मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

योगेन्द्र यादव की राजनीति और किसान आंदोलन के हित !

-अरुण माहेश्वरी 




संयुक्त किसान आंदोलन के नेतृत्व में योगेन्द्र यादव एक ऐसा प्रमुख नाम है जिनके साथ कोई महत्वपूर्ण किसान संगठन नहीं होने पर भी वे आंदोलन में अपनी मेहनत और एक सधे हुए बौद्धिक के नाते आंदोलन के प्रवक्ता बने हुए हैं इस अर्थ में अब वे सिर्फ संवाददाता सम्मेलनों में चमकने वाले नेता नहीं रहे हैं इधरख़ास तौर पर राजस्थान में किसानों की कुछ महा पंचायतों में तो उन्हें मुख्य वक्ता के रूप में भी देखा गया है  

 

ऐसे में योगेन्द्र यादव से यह उम्मीद करना स्वाभाविक है कि वे आंदोलन के एक प्रमुख प्रवक्ता के नाते इस आंदोलन की मूल भावना और इसकी प्रतिबद्धताओं का पूरी निष्ठा के साथ पालन करेंगे ; कोई भी ऐसा रुझान ज़ाहिर नहीं करेंगे जो आंदोलन की मूल भावना के विरुद्ध उसे उसके घोषित लक्ष्य से भटकाने वाला हो 

 

इस किसान आंदोलन ने हमेशा अपने को एक अराजनीतिक आंदोलन कहा हैजिसके सामने मुख्य रूप से सिर्फ़ दो प्रमुख लक्ष्य है पहला तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी और दूसरा एमएसपी की वैधानिक गारंटी  बाकी सब मुद्दे महत्वपूर्ण होने पर भी अनुषंगी और स्थानीय मुद्दे ही है  आंदोलन के लिए बाक़ी माँगे महत्वहीन  होने पर भी गौण माँगें हैं  

 

चूँकि आंदोलन के दोनों प्रमुख मुद्दे केंद्र सरकार से जुड़े हुए हैंइसीलिये किसान आंदोलन की सीधी टक्कर केंद्र सरकार से है  इस टक्कर के अगर कोई राजनीतिक पहलू हैं तो उनसे किसान आंदोलन को कोई परहेज़ नहीं हैक्योंकि केंद्र सरकार से अपनी मुख्य माँगों को मनवाने के लिए ही उस पर राजनीतिक दबाव पैदा करना आंदोलन का ज़रूरी हिस्सा हो जाता है  

 

कहा जा सकता है कि इस अर्थ में घोषित तौर पर किसानों का यह ‘अराजनीतिक’ आंदोलन बहुत गहराई से मोदी सरकार-विरोधी एक गंभीर राजनीतिक आंदोलन भी है  किसानों के संयुक्त मंच का अपना कोई राजनीतिक लक्ष्य नहीं होने पर भी आंदोलन के अपने लक्ष्य के ही ये कुछ स्वाभाविक राजनीतिक आयाम है  अर्थात् राजनीति इसके लिए कोई ऐसी चीज नहीं है जो इसके अंदर की एक ज़रूरी मगर निष्कासित शक्ति हो ; राजनीतिक तौर पर यह कोई जड़ आंदोलन नहीं है  पर यह साफ़ है कि इसकी राजनीति केंद्र-सरकार विरोधी वह राजनीति है जो खुद सत्ता की प्रतिद्वंद्विता में शामिल नहीं है  इस मायने में इसके लिए राजनीति किसान आंदोलन के हितों को साधने की एक ज़रूरी राजनीति हैजो किसान आंदोलन कोऔर उसकी एकता को भी उसके शत्रु के ख़िलाफ़ बल पहुँचाती है  यह कत्तई केंद्र सरकार को बल पहुँचाने वाली राजनीति नहीं बल्कि उसे कमजोर करने वाली राजनीति है  

 

एनडीए से अकाली दल को हटने के लिए मजबूर करना और दुष्यंत चौटाला पर हरियाणा की सरकार से निकलने का दबाव बनाना या बीजेपी के विधायकोंमंत्रियों पर गाँव-बिरादरी में प्रवेश पर प्रतिबंध की तरह की सारी घटनाएँ उसकी इसी राजनीति की द्योतक है  देश के हर कोने में बीजेपी को कमजोर करना किसान आंदोलन के लक्ष्य का एक अनिवार्य राजनीतिक पहलू है  

 

ऐसे में इस आंदोलन के किसी भी नेतृत्वकारी व्यक्ति से यही उम्मीद की जाती है कि वह कभी भी कोई ऐसी राजनीतिक स्थिति को नहीं अपनायेगा जो केंद्र सरकार-विरोधी प्रतिपक्ष की सामान्य राजनीति को कमजोर करती हैक्योंकि ऐसा करना प्रकारांतर से किसान आंदोलन की अपनी अन्तर्निहित राजनीति के विरुद्ध आंदोलन की एकता को भी कमजोर करना साबित होगा  जिस आंदोलन में किसान अपने सभी राजनीतिक मतों को भूल कर अपनी किसान पहचान के साथ शामिल हुए हैंउसमें विपक्ष के के दलों के साथ राजनीतिक मतभेदों की बात को लाना आंदोलन की एकता के लिए घातक ही होगा  किसान आंदोलन की अपनी राजनीति के परिसर में केंद्र सरकार की राजनीति के विरोध से बाहर और किसी राजनीतिक-मतवादी विरोध की कोई जगह नहीं हो सकती है  

