शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

‘टुंपा' राजनीति और वाम

—अरुण माहेश्वरी



कल (28 फरवरी को) कोलकाता के विशाल ब्रिगेड परेड ग्राउंड में वाम-कांग्रेस-आईएसएफ की चुनावी सभा है । यह वाम-कांग्रेस के चुनावी रण में उतरने की दुंदुभी बजाने वाली सभा है । अभी के चुनावी समीकरण को देखते हुए मीडिया में भले ही तृणमूल और भाजपा के बीच लड़ाई के बात की जा रही है, पर जमीनी हकीकत यह है कि अब क्रमशः इस लड़ाई को लोग त्रिमुखी कहने लगे हैं । और अगर यही सिलसिला जारी रहा तो कब इस कथित त्रिमुखी लड़ाई में से एक, बंगाल के लिए बाहरी तत्त्व, भाजपा का इसमें से निष्कासन हो जाएगा, पता भी नहीं चलेगा और मीडिया के लिए बंगाल का चुनाव चौंकाने वाला साबित होगा ! इसकी संभावना इसीलिये सबसे अधिक प्रबल है क्योंकि मोदी राज के कुशासन से प्रताड़ित भारत में ही बंगाल भी है । 

बहरहाल, चुनाव की गति पर अतिरिक्त निश्चय के साथ कुछ भी कहना इसीलिए उचित नहीं है क्योंकि चमत्कार आखिर चमत्कार ही होता है और किसी भी घटना प्रवाह में उसकी संभावना हमेशा बनी रहती है । इसीलिये हम अभी चुनाव परिणाम की संभावना पर कोई चर्चा करना नहीं चाहते । लेकिन इस बीच चुनाव प्रचार में ही जो कुछ सामने आ रहा है, वह अपने आप में कम दिलचस्प विषय नहीं है । 

हम यहां खास तौर पर ब्रिगेड परेड ग्राउंड में वाम-कांग्रेस की सभा के लिए सीपीएम के प्रचार के एक बहुचर्चित विषय पर बात करना चाहेंगे । इस प्रचार में सीपीएम की और से जारी एक ‘टुंपा सोना’ गान की चर्चा चारों ओर हो रही है । 

‘टुम्पा सोना’ एक अश्लील नाच के साथ बंगाल के सोशल मीडिया में पहले से वायरल काफी लोकप्रिय गीत है । इसी की धुन पर सीपीएम ने ब्रिगेड की अपनी सभा में शामिल होने के लिए एक नई ढब का आह्वानमूलक वीडियो तैयार किया है । सीपीएम के तमाम विरोधी इस धुन पर तैयार की गई पैरोडी पर अभी काफ़ी नाक भौ सिकोड़ रहे हैं, पर यह भी सच है कि यह गीत अभी सबसे अधिक वायरल होने की वजह से सब यह भी मान रहे हैं कि इस अकेली धुन के बल पर वाम को अपनी ब्रिगेड रैली के संदेश को घर-घर पहुँचाने में काफ़ी मदद मिली है । 

‘आनंदबाजार पत्रिका’ में आज ही अर्णव चट्टोपाध्याय ने लिखा है कि इस पैरोडी के बारे में तमाम सवालों के बाद भी “सच्चाई यह है कि बहुत सारे लोगों ने इस गान की बदौलत ही इस सभा के संदेश को सुना, बहुतों के मन में प्रचार की कुछ बातें पहुँची, बातों ही बातों में उनकी चेतना ब्रिगेड की राजनीति से भी कुछ जुड़ी, और संभव है कि उनमें कहीं बस भी गई । इस सफलता, अथवा सफलता की संभावना को गौण करके नहीं देखा जा सकता है ।”

