शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

जीडीपी में गिरावट का यह पूर्वानुमान पूरी अर्थ-व्यवस्था के रसातल में जाने का साफ संकेत है


-अरुण माहेश्वरी



अर्थ-व्यवस्था पर नोटबंदी के प्रभाव को बिना कूते ही केंद्रीय सांख्यिकी विभाग (सीएसओ) ने यह घोषणा की है कि 2016-17 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर पिछले साल की तुलना में 7.6 प्रतिशत से घट कर 7.1 प्रतिशत हो जायेगी। यह पूर्वानुमान इस साल के पहले छ: महीनों तक के आंकड़ों के आधार पर किया गया है। 

सारी दुनिया जानती है कि मोदी जी की नोटबंदी ने क्रमिक रूप से नीचे की ओर जा रही इस जीडीपी में वृद्धि की दर में बाहर से एक इतना जोर का धक्का मारा है कि नवंबर और दिसंबर का महीना तो विकास दर में वृद्धि के लिहाज से सीधे गिरावट का महीना साबित होगा, जब अनगिनत छोटे-छोटे कारखाने बंद हो गये, अनौपचारिक क्षेत्र के काम-धंधे ठप हो गये थे। कृषि के क्षेत्र में भी एक बार के लिये जिस प्रकार काम रुक गया था उसका आगे की सभी प्रकार की फसलों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। नोटबंदी ने अर्थ-व्यवस्था में जड़ता पैदा करने वाली सारी शक्तियों को एकसाथ सक्रिय कर दिया है। 

ऐसी स्थिति में आगामी दो तिमाही में जीडीपी की दर अगर 4-5 प्रतिशत तक चली जाए तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होगी, बल्कि वही स्वाभाविक होगा। इसका अर्थ यह होगा कि 2016-17 के अंत में जीडीपी की जिस दर का आज 7.1 प्रतिशत पूर्वानुमान किया जा रहा है, वह सालाना दर वास्तविकता में 6 प्रतिशत से आगे ही नहीं बढ़ पायेगी। 

और यह बात अब आईने की तरह साफ है कि नरेन्द्र मोदी की तरह के आर्थिक दृष्टि से अज्ञ लेकिन अपनी जिद को प्राथमिकता देने वाले नेतृत्व के रहते रसातल की ओर कदम बढ़ा चुकी अर्थ-व्यवस्था का तब फिर से लौट कर खड़ा होना बिल्कुल असंभव होगा। आज अमेरिका सहित विकसित दुनिया में जिस प्रकार की विवेकहीन उग्र राष्ट्रवादी आर्थिक नीतियों की आंधी के आसार दिखाई दे रहे है, उसमें नरेन्द्र मोदी का नोटबंदी से स्वदेशी उत्पादन शक्तियों पर किया गया यह आघात बहुत ज्यादा महंगा साबित होगा। 

http://timesofindia.indiatimes.com/india/indias-gdp-growth-to-fall-at-7-1-per-cent-estimates-government/articleshow/56376306.cms?&TOI_browsernotification=true

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