 

लेकिन हम कई मर्तबा यह गौर करते हैं कि योगेन्द्र यादव इस विषय में आंदोलन के एक परिपक्व नेतृत्व का परिचय देने के बजाय अक्सर अजीब प्रकार के राजनीतिक बचकानेपन का परिचय देने लगते हैं  गाहे-बगाहे कांग्रेस दल और उसकी सरकारों पर हमले करना उनके के एक अजीब से शग़ल का रूप ले चुका है  राजस्थान की महा पंचायतों में वे अशोक गहलोत की सरकार को बींधते हुए उस पर जिस प्रकार हमले कर रहे थेउससे लगता है कि वे किसान आंदोलन के उद्देश्य के बाहर अपने ही किसी अलग राजनीतिक एजेंडा पर काम कर रहे हैं  लगता है कि वे यह भूल जा रहे हैं कि उनके आंदोलन का एकमात्र विरोध केंद्र सरकार से हैक्योंकि उनके आंदोलन की केंद्रीय माँगें सिर्फ़ और सिर्फ़ केंद्र सरकार से हैं  

 

हमारी राय मेंकिसान आंदोलन के अपने लक्ष्य के बाहर योगेन्द्र यादव के अपने कुछ निजी राजनीतिक लक्ष्य हो तो उन्हें उन लक्ष्यों को साधने के लिए किसान आंदोलन के मंचों का कत्तई प्रयोग नहीं करना चाहिए  इसके लिए अगर वे अपना कोई अलग राजनीतिक मंच चुन ले तो शायद किसान आंदोलन के लिए बेहतर होगा  अपने राजनीतिक मंच से वे केंद्र सरकार के बजाय और भी कई दिशाओं में निशाना साध सकते हैं  पर किसान आंदोलन के लक्ष्य उनकी तरह बहुदिक या चतुर्दिक नहीं हैं  किसान आंदोलन का निशाना अर्जुन की मछली की आँख के लक्ष्य की तरह एक ही है - मौजूदा केंद्रीय सरकार  उसे परास्त करने में जो भी सहायक होगाउन सबका किसान आंदोलन की भावना के अनुसार वह तहे-दिल से स्वागत करेगाभले ही उसे अपना मंच प्रदान नहीं करेगा और इस अर्थ में किसान आंदोलन का मंच योगेन्द्र यादव की राजनीति का भी मंच नहीं हो सकता है  

 

कांग्रेस तो अभी देश की सबसे प्रमुख विपक्षी पार्टी है  उसे लक्ष्य बना कर केंद्र-विरोधी राजनीति को कमजोर करके योगेन्द्र यादव सिर्फ़ किसान आंदोलन के नुक़सान के अलावा और कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं  

 

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि लगता है जैसे इतने महीनों के एक संयुक्त साझा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के बावजूद योगेन्द्र यादव अब तक भी इस आंदोलन की मूलतऔर अनिवार्यत: मोदी सरकार विरोधी राजनीति को पूरी तरह से आभ्यांतरित नहीं कर पाए हैं  किसान आंदोलन के संदर्भ में अंध-कांग्रेस विरोध की अपनी हमेशा की राजनीति की निस्सारता को समझते हुए वे उसे आंदोलन के हित में ही परे नहीं रख पा रहे हैं  

 

हम कल्पना कर सकते हैं कि योगेन्द्र यादव सरीखी यह ‘शुद्ध’ राजनीतिजिसे किसान आंदोलन के लिए वर्जित माना गया हैराजस्थान में किसान महापंचायतों के वैसे व्यापक आयोजनों मेंजैसे आयोजन पंजाबहरियाणापश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहे हैंकितनी बाधाएँ पैदा कर रही होगी ! इस पूरे आंदोलन के बीच से राजस्थान का वामपंथी आंदोलन फासीवाद-विरोधी एकजुट संघर्ष में पूरी शक्ति से उतरने में अपनी आत्म-बाधाओं से निकलने का जो रास्ता पा सकता हैयोगेन्द्र यादव की तरह के मित्र उसे ऐसे उत्तरण के बजाय उन्हीं बाधाओं में रमे रहने की रसद जुटाते हैं  अपने पूर्वाग्रहों के प्रति हठपूर्ण रवैये से वे एकजुट किसान आंदोलन के ज़रिए जनतांत्रिक संघर्ष की शक्ति के विस्तार के मार्ग में बाधक की भूमिका ही अदा करेंगे 

 

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