रविवार, 1 फ़रवरी 2015

एक जेहादी सिद्धांतकार स्वपन दासगुप्त


आज (30 जनवरी 2015) के टेलिग्राफ में स्वपन दासगुप्त का लेख Obama’s parting speech will not harm Modi politically : Meeting the foreigner, एक जनूनी सिद्धांतकार की मध्ययुगीन अंधता का जीवंत उदाहरण है। इस्लामिक जेहादी यदि दुनिया की हर चीज को मजहबी राजनीति की नजर से देखते हैं तो हिंदुत्व के उग्रपंथी उनसे जरा भी भिन्न नहीं है। जेहादियों के लिये पश्चिमी जनतंत्र इस्लाम के खिलाफ क्रिश्चियनिटी के सदियों पुराने धर्मयुद्ध का ही एक रूप है; हर आधुनिक जनतांत्रिक विचार इस्लाम के खिलाफ खुली साजिश। इसी आधार पर वे अपने सारे कुकृत्यों के लिये वैधता प्राप्त करते हैं। हूबहू उसी मनोविकृति का दूसरा उदाहरण है स्वपन दासगुप्त का यह लेख।
ओबामा ने सिरिफोर्ट के अपने अंतिम भाषण में भारत के संविधान की धारा 25 का जिक्र किया था। भारतीय संविधान में नागरिकों के जनतांत्रिक अधिकारों से जुड़ी इस जरूरी धारा का उल्लेख मात्र तमाम संघ परिवारियों को नागवार गुजरा और स्वपन दासगुप्त को भी। इसी उन्माद में उन्होंने अपने इस लेख में पश्चिमी प्रभुत्व का एक नया धार्मिक आख्यान रच डाला। विश्व प्रभुत्व की साम्राज्यवादी रणनीति को तुच्छ करके जेहादियों की तरह ही उसे धर्मयुद्ध के मध्ययुगीन प्रतीक में सिमटा दिया। उनके अनुसार बिना ऐसा किये ओबामा की अपने देश की राजनीति में दाल नहीं गल सकती थी। अमेरिकी नेता हमेशा अपने साथ इसाई धर्म का झंडा भी उठाये चलते हैं। उनकी बातों से आपको ऐसा लगेगा मानो भारत के संविधान निर्माताओं ने धारा 25 का निर्माण भारत के नागरिकों के लिये नहीं बल्कि किन्हीं विदेशी हितों को साधने के लिये विशेष तौर पर किया था।
पूरा संघ परिवार गैर-हिंदुओं को भारत में अराष्ट्रीय मानता है। स्वपन दासगुप्त ने इस लेख से साबित कर दिया कि वे भी ऐसा ही मानते हैं। इसीलिये ओबामा द्वारा धारा 25 के उल्लेख मात्र ने उन्हें उत्तेजित कर दिया। ‘धर्मान्तरण और घर वापसी’ वालों के पक्ष में आवाज उठाते हुए वे लिखते हैं उनके कामों ने निश्चित तौर पर political christianity को झकझोरा है। ओबामा के भाषण में उसीकी गूंज सुनाई दे रही है। उनके विरुद्ध स्वपन दासगुप्त ने राजनीतिक हिंदुत्व का झंडा उठाते हुए भी ओबामा की इस यात्रा को मोदी की कूटनीतिक सफलता का उदाहरण बताया है ! स्वपन दासगुप्त को साम्राज्यवाद के आर्थिक प्रभुत्व के किसी भी पहलू से कोई ऐतराज नहीं है, बशर्ते वह राजनीतिक हिंदुत्व को बढ़ावा देता रहे, जैसा कि अमेरिका अक्सर करता भी रहा है। सारी दुनिया के जेहादी समूह अमेरिकी रणनीति की ही उपज रहे हैं। स्वपन दासगुप्त अपने इस लेख में प्रकारांतर से भारत के हिंदू उग्रपंथियों के लिये भी अमेरिका से उसीप्रकार के स्वीकृतिमूलक और उत्साहवद्‍र्धक दृष्टिकोण की मांग भर कर रहे हैं।

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