अरुण माहेश्वरी
‘इकोनोमिस्ट’ पत्रिका ने अपने ताजा लेख में नरेन्द्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री पद के लिये अयोग्य बताते हुए गुजरात के 2002 के जन-संहार का भी जिक्र किया है। उसमें साफ शब्दों में कहा गया है कि उन दंगों में मोदी के खिलाफ सबूत इसलिये नहीं मिल पाये हैं, ‘‘क्योंकि सबूतों को बाकायदा नष्ट कर दिया गया है’’। भारत में यह तथ्य सर्वविदित है। फिर भी मोदी के समर्थक पूरी निर्लज्जता से अदालत में मोदी के जुर्म के अब तक साबित न हो पाने को मोदी के निर्दोष साबित हो जाने के तौर पर पेश करते हैं।
सब जानते हैं कि केंद्र में राजग सरकार (1998-2003) के काल में संघ परिवार ने गुजरात को अपनी सांप्रदायिक राजनीति की प्रयोगशाला बनाया, हिटलर के पद-चिन्हों पर चलते हुए यहूदियों के जन-संहार की आधुनिक इतिहास की अब तक की सबसे डरावनी और जघन्य स्मृतियों को ताजा कर दिया।
तब से अब तक पूरा एक दशक बीत चुका है। 2003 के आम चुनाव में केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के शासन का अंत होगया। उसके बाद, लाख कोशिश करके भी केंद्र की सत्ता पर लौटने की राजग की कोई कोशिश सफल नहीं हुई। गुजरात जनसंहार की स्मृतियां आज भी किस प्रकार पूरे राष्ट्र को किसी दु:स्वप्न की तरह सता रही है, इसे तब से अब तक इस जनसंहार को लेकर चल रहे असंख्य मुकदमों के इतिहास को देख कर भी जाना जा सकता है। नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक घृणा और ध्रुवीकरण से बर्बर बहुसंख्यकवादी हिंसा के बल पर भले ही तीसरी बार गुजरात में चुनाव जीत कर आगये हो, लेकिन पूरा राष्ट्र इसमें एक उदीयमान आधुनिक समाज के बर्बर कबीलाई समाज के रूप में पतन के खतरे को देखकर संत्रस्त है।
गुजरात के जनसंहार से जुड़े मुकदमों में अभी सैकड़ों लोग जेल में बंद है। बहुतों को सजाएं भी हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के गुजरात के कई शीर्षस्थ नेता उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं। उम्र कैद की सजा पाने वालों में कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी शामिल है। अब तक नरेन्द्र मोदी पर कोई आंच नहीं आयी है, लेकिन उनसे भी कई बार सीबीआई ने लंबी पूछ-ताछ की है। आगे और जांच के बाद उनका अपराध भी प्रमाणित हो जाए तो कोई अचरज की बात नहीं है। पिछले आठ साल से जेल में बंद गुजरात पुलिस के अधिकारी डी जी वंजारा का हाल में जारी किया गया पत्र इस बात के संकेत देने के लिये काफी है।
गुजरात के जन-संहार को लेकर जो 4000 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हुए, नरेन्द्र मोदी की राज्य सरकार ने सबूतों को मिटा कर अथवा गवाहों को डरा-धमका कर उनमें से लगभग 2000 मुकदमें सबूतों के अभाव की बिना पर बंद करा दिये थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने उनमें से 1600 मुकदमों को फिर से जांच करने लायक पाया और उनमें लगभग साढ़े छ: सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किये गये लोगों में 40 पुलिस अधिकारी है, जिन्हें सीधे अपराध में शामिल होने अथवा जान-बूझ कर अपने काम में लापरवाही बरतने का अपराधी पाया गया है।
मोदी सरकार की एक प्रमुख मंत्री माया कोडनानी और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का कुख्यात नेता, जिसने गर्व के साथ एक गर्भवती मुस्लिम महिला के पेट को तलवार से चीर देने के अपराध को स्वीकारा था, बाबू बजरंगी उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं।
