अभी शायद महीना भर भी नहीं बीता है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने तमाम उपायों से मालेगांव बम विस्फोट के मामले की जांच को प्रभावित करके निचली अदालत को मजबूर कर दिया था कि इस मामले की एक प्रमुख अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर को रिहा कर दिया जाए। इसके साथ ही भाजपा के लोग एक आवाज में बोलने लगे कि हमारे देश में ‘हिंदू आतंकवाद’ नामकी कोई चीज नहीं है। यह सिर्फ कांग्रेस सरकार की दिमागी खब्त थी, भाजपा और आरएसएस को बदनाम करने की साजिश। उन्होंने अमर शहीद हेमंत करकरे को भी अपमानित करने से परहेज नहीं किया, जिन्होंने उस मामले की जांच करके उसको एक अंजाम तक पहुंचाया था और साध्वी बनी हुई प्रज्ञा सहित इन आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं को पकड़ा था।
बहरहाल, आज के अखबारों में फिर एक बार हिंदू आतंकवादी सुर्खी पर हैं। सीबीआई सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि पिछले दिनों विवेकवादी विचारक नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे और एम. एम. कलबुर्गी की एक के बाद एक जो हत्याएं हुई थीं, उनके पीछे सनाथन संगठन और हिंदू जनजागृति संघ नामके दो हिंदू आतंकवादी संगठनों का हाथ रहा है। मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के इस्लामिक राज्य की स्थापना के उद्देश्यों की तरह ही इन संगठनों का लक्ष्य हिंदू राज्य की स्थापना करना है । सीबीआई का दावा है कि वे इस मामले की आखिरी तह तक जा चुके हैं और इन दोनों संगठनों के दो फरार सरगना विरेन्द्र तावड़े और सारंग आकोलकर को पकड़ने की दिशा में कार्रवाइयां की जा रही है। विरेंद्र तावड़े 2009 के गोवा बम विस्फोट कांड का भी अभियुक्त था जो उसी समय से फरार है। सीबीआई सूत्रों ने ही अखबारों को यह भी बताया है कि इन दोनों अपराधियों की गोवा सरकार के उच्च-स्तरीय लोगों तक पैठ है।
मुंबई हाईकोर्ट ने सीबीआई को दाभोलकर की हत्या के मामले की जांच का काम सौंपा था। सीबीआई ने यह भी माना है कि ये संगठन मिल कर एक और, चौथी हत्या करने ही वाले थे कि हत्याओं की इस श्रृंखला के खिलाफ देश भर के लेखकों ने भारी प्रतिवाद आंदोलन शुरू कर दिया और इसकी वजह से चौथी हत्या करने का उनका मंसूबा पूरा नहीं हो सका।
सीबीआई की जांच की इस रिपोर्ट से ऐसे ‘ज्ञानी-मुनिजनों’ को भी अपने पर विचार करना चाहिए जो लेखकों द्वारा अकादमी के सम्मान को लौटाये जाने के आंदोलन को निरर्थक बता कर उसका मजाक उड़ा रहे थे।
आज के ‘टेलिग्राफ’ में छपी इस खबर में यह भी बताया गया है कि सनाथन संस्था गोवा में भाजपा के एक सहयोगी दल के साथ जुड़ी हुई है। इस बीच इस दल ने विधानसभा के आगामी चुनाव में भाजपा से अलग स्वतंत्र रूप में चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। इसीलिये इस संस्था के प्रति भाजपा सरकार कोई नरम रुख अपनाने के लिये मजबूर नहीं है।
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