा हुआ है। पूरब के देशों में पांच वर्ष गुजारने के बाद पाब्लो नेरुदा स्पेन आये थे जहां उनका स्पेन की नयी पीढ़ी के कवियों से संपर्क हुआ। इन नये लेखकों में रफायल आल्बेर्ती और फेद्रिको गार्सिया लोर्का की तरह के विश्वविख्यात रचनाकार भी शामिल थे। नयी पीढ़ी के ये रचनाकार उस समय की पुरानी पीढ़ी के स्थापित कवियों के साथ एक प्रकार के अघोषित, लेकिन तीखे संघर्ष में लगे हुए थे। पुरानी पीढ़ी के कवि ‘शुद्ध कविता’ के हिमायती थे। उनमें जुआन रैमोन जिमिनेज की तरह के पुराने कवि नेरूदा और उनके मित्रों की रचनाओं में दिखाई देने वाले प्रयोगवाद को अविश्वास की नजर से देखा करते थे। जिमिनेज ने तो नेरूदा को ‘एक महान बुरा कवि’ कहा था। जिमिनेज के पुराने ढर्रे के सौन्दर्यवाद का जवाब देते हुए 1935 में नेरूदा ने एक सैद्धांतिक लेख लिखा था ‘अशुद्ध कविता की ओर’ (Towards An Impure Poetry )।
नेरूदा के इस लेख की तुलना बहुताें ने उस वक्त के अतियथार्थवादी आंद्रे ब्रेतां के ‘अतियथार्थवाद के घोषणापत्र’( Manifesto Of Surrealism ) से की थी। इस घोषणापत्र को जिस प्रकार ब्रेतां आदि की कविताआें के शास्त्र के तौर पर लिया गया था, उसी प्रकार पाब्लो के लेख को भी उनके संकलन ‘पृथ्वी पर आवास’ के काव्यशास्त्र के तौर पर समझा गया क्योंकि इसके पहले पाब्लो के महत्वपूर्ण कृतित्व के तौर पर ‘प्रेम की बीस कविताओं से बिल्कुल भिन्न स्वरों वाली कविताओं का यही संकलन प्रकाशित हुआ था। ब्रेतन और पाब्लों के ये दोनों लेख वास्तव में उस वक्त के प्रतिभाशाली नौजवान लेखकों द्वारा अपने समय मेें कविता के रास्ते की बाधाओं के बारे में लिखे गये थे। ब्रेतन ने अपने तब के समकालीनों पर मौलिकता के अभाव का आरोप लगाते हुए लिखा था, उनका खोखलापन अतुलनीय है। उनकी कविताएं पुराने पड़े कैटलॉग से ली गयी कई सूपरइम्पोज्ड छवियों के अलावा और कुछ नहीं है। नेरूदा ने भी अपने लेख में समकालीन कविता की विषय-वस्तु के बारे में चिंता जाहिर की थी। अपने साथी कवियों की उन्होंने इस बात के लिये आलोचना की थी कि वे यह मानते हैं कि कविता में आम चीजों और स्थानों के लिये कोई जगह नहीं होती। नेरूदा की उनके बारे में यह तीखी टिप्पणी थी कि जो चीजों के ‘बुरे स्वाद’ से नाक- भौं सिकोड़ते हैं, वे बर्फ पर चित्त गिर जायेंगे।
जेनिफर कुरिन ने बताया है कि ब्रेतां और नेरूदा, दोनों का ही कविता के बारे में जनतांत्रिक और समावेशकारी नजरिया होने के बावजूद उन दोनों के घोषणापत्र के पीछे की विचारधारा में मूलभूत फर्क था। ब्रेतां का घोषणापत्र कला का सृजन करने वाले व्यक्ति की प्रशंसा के गीत गाता था। उसका मानना था कि कोई भी व्यक्ति कलाकार बन सकता है यदि वह अपनी कल्पनाशीलता पर लगी अर्गलाओं को खोल देता है। वे कविता में कल्पना के बल पर उत्कर्ष की बात करते थे, जबकि इसके विपरीत नेरूदा हमेशा ‘धरती की ओर वापसी’ की कामना करते थे। अपने लेख ‘एक अशुद्ध कविता की ओर’ में उन्होंने उन ठोस वस्तुओं के प्रति आस्था व्यक्त की थी जो कलाकार को