इस जनसंहार के बारे में अभी 60 से भी अधिक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों द्वारा जांच का काम चल रहा है। भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस पर अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि गुजरात में मुसलमानों पर किये गये हमले पूर्व-नियोजित थे और उनमें राज्य सरकार के अधिकारियों का प्रत्यक्ष हाथ था। ‘इस बात के प्रमाण मौजूद है कि जब मुसलमानों पर हमलें किये जा रहे थे, वहां की पुलिस खामोश बैठी थी।’’ इस रिपोर्ट में भाजपा और नरेन्द्र मोदी पर यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ‘स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में नाजीवाद का गौरव गान करके नस्लवादी श्रेष्ठता, नस्ली घृणा और नाजीवाद की विरासत को बढ़ावा दिया।’’
अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग ने भी इस बात को नोट किया है कि ‘मोदी ने माध्यमिक की स्कूली पाठ्य पुस्तकों को बदल कर उनमें हिटलर का वर्णन एक करिश्माई नेता के रूप में किया और ‘नाजीवाद की उपलब्धियों’ का शान के साथ बखान किया है।’’
जस्टिस कृष्ण अय्यर ने भी इस जनसंहार को पूर्वकल्पित कहते हुए अपनी जांच रिपोर्ट में यहां तक बताया है कि गोधरा कांड के काफी दिन पहले मुस्लिम इलाकों में हिंदुओं के घरों की सिनाख्त करके उन पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें चिपका दी गयी थी या उन पर केसरिया झंडे लगा दिये गये थे, ताकि हमलों के समय उन सिनाख्त कर दिये गये घरों को हमलों से बचाया जा सके। हमलों के पहले आर एस एस और भाजपा के समर्थन से विहिप ने कट्टर हमलावरों के शिविर आयोजित किये। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ‘इन हमलों में राज्य सरकार तो साफ तौर पर शामिल थी। और, राज्य सरकार के इस काम को केंद्र सरकार का समर्थन था, इस बात को भी अब सभी जानते हैं।’’
गुजरात की मोदी सरकार ने गोधरा की घटना की जांच के लिये जे. सी. शाह को लेकर एक व्यक्ति के जांच आयोग का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट इतनी विवादास्पद रही कि सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कहा कि ‘यह राय किन्हीं सबूतों पर नहीं, बल्कि शुद्ध कल्पना पर आधारित है।’’
इसके पहले, सन् 2003 में गुजरात सरकार ने पूरे विषय की जांच के लिये शाह-नानावती आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने भी बिना किसी की गवाह को सुने चंद महीनों बाद ही ऐलान कर दिया कि राज्य की पुलिस और सरकार ने हिंसा से निपटने के लिये जरूरी कार्रवाई करने में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरती थी। सन् 2008 में जस्टिस शाह की मृत्यु हो जाने पर उनकी जगह पर उस सेवानिवृत जज अक्षय मेहता को नियुक्त किया गया जिसने अपने कार्यकाल में कुख्यात बाबू बजरंगी को जमानत दी थी, जो आज उम्र कैद की सजा पा कर जेल में सड़ रहा है। इस आयोग की समय सीमा को अब तक बीस से ज्यादा बार बढ़ाया जा चुका है। अब कहा जा रहा है कि यह आयोग 2014 के लोक सभा चुनाव की प्रतीक्षा कर रहा है। उसके बाद ही वह अपनी कोई रिपोर्ट देगा।
इसप्रकार साफ है कि 2014 का लोकसभा चुनाव भारत में राजनीति के भविष्य को तय करने वाला एक निर्णायक चुनाव होने जा रहा है। इन चुनावों में आर एस एस ने सीधे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करके भारतीय राजनीति को हिटलर के नक्शे-कदम पर आगे ले जाने के अपने इरादों की साफ घोषणा की है। ये चुनाव भारत में धर्म-निरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच, जनतंत्र और नग्न तानाशाही के बीच एक फैसलाकुन लड़ाई के चुनाव साबित होंगे।
