गुरुवार, 14 मार्च 2019

नेहरू जी की जय हो !


-अरुण माहेश्वरी

जब अरुण जेटली के स्तर का वकील किसी को पराजित करने के लिये एड़ी चोटी का पसीना एक कर रहा हो, तब उसकी अपराजेय ईश्वरीय शक्ति की स्थापना में कौन बाधा डाल सकता है ?

नरेन्द्र मोदी की झूला झूलने और झूठों गले से चिपकने की बंदरों की तरह कूटनीतिक हरकतों का ही परिणाम है कि भारत मसूद अजहर के स्तर के नग्न आतंकवादी को आतंकवादी मानने के लिये चीन को राजी नहीं करा पाया और अरुण जेटली कहते हैं, यह सब नेहरू जी के ’मूल पाप’ की वजह से हुआ है ।

वे एक झूठा किस्सा गढ़ते हैं कि नेहरू जी ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता को स्वीकारने के बजाय चीन को वह जगह दे दी, जिसके कारण चीन आज मोदी जी के साथ यह तमाशा कर पा रहा है ।

दुनिया जानती है कि 1942 में संयुक्त राष्ट्र संघ बना और 1945 में उसकी सुरक्षा परिषद का गठन हुआ । उस समय तक भारत पर ब्रिटिश राज था । इसीलिये जिन पंद्रह देशों को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया गया, उनमें भारत नहीं था । भारत का प्रतिनिधित्व ब्रिटेन कर रहा था । उन पंद्रह सदस्यों में ही पांच देशों, चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका को वीटो पावर दिया गया ।

इसीलिये, सन् 1942 और 1945 के गुलाम भारत में नेहरू जी के सामने भारत के प्रतिनिधित्व का सवाल ही नहीं आ सकता था । सन् 1950 में चीन में क्रांति के बाद जब कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी, तब सुरक्षा परिषद में चीन की नई सरकार के प्रतिनिधि को स्वाभाविक तौर पर शामिल किया गया, लेकिन 21 साल बाद 1971 में ।

1950 में कुछ हलकों से इस प्रकार की झूठी बात उड़ाने की कोशिश की गई थी कि अब चीन में सत्ता बदलने के बाद चीन की नई सरकार की जगह भारत को शामिल करने का प्रस्ताव रखा जा सकता है । उसी समय नेहरू जी ने संसद में यह साफ बता दिया था कि भारत के पास इस प्रकार का कोई औपचारिक प्रस्ताव कभी नहीं आया है । इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया था कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की सदस्यता के अपने खास नियम है । उन्हें नजरंदाज करके भारत का उसमें अभी जाना मुमकिन नहीं है । इसीलिये चीन की नई सरकार के स्वाभाविक दावे के विरुद्ध अपना दावा पेश करने का भी कोई तुक नहीं है ।

लेकिन फिर भी सारे संघी यही रट रहे हैं कि नेहरू जी ने चीन को सुरक्षा परिषद में वीटो पावर दिला दिया !

अब जेटली ने तो नेहरू जी के लिये बाकायदा ईसाई धर्म की ‘ऑरिजिनल सिन’ वाली धार्मिक पदावली का भी प्रयोग कर लिया है । ईसाई धर्म के व्याख्याताओं का कहना है कि जैसे प्रलय ईश्वर की ही इच्छा का परिणाम होता है, वैसे ही आदम का मूल पाप भी उसी की इच्छा का ही प्रतिफल है जिसके कारण धरती पर ईश्वरीय नैतिकता के उदय की जमीन तैयार हुई है । यह धरती पर ईश्वर का मनुष्य रूप में अवतरण था ।

अर्थात भारत में नेहरू भी ईश्वरीय इच्छा के ही प्रतीक, मूल पाप के कारक रहे हैं । उनके समय से आज तक जो कुछ हो रहा है, सब उनके किये का ही परिणाम है ।

पढ़ियें, आज के ‘टेलिग्राफ’ की इस रिपोर्ट को । आरएसएस की पाठशाला में आधुनिक भारत में नेहरू जी की व्याप्ति और लगातार बनी हुई सक्रिय उपस्थिति उन्हें किसी ईश्वरीय प्रतिमूर्ति से नीचे स्थान पर नहीं रखती है  ।

इसीसे किन्तु यह भी पता चलता है कि जब ईश्वर ने संघियों को जीवन के तमाम क्षेत्रों में इतनी तमाम बाधाओं से जकड़ दिया है, तब प्रकारांतर से ईश्वर उन्हें भारत में सत्ता का अधिकारी ही नहीं मानता है । सत्ता पर मोदी-शाह-जेटली तिकड़ी की उपस्थिति ईश्वरीय न्याय के अनुसार ही अनैतिक है ।

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