—अरुण माहेश्वरी
मार्क्सवादी दार्शनिक एलेन बाद्यू अपने प्रमुख गंथ 'Logics of worlds' (भुवनों के तर्क) के एक महत्वपूर्ण अध्याय 'Formal Theory of the subject (Metaphysics) (प्रमाता का आधिभौतिक शास्त्र) के अंत में सत्य के बरक्स प्रमाता (subject) की गति की एक तालिका बनाते हैं । अपने इस अध्याय में उन्होंने प्रमाता का राजनीति, कला, प्रेम और विज्ञान, मनुष्य के ज्ञान की निर्मितियों के इन चार खास क्षेत्रों में कई ठोस उदाहरणों के जरिये अध्ययन करके उसकी गति को पहचाना है और इसी अध्ययन के सार के रूप में अंत में यह तालिका तैयार की है ।
सत्य के खास रूपों के बरक्स प्रमाता के स्वरूप और उसके गंतव्य
राजनीति
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कला
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प्रेम
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विज्ञान
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इंकार
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प्रतिक्रियावाद
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अकादमिकवाद
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दांपत्य
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शिक्षा-शास्त्र
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अंध विरोध
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फासीवाद
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भंजन
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स्वामित्व भाव
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पुरातनपंथ
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पुनर्जागरण
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कम्युनिस्ट विचार
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नव-शास्त्रीयता
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पुनर्प्रयत्न
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नवजागरण
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(Figures and destination of the subject crossed with types
of truth)
Politics
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Arts
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Love
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Science
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Denial
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Reaction
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Academicism
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Conjugality
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Pedagogism
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Occultation
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Fascism
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Iconoclasm
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Possessive
Fusion
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Obscurantism
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Resurrection
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Communist
invarients
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Neo-classicism
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Second
Encounter
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Renaissance
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विषय के ग्रहणकर्ता की इस गति की महत्ता को समझने के लिये बहुत सावधानी की जरूरत है । यहां 'इंकार' का मायने यथास्थिति से इंकार नहीं, बल्कि जीवन में सत्य से इंकार, परिवर्तन से 'इंकार' है और 'भंजन' को कभी भी संशय या प्रश्नाकुलता नहीं समझा जाना चाहिए । अन्यथा प्रतिक्रियावाद प्रगतिशीलता बन जायेगा और फासीवाद नवजागरण ।
हिंदी में आम तौर पर करुणा (क्रौंच वध से उपजी) को सृजन का स्रोत माना जाता है, जबकि वह भी 'क्यों' के प्रश्न से ही पैदा होती है । गहराई से देखे तो हर क्षेत्र में ज्ञान (निर्माण) का स्रोत अर्जुन के संशय, उसकी प्रश्नाकुलता, कचोट और जिज्ञासा में है । यहां तक कि अभिनवगुप्त भी जब अपने 'तंत्रालोक' की रचना करते हैं तो अपने दोलायमान मन (दोलायते मनः) की बात करते हैं । वे अपनी बात कहने के पहले उन तमाम लोगों के कथनों की वजह से शंकित हो जाते हैं जो “गूढ़ अर्थों वाले, स्वादपूर्ण अपने आशय की चमत्कारिता को बिना समझे इस विषय में (मन के जगत के विषय में) आश्चर्य के साथ बातें कर गये हैं ।”
(तदनाकर्ण्य गूढ़ार्थ स्वादु स्वाशयकौशलम् ।
सवाल के बिना नई निर्मिति संभव नहीं है । कह सकते हैं सवाल ही पुनर्जागरण का हेतु है । और इसी से राजनीति के क्षेत्र में नाना कम्युनिस्ट विचार पैदा होते हैं, कला में नई गहराई आती है, प्रेम में खुलापन और विज्ञान के क्षेत्र में नवजागरण (ज्ञान की अनंत पिपासा) पैदा होते हैं । (देखिये उपरोक्त तालिका)
यद्यपि आज के हिंदी साहित्य जगत का एक सच, वह कितना ही क्षुद्र क्यों न हो, यह भी है कि संशय के परिसर की व्यापकता का लाभ उठा कर 'भंजन' का काम खूब चल रहा है, जिसके मूल में शुद्ध अंधता काम कर रही है और जिसकी राजनीतिक गति सिवाय फासीवाद के कुछ नहीं हो सकती और जो प्रेम में स्वामित्व और शास्त्रों में पोंगापंथ का रूप लेती है । भाजपा के आईटीसेल के ट्रौल इसी अंधतावश शुद्ध भंजन में लगे रहते हैं, औरतों पर बलात्कार को आतुर रहते हैं और विचारों के मामले में पोंगापंथी होते हैं । फिर से दोहरायेंगे, इनका राजनितिक गंतव्य फासीवाद है ।
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