रविवार, 29 दिसंबर 2019

राजनीति पर एक अराजनीतिक गप


—अरुण माहेश्वरी


राजनीति के विषयों पर ड्राइंग रूम की थोथी गप किसे कहते है इसका एक क्लासिक उदाहरण देखा कल रात लल्लन टॉप पर राजदीप सरदेसाई और सौरभ द्विवेदी की लगभग दो घंटे की लंबी बातचीत में । यह वार्ता शायद कुछ दिन पहले हुई थी, लेकिन हमने उसे कल ही सुना । वे चर्चा कर रहे थे राजदीप की सद्य प्रकाशित किताब ‘2019 : मोदी ने कैसे भारत को जीता’ (2019 : How Modi Won India) के एक-एक अध्याय पर लल्लन टाप के किताबवाला कार्यक्रम में ।


जनतंत्र में राजनीति आम जनता और पार्टियों/नेताओं के बीच के संबंध का विषय होती है । कुछ खास राजनीतिक-सामाजिक परिस्थितियों में जनता अपना नेता चुनती है और अन्य को पराजित  करती है । खास परिस्थितियों के संदर्भ में ही जनता और नेता/पार्टी का परस्पर संबंध चुनावों का निर्णायक तत्व होता है । इसमें कोई नेता सिकंदर नहीं होता कि ‘आया, देखा और जीत लिया’ । इसीलिये जनतांत्रिक राजनीति की कोई भी चर्चा जब सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के पूरे संदर्भ को नजरंदाज करके की जाती है, तो वह कोरी हवाई होती है । ऐसी सार्वजनिक चर्चा अन्तत: एक प्रकार की ठकुरसुहाती में पर्यवसित होने के लिये अभिशप्त होती है क्योंकि इसमें जो घटित होता है, उसे ही परिस्थितियों के निश्चित परिणाम के तौर पर इस प्रकार पेश किया जाता है जिसमें विजयी सर्वगुणसंपन्न दिखाया जाता है और पराजित को एक अधम मूर्ख के सिवाय कुछ नहीं कहा जाता है ।


पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की लगातार 34 साल सरकार रही । इसमें 25 साल से ज़्यादा काल तक ज्योति बसु मुख्यमंत्री रहे । 2011 में जब वाम मोर्चा की पराजय हुई उसके ठीक पहले 2006 में उसे सबसे बड़ी विजय हासिल हुई थी । लेकिन हमने बंगाल में किसी पत्रकार की ऐसी कोई किताब नहीं देखी जिसमें ज्योति बसु की लगातार जीतों के लिये किसी ने उनके निजी करिश्मों या तिकड़मबाजियों की कहानियाँ सुनाई हो । और बुद्धदेव भट्टाचार्य की पराजय में भी किसी ने उनकी निजी पराजय देखी हो ।

भारत में अनेक सालों तक कांग्रेस दल की सरकार रही, जिसमें गांधी परिवार की हमेशा एक अहमियत रही, लेकिन किसी भी गंभीर पत्रकार ने इस परिवार के सदस्यों के निजी जीवन, उनके आचार-आचरण आदि को कांग्रेस की जीतों का मूल कारण बताने की कोशिश नहीं की है ।


यह सच है कि इतिहास का हर रूप घटित का ब्यौरा ही होता है । हेगेल की प्रसिद्ध उक्ति है कि स्वर्ग का उल्लू तभी उड़ान भरता है जब शाम ढल जाती है । लेकिन हर विषय में इस उड़ान की भी अपनी कुछ आंतरिक ज़रूरतें होती है । आप घटित के विवरण-विश्लेषण से जानना तो चाहते हैं मनुष्य के जैविक विकास को लेकिन चर्चा करने लगते हैं ब्रह्मांड के निर्माण की, वह नहीं चल सकता है । अर्थात् जिन चीजों का विषय से वास्तव में कोई संबंध नहीं होता, उन्हीं को लेकर गप्पबाजी में समय ज़ाया किया जाता है ।

 

फिर कहेंगे, यह राजनीतिक पत्रकारिता का सबसे न्यूनतम स्तर होता है जब पत्रकारिता विजयी नेताओं का ढोल बजाने और पराजित नेता को नाना प्रकार से दुत्कारने का अनैतिक रास्ता अपनाया जाता है । पत्रकारों का निजी मूल्यबोध ऐसी चर्चा से पूरी तरह से गायब होता है । यही वजह है कि इस चर्चा में राजदीप अपने पत्रकार जीवन की जिन बड़ी भूलों को स्वीकारते हैं वे सभी आज पराजित पार्टी कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं । इसमें कांग्रेस के काल में मिली पद्मश्री की उपाधि को स्वीकारना भी शामिल है । इसे ही राजनीति पर एक अराजनीतिक और अवसरवादी चर्चा कहते हैं ।



यह चर्चा राजदीप की पुस्तक को केंद्रित थी । इससे उस पुस्तक के बारे में हमें यह समझने में ज़रूर मदद मिली कि उनकी यह किताब भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण क्षण का कोई गंभीर विश्लेषण नहीं, बल्कि उसके पात्रों को लेकर की गई हल्के क़िस्म की गप्पबाजी भर है ।

—अरुण माहेश्वरी

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