‘इकोनोमिस्ट’ पत्रिका ने अपने ताजा लेख में नरेन्द्र मोदी को भारत के प्रधानमंत्री पद के लिये अयोग्य बताते हुए गुजरात के 2002 के जन-संहार का भी जिक्र किया है। उसमें साफ शब्दों में कहा गया है कि उन दंगों में मोदी के खिलाफ सबूत इसलिये नहीं मिल पाये हैं, ‘‘क्योंकि सबूतों को बाकायदा नष्ट कर दिया गया है’’। भारत में यह तथ्य सर्वविदित है। फिर भी मोदी के समर्थक पूरी निर्लज्जता से अदालत में मोदी के जुर्म के अब तक साबित न हो पाने को मोदी के निर्दोष साबित हो जाने के तौर पर पेश करते हैं।
सब जानते हैं कि केंद्र में राजग सरकार (1998-2003) के काल में संघ परिवार ने गुजरात को अपनी सांप्रदायिक राजनीति की प्रयोगशाला बनाया, हिटलर के पद-चिन्हों पर चलते हुए यहूदियों के जन-संहार की आधुनिक इतिहास की अब तक की सबसे डरावनी और जघन्य स्मृतियों को ताजा कर दिया।
तब से अब तक पूरा एक दशक बीत चुका है। 2003 के आम चुनाव में केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के शासन का अंत होगया। उसके बाद, लाख कोशिश करके भी केंद्र की सत्ता पर लौटने की राजग की कोई कोशिश सफल नहीं हुई। गुजरात जनसंहार की स्मृतियां आज भी किस प्रकार पूरे राष्ट्र को किसी दु:स्वप्न की तरह सता रही है, इसे तब से अब तक इस जनसंहार को लेकर चल रहे असंख्य मुकदमों के इतिहास को देख कर भी जाना जा सकता है। नरेन्द्र मोदी सांप्रदायिक घृणा और ध्रुवीकरण से बर्बर बहुसंख्यकवादी हिंसा के बल पर भले ही तीसरी बार गुजरात में चुनाव जीत कर आगये हो, लेकिन पूरा राष्ट्र इसमें एक उदीयमान आधुनिक समाज के बर्बर कबीलाई समाज के रूप में पतन के खतरे को देखकर संत्रस्त है।
गुजरात के जनसंहार से जुड़े मुकदमों में अभी सैकड़ों लोग जेल में बंद है। बहुतों को सजाएं भी हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के गुजरात के कई शीर्षस्थ नेता उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं। उम्र कैद की सजा पाने वालों में कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी शामिल है। अब तक नरेन्द्र मोदी पर कोई आंच नहीं आयी है, लेकिन उनसे भी कई बार सीबीआई ने लंबी पूछ-ताछ की है। आगे और जांच के बाद उनका अपराध भी प्रमाणित हो जाए तो कोई अचरज की बात नहीं है। पिछले आठ साल से जेल में बंद गुजरात पुलिस के अधिकारी डी जी वंजारा का हाल में जारी किया गया पत्र इस बात के संकेत देने के लिये काफी है।
गुजरात के जन-संहार को लेकर जो 4000 से ज्यादा मुकदमें दर्ज हुए, नरेन्द्र मोदी की राज्य सरकार ने सबूतों को मिटा कर अथवा गवाहों को डरा-धमका कर उनमें से लगभग 2000 मुकदमें सबूतों के अभाव की बिना पर बंद करा दिये थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पुलिस ने उनमें से 1600 मुकदमों को फिर से जांच करने लायक पाया और उनमें लगभग साढ़े छ: सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार किये गये लोगों में 40 पुलिस अधिकारी है, जिन्हें सीधे अपराध में शामिल होने अथवा जान-बूझ कर अपने काम में लापरवाही बरतने का अपराधी पाया गया है।
मोदी सरकार की एक प्रमुख मंत्री माया कोडनानी और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) का कुख्यात नेता, जिसने गर्व के साथ एक गर्भवती मुस्लिम महिला के पेट को तलवार से चीर देने के अपराध को स्वीकारा था, बाबू बजरंगी उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं।
