शनिवार, 5 अप्रैल 2014

भाजपा का घोषणापत्र

आरएसएस का कोई संविधान नहीं था। उसे सरदार पटेल ने जबर्दस्ती उस समय गोलवलकर पर दबाव डाल कर तैयार करवाया था जब गांधीजी की हत्या के बाद गोलवलकर जेल में थे। संविधान न होने का आरएसएस वालों का तर्क होता था कि हिंदू संयुक्त परिवार का भी क्या कोई संविधान होता है! यह तो एक अलिखित, सदियों की परंपराओं से स्वत: निर्मित संविधान है। परिवार के प्रमुख कर्ता की इच्छा सर्वोपरि होती है, उसे कोई चुनौती नहीं दी जा सकती है।

हास्यास्पद ढंग से वे संघ के अवतरण को ईश्वरीय काम मानते हुए गीता के श्लोक को भी उद्धृत करते थे :

‘‘यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थान धर्मस्य: तदात्मानं सृजाम्यहम।।’’

ऐसे में भाजपा का इस चुनाव के लिये कोई घोषणापत्र न आना ही स्वाभाविक है । उन्होंने मुखिया चुन दिया है। उसकी इच्छा और कथन ही तो घोषणापत्र है, क्योंकि उसे तो कभी चुनौती नहीं दी जा सकती है। ऊपर से, मोदी तो साक्षात ईश्वर भी है - हर हर मोदी ! महादेव का नया अवतार!

फिर कैसा घोषणापत्र, कैसा संविधान। सिर्फ चलेगा, हिटलर का फरमान।

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