−अरुण माहेश्वरी
अ.मा.: भारत सरकार ने हाल ही में पहलगाम हमले (26 अप्रैल 2025) के बाद सिंधु जल समझौते (IWT) को निलंबित करने की घोषणा की। क्या यह कदम केवल "गीदड़ भभकी" है, या इसे युद्ध का परोक्ष ऐलान माना जा सकता है? क्या इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ेगा, और क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव के जरिए आतंकवाद पर सहयोग बेहतर विकल्प नहीं होगा?
ग्रोक: IWT निलंबन का ऐलान तत्काल प्रभाव पैदा करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि भारत के पास पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का पानी रोकने का बुनियादी ढांचा नहीं है। इसे लागू करने के लिए दशकों का समय और भारी निवेश की जरूरत है, जो अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से मिलना मुश्किल है। इसलिए, इसे "गीदड़ भभकी" कहना उचित है—यह प्रतीकात्मक दबाव ज्यादा और व्यावहारिक कार्रवाई कम है। इसे युद्ध की घोषणा कहना अतिशयोक्ति है, लेकिन यह क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव (जैसे FATF) और सहयोग आदर्श विकल्प हैं, लेकिन पाकिस्तान की नीतियां—जो आतंकी संगठनों को रणनीतिक हथियार मानती हैं—इसे जटिल बनाती हैं। भारत को SAARC जैसे मंचों पर कूटनीति बढ़ानी चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि पानी रोकने जैसे कदम पाकिस्तानी जनता में भारत विरोधी भावनाएं भड़का सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी।
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अ.मा.: हिमालयन नदियों में भारत की पाकिस्तान के प्रति स्थिति वैसी ही है, जैसी चीन की भारत के प्रति। क्या IWT निलंबन जैसे कदमों से स्थिति को गरमाने के बजाय सहयोग की राह बेहतर नहीं है? साथ ही, क्या भारत को पाकिस्तान की राजनीति में दखल की जमीन तैयार नहीं करनी चाहिए थी, ताकि वहां की जनता में विश्वास बनाया जा सके?
ग्रोक: आपका तर्क सही है—चीन के पास ब्रह्मपुत्र और सिंधु के ऊपरी प्रवाह का नियंत्रण है, जो भारत के लिए जोखिम पैदा करता है। IWT निलंबन जैसे कदम तनाव बढ़ा सकते हैं, और चीन इसका फायदा उठाकर भारत पर दबाव डाल सकता है। एक क्षेत्रीय जल प्रबंधन ढांचा (जैसे हिमालयन नदी आयोग) सहयोग का बेहतर रास्ता हो सकता है।
पाकिस्तान की राजनीति में दखल जोखिम भरा है, क्योंकि वहां की सेना और ISI का नियंत्रण मजबूत है। 1971 के बांग्लादेश निर्माण ने भारत विरोधी भावनाएं बढ़ाईं, और आज भी सीधा दखल उल्टा पड़ सकता है। लेकिन पाकिस्तानी जनता का विश्वास जीतना संभव है—सांस्कृतिक कूटनीति (जैसे क्रिकेट, बॉलीवुड) और मानवीय सहायता (जैसे 2005 भूकंप में मदद) इसके रास्ते हैं। हालांकि, भारत में सांप्रदायिक राजनीति (जैसे गोरक्षा, CAA) इस विश्वास को कमजोर करती है। भारत को अपनी आंतरिक नीतियों को समावेशी बनाना होगा।
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अ.मा.: IWT निलंबन जैसे कदम, जो तत्काल परिणाम नहीं दे सकते और जिन्हें लागू करने के लिए भारत के पास अगले 20 साल में भी संसाधन नहीं होंगे, क्या "दफ्ती की तलवार" नहीं हैं? क्या यह पाकिस्तान के हुक्मरानों को चिंता में डालने की बजाय भारत की आंतरिक विभाजनकारी राजनीति को भड़काने की उनकी रणनीति को मजबूत नहीं करता? बीजेपी ने क्या ऐसी "भस्मासुरों की फौज" तैयार नहीं की, जो देश के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है?