इस जनसंहार के बारे में अभी 60 से भी अधिक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और संगठनों द्वारा जांच का काम चल रहा है। भारत के राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस पर अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि गुजरात में मुसलमानों पर किये गये हमले पूर्व-नियोजित थे और उनमें राज्य सरकार के अधिकारियों का प्रत्यक्ष हाथ था। ‘इस बात के प्रमाण मौजूद है कि जब मुसलमानों पर हमलें किये जा रहे थे, वहां की पुलिस खामोश बैठी थी।’’ इस रिपोर्ट में भाजपा और नरेन्द्र मोदी पर यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने ‘स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में नाजीवाद का गौरव गान करके नस्लवादी श्रेष्ठता, नस्ली घृणा और नाजीवाद की विरासत को बढ़ावा दिया।’’
अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग ने भी इस बात को नोट किया है कि ‘मोदी ने माध्यमिक की स्कूली पाठ्य पुस्तकों को बदल कर उनमें हिटलर का वर्णन एक करिश्माई नेता के रूप में किया और ‘नाजीवाद की उपलब्धियों’ का शान के साथ बखान किया है।’’
जस्टिस कृष्ण अय्यर ने भी इस जनसंहार को पूर्वकल्पित कहते हुए अपनी जांच रिपोर्ट में यहां तक बताया है कि गोधरा कांड के काफी दिन पहले मुस्लिम इलाकों में हिंदुओं के घरों की सिनाख्त करके उन पर हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें चिपका दी गयी थी या उन पर केसरिया झंडे लगा दिये गये थे, ताकि हमलों के समय उन सिनाख्त कर दिये गये घरों को हमलों से बचाया जा सके। हमलों के पहले आर एस एस और भाजपा के समर्थन से विहिप ने कट्टर हमलावरों के शिविर आयोजित किये। इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ‘इन हमलों में राज्य सरकार तो साफ तौर पर शामिल थी। और, राज्य सरकार के इस काम को केंद्र सरकार का समर्थन था, इस बात को भी अब सभी जानते हैं।’’
गुजरात की मोदी सरकार ने गोधरा की घटना की जांच के लिये जे. सी. शाह को लेकर एक व्यक्ति के जांच आयोग का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट इतनी विवादास्पद रही कि सुप्रीम कोर्ट ने उस पर कहा कि ‘यह राय किन्हीं सबूतों पर नहीं, बल्कि शुद्ध कल्पना पर आधारित है।’’
इसके पहले, सन् 2003 में गुजरात सरकार ने पूरे विषय की जांच के लिये शाह-नानावती आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने भी बिना किसी की गवाह को सुने चंद महीनों बाद ही ऐलान कर दिया कि राज्य की पुलिस और सरकार ने हिंसा से निपटने के लिये जरूरी कार्रवाई करने में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरती थी। सन् 2008 में जस्टिस शाह की मृत्यु हो जाने पर उनकी जगह पर उस सेवानिवृत जज अक्षय मेहता को नियुक्त किया गया जिसने अपने कार्यकाल में कुख्यात बाबू बजरंगी को जमानत दी थी, जो आज उम्र कैद की सजा पा कर जेल में सड़ रहा है। इस आयोग की समय सीमा को अब तक बीस से ज्यादा बार बढ़ाया जा चुका है। अब कहा जा रहा है कि यह आयोग 2014 के लोक सभा चुनाव की प्रतीक्षा कर रहा है। उसके बाद ही वह अपनी कोई रिपोर्ट देगा।
इसप्रकार साफ है कि 2014 का लोकसभा चुनाव भारत में राजनीति के भविष्य को तय करने वाला एक निर्णायक चुनाव होने जा रहा है। इन चुनावों में आर एस एस ने सीधे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करके भारतीय राजनीति को हिटलर के नक्शे-कदम पर आगे ले जाने के अपने इरादों की साफ घोषणा की है। ये चुनाव भारत में धर्म-निरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच, जनतंत्र और नग्न तानाशाही के बीच एक फैसलाकुन लड़ाई के चुनाव साबित होंगे।
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