प्रेरित करती है। उनके अनुसार, खुद चीजें, न कि वे लोग जो उन्हें व्यक्त करते हैं, प्रशंसा के पात्र होती हैं। ब्रेतां के घोषणापत्र में तीव्र आवेग के साथ लंबी-चौड़ी आदर्शवादी बातें कही गयी थी, जबकि नेरूदा का लेख काफी विनम्र और दोस्ताना किस्म का था। इस लेख का शीर्षक ही किसी घोषणापत्र की प्रचण्ड उद्घोषणा के बजाय विचार के लिये आमंत्रित करता हुआ प्रतीत होता था। बे्रतन का घोषणापत्र 44 पन्नों का था जबकि नेरुदा का घोषणापत्र मात्र डेढ़ पन्नों का और इसकी भाषा भी काफी काव्यात्मक और मिी से जुड़ी हुई थी।
नेरूदा द्वारा अपनी बात को रखने का ढंग देखिये : यह अच्छा होता है यदि दिन और रात के कुछ घंटे पड़ी हुई चीजों की दुनिया को बहुत नजदीक से देखने के लिये दिये जाए। वे चक्के जो खनिजों और सब्जियों के बोझ के साथ, कोयले के बोरों, पीपों और झूडियों के साथ, बढ़ई के औजारों की बक्सा के लिये हैंडल और हत्थों के साथ कितनी धूल भरी दूरियों को तय कर आये हैं। उन्हीं से प्रवाहित होता है आदमी के साथ धरती का संपर्क, जैसे सभी व्याकुल गीतकारों के गीत। चीजों की इस्तेमाल कर ली गयी सतह, चीजों को हाथ की दी हुई छीजन, हवा, कभी दुखांत तो कभी कारुणिक, ऐसी सभी चीजों की - ये सभी दुनिया की सचाई के बारे में अनोखा आकर्षण पैदा करती है जिसके मूल्य को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।
नेरूदा बाह्य दुनिया की, और उसकी पदार्थर्ता की प्रशंसा करते हैं न कि कवि के मानस की आंतरिक क्रियाओं की। वे कहते हैं कि यह भौतिक जगत हमारी कविता का विषय होना चाहिये। किसी भी व्याकुल गीतकार के लिये चीजें खुद ही उनका पाठ होती है।
कुरिन ने लिखा है कि नेरूदा के इस लेख को देखने के बाद कोई भी ‘पृथ्वी पर आवास’ की उनकी कविताओं को अतियथार्थवाद की श्रेणी में नहीं रखेगा। उसके कई बिंबों को अतियथार्थवादी माना जा सकता है, लेकिन उस पाठ के पीछे के दृष्टिकोण को नहीं। नेरूदा जीवन में अतार्किकता का जवाब कला में अतार्किकता से देने तक सीमित नहीं थे। उन्होंने बाहर की दुनिया से एक संपर्क साधना चाहा था। वे दुनिया पर अपने शब्दों से पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अपनी जिम्मेदारी महसूस करते थे। नेरूदा अक्सर लोगों को वह कहानी सुनाया करते थे कि किस प्रकार इस संकलन की कविताओं को पढ़ कर एक नौजवान ने आत्म-हत्या कर ली थी, जिसका कि हम पहले जिक्र कर आये हैं। आत्म हत्या की इस घटना के बाद ही नेरूदा ने ‘पृथ्वी पर आवास’ की अपनी कविताओं की उसके अंधेरेपन और उसकी दुख और विषाद से भरी विषय-वस्तु के लिये सार्वजनिक तौर पर भत्र्सना की थी।