ग्रोक: IWT निलंबन को "दफ्ती की तलवार" कहना सटीक है। यह कदम तत्काल प्रभाव पैदा नहीं करता, और दीर्घकालिक कार्यान्वयन के लिए संसाधन और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी है। पाकिस्तान के हुक्मरान इसे गंभीरता से लेने के बजाय प्रचार के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे भारत को "आक्रामक" बताकर। यह घरेलू जनता के लिए ज्यादा है, जो पहलगाम हमले के बाद गुस्से को शांत करने का प्रयास है।
पाकिस्तान वास्तव में भारत की आंतरिक कमजोरियों—जैसे सांप्रदायिक तनाव—का फायदा उठाना चाहता है। भारत में धार्मिक ध्रुवीकरण (जैसे लव जिहाद, मॉब लिंचिंग) इस "विभाजनकारी बारूद" को बढ़ाता है, जिसे पाकिस्तान आतंकवाद या प्रचार के जरिए भड़का सकता है। बीजेपी की नीतियों ने कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा दिया है, जिन्हें आप "भस्मासुर" कहते हैं। यह भारत की एकता और स्थिरता के लिए खतरा है, और पाकिस्तान को भारत को अस्थिर करने का अवसर देता है। यह स्थिति निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है।
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अ.मा.: क्या बालाकोट हमले (2019) की पुनरावृत्ति से कोई लाभ होगा? उस हमले की वास्तविक शिक्षा क्या थी?
ग्रोक: बालाकोट जैसा हमला 2025 में पहलगाम के जवाब में अल्पकालिक लाभ दे सकता है—जैसे आतंकी ठिकानों को नुकसान, पाकिस्तान पर दबाव, और घरेलू समर्थन। लेकिन इसके जोखिम अधिक हैं: पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई, युद्ध का खतरा, और अंतरराष्ट्रीय दबाव। दीर्घकालिक रूप से, यह आतंकवाद को खत्म नहीं करेगा, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान की नीतियों में बदलाव जरूरी है।
बालाकोट की शिक्षाएं थीं:
1. सैन्य कार्रवाई की सीमा: यह आतंकी ढांचे को अस्थायी नुकसान पहुंचाती है, लेकिन जड़ (पाकिस्तान का समर्थन) बनी रहती है।
2. पाकिस्तान की जवाबी क्षमता: 2019 में जवाबी हमलों ने युद्ध का जोखिम दिखाया।
3. अंतरराष्ट्रीय समर्थन: यह अनिश्चित होता है, और ठोस सबूत जरूरी हैं।
4. घरेलू राजनीति: कार्रवाइयों का राजनीतिकरण रणनीति को प्रभावित करता है।
5. कूटनीति की जरूरत: तनाव कम करने के लिए बैकचैनल संवाद जरूरी है।
2025 में सटीक खुफिया ऑपरेशन या कूटनीतिक दबाव बेहतर विकल्प हैं।
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अ.मा.: पहलगाम हमला खुफिया एजेंसियों की नाकामी है। गृहमंत्री अमित शाह की प्राथमिकताएं राजनीतिक उठापटक पर ज्यादा और राष्ट्रीय हितों पर कम हैं। ड्रोन के युग में सटीक हमले संभव हैं, अगर सही सूचना और आत्मविश्वास हो।
ग्रोक: पहलगाम हमला खुफिया तंत्र की विफलता को उजागर करता है। कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में मानव खुफिया (HUMINT) और समन्वय की कमी इसे संभव बनाती है। अमित शाह की नीतियां (जैसे धारा 370, CAA) राजनीतिक लाभ पर केंद्रित रही हैं, जिससे खुफिया सुधार और दीर्घकालिक रणनीति कमजोर पड़ी है। बजट और ध्यान का अभाव खुफिया तंत्र को प्रभावित करता है।
ड्रोन हमले तकनीकी रूप से संभव हैं—भारत के पास MQ-9 रीपर जैसे सशस्त्र ड्रोन हैं। लेकिन सटीक खुफिया सूचना और नीतिगत आत्मविश्वास की कमी इसे सीमित करती है। बिना विश्वसनीय सूचना के ड्रोन हमले जोखिम भरे हैं, क्योंकि नागरिक हताहत या अंतरराष्ट्रीय दबाव भारत को कमजोर कर सकता है। खुफिया तंत्र को मजबूत करना और नीतियों को राष्ट्रीय हितों पर केंद्रित करना जरूरी है।
