बुधवार, 26 नवंबर 2014

कश्मीर में भारी मतदान



कश्मीर में चुनाव के पहले चरण में भारी मतदान - सब ख़ुश है कि जनतंत्र जीत गया । सवाल है कि जनतंत्र की जीत क्या सिर्फ मतदान में हैं या कुछ और - मतदान के परिणामों, सरकारों के गठन, नीतियों और नीतियों पर अमल में हैं ? सचमुच, खोखलापन ही सबसे ज्यादा गूँजता है । जिनकी करतूतों से जनतंत्र की विफलताओं के ग्रंथ लिखे जाते हैं, हिटलर-मुसोलिनी पैदा होते हैं, वे ही मतदान को क़ानूनन अनिवार्य बना कर जनतंत्र को हमेशा सफल मानने का एक नया दैवी विधान तैयार करने के पक्षधर रहे हैं और आज भी हैं । इस विधान में नागरिक की स्वतंत्रता नहीं, उसकी बाध्यता प्रमुख है । जनतंत्र का सार चयन की स्वतंत्रता में नहीं, चुनने की मजबूरी में है ! जनतंत्र कभी विफल नहीं हो सकता इसीलिये जनतंत्र के अंदर से कभी तानाशाहियां पैदा नहीं हो सकती ! जो हिटलर-मुसोलिनी आदि को तानाशाह मानते हैं, इसमें दोष जनतंत्र की विफलता का नहीं, लोगों की दृष्टि का है । वे तो सिर्फ अपने देशवासियों को जगाना और विश्व आधिपत्य के उनके जन्म-सिद्ध अधिकार को पूरी ताक़त के साथ स्थापित करना चाहते थे ! उन्हें निर्दयी तानाशाह कहने वाले राष्ट्र-विरोधी थे, उनका सफ़ाया होना ही चाहिये था !

बहरहाल, सारी दुनिया में जनतंत्र की प्रकट विफलताओं के लंबे इतिहास के बावजूद, जैसे मनुष्य पर अविश्वास करना नैतिक लिहाज़ से पाप माना जाता है, वैसे ही जनतंत्र के प्रति पूरी तरह अनास्थावादी होना भी एक पाप ही है । यह सच है कि जनतंत्र में नागरिक की सार्वभौमिकता सिर्फ उसी क्षण क़ायम होती है, जब वह मतदान कर रहा होता है और दूसरे ही क्षण उस सार्वभौमिकता का अवलोप हो जाता है । फिर भी, इतिहास अनेक संयोगों के किसी ऐसे निर्णायक क्षण में ही करवट लिया करता है । जब इतिहास किसी वेदनादायी मोड़ पर ठहर सा जाता है, तब करवट बदलने वाले क्षण की तलाश में आदमी ज्यादा से ज्यादा व्यग्र और उद्विग्न रहता है ; मतदान के क्षण के प्रति ज्यादा से ज्यादा आस्थावान हो उठता है ।

संकट के आज के एक नये मुक़ाम पर कश्मीर के अलगाववादियों के पास कश्मीरी अवाम के लिये कोई भरोसेमंद विकल्प नहीं है। ऊपर से वे, वहाँ के नागरिकों से उनकी आस्था की इस बची हुई शरण-स्थली को भी छीन कर उनके जीवन से बदलाव के सपनों तक को विरेचित करने के दोषी है । इसीलिये इस बार, अलगाववादियों को और भी निर्णायक ढंग से ठुकराया गया है । तथापि, इतने भर से जनतंत्र की सफलता का परचम नहीं लहराया जा सकता। असल सचाई तो चुनाव परिणामों से सामने आयेगी ।

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