नेरूदा ने ‘पृथ्वी पर आवास’ की अधिकांश कविताएं 1927 से 1933 के दौरान एशियाई देशों की यात्रा के समय लिखी थी। इनके बारे में उन्होंने लिखा था कि मुझे यकीन नहीं होता कि तब की मेरी कविताओं में एक हिंसक और भिन्न दुनिया में रोप दिये गये किसी बाहरी व्यक्ति के अकेलेपन के अलावा शायद ही कोई दूसरी चीज जाहिर हुई हो। कुरिन ने इस संदर्भ को उठाते हुए एक अमेरिकी कवि डेविड यंग की बात का जिक्र किया है कि युद्ध के, महाविनाश के, पुलिस उत्पीड़न के संसार में भाषा का क्या मूल्य है? साहित्य का क्या अर्थ रह जाता है? कैसे कला जीवन पर, उसके विस्तार पर तो दूर की बात, लागू हो सकती है? इन कठिन सवालों का जवाब ढूंढते हुए एक ऐसे साहित्य की रचना हुई है जो अक्सर बाहर की ओर दिशान्वित होता है, जिसमें चीजों के प्रति लगाव होता है। यंग ने यह बात पूर्वी युरोप के कवियों के बारे में कही थी। कुरिन ने लिखा है कि यह बात लातिन अमेरिका के लेखकों पर भी लागू होती है, जहां हमेशा इसी प्रकार की राजनीतिक उथल-पुथल मची रही हैं। जीवन के इसी यथार्थ से बहुत से जादूई यथार्थवादी पाठों की व्याख्या की जा सकती है। जादूई यथार्थवादी पाठों में जड़ चीजों में, प्रकृति की तरह, अक्सर मानवीय गुण दिखाई देते हैं। समय समान गति से नहीं गुजरता। मुर्देर् फिर से जी उठते हैं। ‘स्व’ कभी भी ‘अन्य’ मंें बदल सकता है। मनुष्य उड़ रहे होते हैं अथवा अन्य जानवरों की तरह का व्यवहार करते हैं। धार्मिक चरित्र अधार्मिक संदर्भों में आते हैंं। जादूई यथार्थवाद यदि दुनिया को सर के बल खड़ा करना नहीं तो और क्या है? यदि यह संभव है कि मासूम लोगों को यंत्रणा दी जा सकती है और उनकी हत्या की जा सकती है, तब यह क्यों संभव नहीं हो सकता कि लोग उड़ सकते हैं?
पूरब में पाब्लो का अंतिम पड़ाव जावा में रहा। जावा मेंं पाब्लो अपने को बहुत ज्यादा एकाकी महसूस करने लगे थे। वहीं उन्होंने शादी करने का निर्णय लिया। उनकी मुलाकात एक डच लड़की से हुई जिसका नाम था मारिया अंतानिएता हेगनार। नेरूदा ने उसी से शादी की। हेगनार स्पैनिश का एक शब्द नहीं जानती थी, लेकिन उसने बहुत जल्द ही कामचलाऊ स्पैनिश सीख ली।
जावा में पाब्लो कई लोगों के संपर्क में आये थे जिनमें एक जर्मन कौंसुल हत्र्ज भी थे। वे सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत लिये हुए एक यहूदी व्यक्ति थे। पाब्लो ने उनसे एक बार पूछा था कि अखबारों में अक्सर जिस हिटलर नामके शख्स का उल्लेख आता है जो एक यहूदी-विरोधी और कम्युनिस्ट-विरोधी नेता है, क्या वह सत्ता पर आ सकता है? इस सवाल के जवाब में हत्र्ज ने उनसे कहा था कि यह असंभव है। नेरूदा ने उनसे कहा कि क्यों असंभव है, इतिहास तो ऐसी बेहूदगियों से भरा हुआ है। इसपर हत्र्ज का जवाब था,आप जर्मनी को नहीं जानते हैं। वह एक ऐसी जगह है जहां हिटलर की तरह के उन्मादी आंदोलनकारी को एक गांव को चलाने के लिये भी नहीं सौंपा जा सकता है।
हत्र्ज के साथ हुई इस बात का उल्लेख करने के बाद ही पाब्लो ने यह टिप्पणी की कि मेरा बेचारा दोस्त, बेचारा कौंसुल हत्र्ज! रत्ती भर के लिये वह उन्मादी सारी दुनिया पर शासन करने से चूक गया। और वह सीधा-सादा हत्र्ज, अपनी समूची संस्कृति और उदार रूमानियत के बावजूद निश्चित तौर पर किसी पैशाचिक, गुमनाम गैस चैंबर में खत्म हुआ होगा।
पाब्लो 1932 में चीले लौट आये।
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