बुधवार, 22 जनवरी 2020

अमित शाह की ‘क्रमकेलि’

( टेलिग्राफ में उड्डासक मुखर्जी के लेख पर आधारित)


—अरुण माहेश्वरी

आज के ‘टेलिग्राफ’ में उड्डालक मुखर्जी का एक अद्भुत लेख है — ‘समरूपता के प्रति अमित शाह का लगाव : कुटिल नीति’ (Amit Shah’s love for symmetry : The crooked line)

अपने इस लेख में श्री मुखर्जी ने बात शुरू की है संसद में अमित शाह की उस उक्ति से — ‘क्रोनोलोजी समझियें’, जो लाइन आजकल काफी चर्चा में है । अब देश भर में सड़कों पर उतरे हुए लोग भी उन्हें उनकी क्रोनोलोजी, उनकी वंश परंपरा समझा रहे हैं !

बहरहाल, श्री मुखर्जी ने ‘सीएबी, एनपीआर और एनआरसी’ वाली अमित शाह की इस क्रोनोलोजी को एक प्रकार की बासी बात बताया है, क्योंकि इसे तो पहले ही खुद मोदी ने 2047 तक भारतीय गणतंत्र की पूरी सूरत को ही बदल डालने के अपने जिनोम (वंशानुक्रम) प्रकल्प से कह दी थी । मुखर्जी ने इस क्रोनोलोजी शब्द की लैटिन भाषा से व्युत्पत्ति का ब्यौरा देते हुए कहा है कि एक प्रकार की सपाटता और समरूपता का तत्व इसमें अन्तरनिहित होता है । सर्वाधिकारवादी एकसूत्रता । सारी लाक्षणिकताओं, सारी शक्तियों को एक जगह मिला देने का सर्वाधिकारवाद । मुखर्जी ने नाजी जर्मनी और अन्य प्रभुत्ववादी सोच के स्थापत्य तक में इस सोच की छाप का उल्लेख किया है और व्यंग्यकार पीटर फ्रैंकलिन के एक लेख के हवाले से कहा है कि  ऐसे शासनों ने ही “आधुनिक कला परंपरा के कुछ सबसे बदसूरत पक्षों को जिंदा रखा था — सभी गैर-योजनाबद्ध, जैविक और स्थानीय चीजों के प्रति तिरस्कार के भाव को ।”

“अपनी प्रकट अराजकता के आतंक को ढंकने के लिये ही सर्वाधिकारवादी नैतिकता स्थापत्य की विशालता के प्रति अपनी निष्ठा का प्रयोग करती है । फ्रैंकलिन पाठकों को बताते हैं कि अडोल्फ हिटलर ने एक इतनी विशालकाय इमारत के रूप में नए बर्लिन के निर्माण की योजना बनाई थी जिस पर बादल और बारिस के जरिये उसका अपना ऋतुचक्र होगा ।”

मुखर्जी लिखते हैं कि हिंदुत्व की तकनीक अभी अपना मौसम बनाने तक तो नहीं गई है, लेकिन उसके 2989 करोड़ की सरदार पटेल के मूर्ती, 790 फुट की 2500 करोड़ की राम की मूर्ति के चमत्कारों से हिटलर भी हैरान हो जाता ।

मुखर्जी कहते हैं कि क्रोनोलोजी से जुड़ी समरूपता की अवधारणा इसीलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राजनीतिक कल्पनाशीलता को सर्वाधिकारवादी शासन के सौन्दर्य में तिरोहित कर दिया जाता है । मोदी का यह वंशानुक्रम तय करने का प्रकल्प आधुनिकतावादी लाइन पर न सिर्फ पूरी तरह सपाट बल्कि आत्माविहीन और दासता का प्रकल्प है ।

इस लेख का अंतिम हिस्सा सबसे महत्वपूर्ण है जिसमें मुखर्जी ने ‘Inside Hitler’s Bunker : The Last Days of the Third Reich’ पुस्तक के एक अंश को क्रम और अराजकता और इनकी परस्पर अदला-बदली से निकलने वाली शिक्षा के रूप में उद्धृत किया है । इसमें पुस्तक के लेखक योआखिम फेस्ट हिटलर के बंकर के अंदर पैदा हो रही घुटन भरी दहशत का ब्यौरा देते हैं — “जेनरेटरों की लगातार गड़गड़ाहट. डीजल और पेशाब की गंध, ..धुंधली रोशनी, जैनरलों और नाजी अधिकारियों की अंतहीन बैठकें जिनके बीच-बीच में संदेशवाहकों की  अधिक से अधिक बुरी खबरें”। मुखर्जी लिखते हैं — “हिटलर के राइख का पतन निश्चित रूप में सर्वनाशी रहा होगा । फेस्ट ने जिस कुशलता से इस विध्वंस के दृश्य और इसकी ध्वनियों को लिखा है वह किसी भी निरंकुश शासक की अंतिम नियति है । एक गलत समरूपता से प्रतिबद्ध, अनुशासन और अधिकार की बीमार मानसिकता का शिकार वह अपने अंतिम घंटों में, अराजकता से भस्मीभूत, अपने अंतिम दंड को पा रहा था ।”

सचमुच, उड्डालक मुखर्जी की इस शाह-छाप क्रोनोलोजी, अर्थात् क्रम की चर्चा ने अनायास ही हमें कश्मीरी शैवमत के क्रम संप्रदाय वालों की ‘क्रमकेलि’ का स्मरण करा दिया जिसमें शक्ति का अति महात्म्य बताया जाता है । आचार्य अभिनवगुप्त ने इसे अपने मुक्तिदायी प्रत्यभिज्ञादर्शन से जोड़ने के लिये ‘क्रममुक्ति’ की बात की थी जिसमें किसी भी क्रमबद्ध संस्करण को किसी एक उपाय से बांधने के विरुद्ध नाना उपायों, उपायवैविध्य की बात कही गई थी । मोदी-शाह की ‘क्रमकेलि’ को, चाहे तो, कुछ इस प्रकार भी समझा जा सकता है । यहां हम टेलिग्राफ के इस लेख का लिंक मित्रों से साझा कर रहे हैं :

https://www.telegraphindia.com/opinion/the-caa-npr-nrc-is-reminiscent-of-nazi-germany-in-many-aspects-with-amit-shah-and-adolf-hitler-sharing-some-similar-goals/cid/1738469?ref=opinion_home-template

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