रविवार, 22 दिसंबर 2019

मोदी संविधान के प्रति अपनी वफादारी का परिचय दें, न कि भारत के लोग

—अरुण माहेश्वरी



आज दिल्ली में मोदी जी की चुनावी रैली, पूरे देश में आग लगा कर एक आडंबरपूर्ण चुनावी रैली जलते हुए रोम में बंशी बजाने का ही एक बुरा उदाहरण था ।

इस रैली में मोदी क्या बोल रहे हैं, इस बात के पहले ही यह जान लेना जरूरी है कि वे कहां से बोल रहे हैं, उनकी प्रकट बदहवासी और अहंकार का स्रोत क्या था ? वे भारत के प्रधानमंत्री हैं और उनका प्रधानमंत्री होना ही उनके दिमाग में आरएसएस के प्रचारक के काल में भरे हुए जहर को उनके लिये सर्वकालिक परम सत्य बना देने के लिये काफी है । इसीलिये वे राष्ट्र-व्यापी इतने भारी आलोड़न से चिंतित होने के बावजूद उस जहर को ही उगलते रहने के जुनून में फंसे रहने के लिये अभिशप्त है ।

व्यापक जन-आक्रोश के दबाव में वे आदतन यह झूठ बोल गये कि एनआरसी के बारे में उनकी सरकार ने आज तक सोचा तक नहीं है । उनके प्रिय गृहमंत्री के बयानों को भारत के लोग लगातार सुनते रहे हैं । लेकिन नागरिकता कानून के संदर्भ में जब वे पड़ौस के तीन देशों के सताए हुए लोगों पर करुणा बरसा रहे थे तभी भारत के आंदोलनकारियों पर सांप्रदायिक जहर से बुझे वाणों से उन्होंने जिस प्रकार हमले किये उसने उनके अंतर की उस सचाई को जाहिर कर दिया जिसे बार-बार दोहराते रहना उनकी सांप्रदायिक प्रमादग्रस्त प्रकृति की मजबूरी है । एक प्रधानमंत्री और एक प्रचारक के रूप में प्रधानमंत्री के इसी विखंडित व्यक्तित्व की दरारों से उन्हें संचालित करने वाले उनके अचेतन के तत्त्व उझक कर सामने आ गये थे । यही तो उनका स्थायी भाव है ।

वे भारत के संविधान की शपथ खा कर हाथ में तिरंगा उठाए नागरिकता कानून के विरोधियों को पाकिस्तान की कारस्तानियों का विरोध करके अपनी सचाई को प्रमाणित करने की चुनौती दे रहे थे । बात-बात में पाकिस्तान का हौवा खड़ा करके भारत में इस्लाम-विरोधी भावनाओं को भड़काने के आरएसएस के पूरे इतिहास को देखते हुए क्या मोदी जी से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि वे खुद तीन पड़ौसी मुल्कों में सताये हुए लोगों के प्रति दया भाव दिखाते हुए क्या भारत में इस्लाम-विरोधी जहर फैलाने का अपना पुराना खेल नहीं खेल रहे हैं ?

वे नागरिकता कानून को लागू न करने की घोषणा करने वाले राज्यों से कानून के विशेषज्ञों की सलाह लेने की बात कर रहे थे । उनसे पूछा जाना चाहिए कि इस संविधान-विरोधी कानून को लाने के पहले क्या उनकी सरकार ने किसी संविधान-विशेषज्ञ, बल्कि अपने ही कानून मंत्रालय तक की सलाह ली थी ? राज्य सभा में पी चिदंबरम सरकार से लगातार यह सवाल कर रहे थे कि क्या सरकार ने इस कानून की संविधान-सम्मतता के बारे में किसी से कोई विचार-विमर्श किया तो सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं था ।

जनता को बरगलाने के लिये भले आप केंद्र सरकार के कानून की अपार शक्ति का दिखावा कर सकते हैं, लेकिन सचाई यह है कि भारत एक संघीय राज्य है । इस कानून को अनेक राज्यों और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर अभी फैसला आया नहीं है । इसीलिये इस कानून को इसके इसी रूप में लागू करवाने की बात अपने समर्थकों के हौसलों को बनाये रखने के लिये दी गई मोदी जी की गीदड़ भभकी के अलावा कुछ नहीं है ।

आज जरूरत आंदोलनकारियों को अपनी देशभक्ति का प्रमाण देने की नहीं है, मोदी जी को खुद भारत के संविधान के प्रति, उसकी धर्म-निरपेक्ष भावनाओं के प्रति अपनी निष्ठा का प्रमाण देने की जरूरत है । मोदी जी का सुरसा की तरह खिंचता चला गया बदहवासी से भरा यह भाषण असल में उन्हें ही कठघरे में खड़ा करता है ।     

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