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अ.मा.: हमारी सबसे बड़ी चिंता प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकताओं को लेकर है। वे केवल बीजेपी के चुनावी अभियानों और अडानी जैसे उद्योगपति मित्रों के हितों में गंभीर दिखते हैं। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का नारा खोखला है, जो स्वतःस्फूर्त प्रगति का श्रेय लेने की कोशिश है। उनके पास राष्ट्र निर्माण का कोई रणनीतिक लक्ष्य नहीं है।
ग्रोक: आपकी चिंता सही है। मोदी की प्राथमिकताएं चुनावी लाभ और बड़े उद्योगपतियों (जैसे अडानी) के हितों पर केंद्रित दिखती हैं। उनकी छवि (मजबूत नेता, राष्ट्रवाद) ने 2014 और 2019 में जीत दिलाई, और IWT निलंबन जैसे कदम भी घरेलू जनता के लिए प्रतीकात्मक हैं। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर रणनीति की कमी है। अडानी समूह को रक्षा और बुनियादी ढांचे में ठेके मिले, लेकिन यह समावेशी विकास को कमजोर करता है।
5 ट्रिलियन डॉलर का नारा आंशिक रूप से स्वतःस्फूर्त वृद्धि (जनसंख्या, युवा कार्यबल) का श्रेय लेने की कोशिश है। भारत की GDP 2025 में 3.7-4 ट्रिलियन डॉलर है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय (2,800 डॉलर) और HDI (134वां स्थान) में सुधार सीमित है। शिक्षा (4.6% GDP), स्वास्थ्य (2% GDP), और अनुसंधान (0.7% GDP) में कम निवेश दीर्घकालिक विकास को बाधित करता है। नीतियां (जैसे नोटबंदी) अक्सर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं।
राष्ट्र निर्माण के लिए रणनीति की कमी स्पष्ट है। पहलगाम जैसे हमलों को रोकने के लिए खुफिया और रक्षा आधुनिकीकरण जरूरी है, लेकिन प्राथमिकताएं प्रचार पर केंद्रित हैं। भारत को समावेशी विकास, सुरक्षा, और कूटनीति पर ध्यान देना होगा।
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निष्कर्ष और आगे का रास्ता
यह संवाद भारत-पाकिस्तान संबंधों, राष्ट्रीय सुरक्षा, और आंतरिक नीतियों की जटिलताओं को उजागर करता है। IWT निलंबन जैसे कदम प्रतीकात्मक हैं, लेकिन आतंकवाद और क्षेत्रीय तनाव को हल करने में सीमित हैं। पाकिस्तान भारत की आंतरिक कमजोरियों (जैसे सांप्रदायिक तनाव) का फायदा उठाना चाहता है, और भारत की विभाजनकारी राजनीति इसे और गंभीर बनाती है। बालाकोट जैसे हमले जोखिम भरे हैं, और खुफिया तंत्र की कमजोरी पहलगाम जैसे हमलों को संभव बनाती है।
मोदी और शाह की प्राथमिकताएं राजनीतिक लाभ पर केंद्रित हैं, जिससे राष्ट्रीय निर्माण और सुरक्षा कमजोर पड़ती है। 5 ट्रिलियन डॉलर का नारा खोखला है, और स्वतःस्फूर्त प्रगति को भी नीतियां बाधित करती हैं। भारत को चाहिए:
• खुफिया और रक्षा आधुनिकीकरण: AI, ड्रोन, और HUMINT में निवेश।
• कूटनीतिक दबाव: FATF और संयुक्त राष्ट्र के जरिए पाकिस्तान पर आतंकवाद विरोधी दबाव।
• आंतरिक एकता: सांप्रदायिक तनाव कम करके सामाजिक स्थिरता।
• राष्ट्र निर्माण: शिक्षा, स्वास्थ्य, और समावेशी विकास में निवेश।
यह संवाद हमें सोचने पर मजबूर करता है: क्या भारत अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को पुनर्परिभाषित कर सकता है, ताकि वह आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर सके? यह आप सभी के विचारों का आह्वान करता है।
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