दरअसल, इस गीत पर चर्चा के क्रम में ही यह भी कहा जा रहा है कि यह बंगाल के वामपंथ में सिर्फ पीढ़ी के परिवर्तन का सूचक ही नहीं है, बल्कि यह सीपीएम के अपनी परंपरागत गंभीरता से मुक्त होने का भी संकेत है । ‘टुम्पा’ इस बात का संकेत है कि सीपीएम जवान हो रही है । जवान होने का असली अर्थ होता है आकर्षक हो रही है । और शायद यही वजह है कि सीपीएम-विरोधी तमाम दल सीपीएम में पैदा हो रहे इस नये आकर्षण को लेकर गहरे रश्क का अनुभव कर रहे हैं, उसे मलिन करने पर टूट पड़े हैं । 

यहां समस्या सिर्फ यह है कि सीपीएम में जवानी का यह आकर्षण राजनीति की किसी क्रांतिकारी चे ग्वारियन शैली से पैदा नहीं हुआ है । यह अपने साथ कुछ अश्लील इंगितों के लिये हुए है । विरोधियों ने इसे ही निशाना बनाया है । पर हम समझ सकते हैं कि अपने प्रचार के लिए कभी किसी प्रकार के शील-अश्लील की परवाह न करने वाली राजनीतिक ताकतें किसी नैतिक आवेश में सीपीएम के इस नए रूप का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि सच यह है कि वे अपने पिछड़ जाने के अहसास से खिन्न हो कर खंभा नोच रही है । 

पारंपरिक रूढ़िगत विषय से हटना ही तो समाज में अश्लील माना जाता है । पर साथ ही यह भी सच है कि इसी अश्लीलता में हमेशा एक अलग प्रकार की गति और आकर्षण हुआ करते हैं । यह ‘शीलवान’ जड़ता से मुक्ति का अहसास पैदा करती है । 

हमें याद आती है हेगेल की वह प्रसिद्ध उक्ति जिसे मार्क्स भी अपने जीवन में दोहराया करते थे कि “किसी कुकर्मी के अपराधपूर्ण चिंतन में स्वर्ग के चमत्कारों से कम वैभव और गरिमा नहीं हुआ करती है ।” मार्क्स के दामाद पॉल लफार्ग ने मार्क्स के संदर्भ में इस उक्ति को प्रयोग वहां किया है जहां वे कहते हैं कि “मार्क्स के लिये चिंतन सबसे बड़ा सुख था ।” चिंतन मात्र की भव्यता और गरिमा को बताने के लिए ही वे हेगेल की उपरोक्त बात का जिक्र किया करते थे । 

इसी सिलसिले में हमारे अंदर वाम में घर की हुई जड़ता का विषय कौंधने लगता है । आखिर वाम के अंदर की शक्ति का ही वह कौन सा अंश है जो अभी उसके अंदर ही जैसे निष्कासित हो कर अलग-थलग पड़ गया है और जिसके अभाव को न समझने के वजह से वाम में एक प्रकार की जड़ता जड़ें जमाए हुए है । टुंपा सोना गान और चिंतन मात्र की भव्यता के सूत्र को पकड़ कर ही हमें लगता है, यही जो चिंतन की परंपरा वाम की हमेशा की ताकत हुआ करती थी, उसकी सृजनात्मकता का अकूत भंडार, वही किन्हीं जड़सूत्रों की झाड़ियों में उलझ कर उसके अंदर ही संभवतः कहीं निष्कासित पड़ा है । उसमें इसके अभाव का बोध जब तक पैदा नहीं होगा, बौद्धिक समाज से उसके हमेशा के गहरे संबंध को फिर से हासिल करने का सिलसिला नहीं बनेगा, वाम की जड़ता की समस्या बनी रहेगी । 

अंत में थोड़ा और भटकते हुए हम कहेंगे कि राजनीति में अपराधियों की साजिशाना हरकतों का एक ख़ास आकर्षण भी अजब प्रकार से आम लोगों को लुभाता है और उन्हें सफल बनाता है । बाबा लोगों की भद्र राजनीति से लोगों को वह राजनीति कहीं ज़्यादा अच्छी लगती है ! यहां हम सीपीएम के इस गान का और इसके मूल रूप के लिंक दे रहे हैं ।

https://www.hotstar.com/in/news/parody-tumpa-song-by-cpm-broke-the-internet-by-storm/1130802695


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