आज बनारस के एक साथी ने लिखा है कि “अंदाज सही निकला सर, सरकारी गोरक्षा मूवमेंट ने छोटे स्लाटरों से पशु छीनकर बड़ों की ओर मूव करवा दिया । उधर के स्लाटरों में गायों की आपूर्ति की स्थति पता नहीं ।”
ये साथी खुद स्वामी करपात्री जी महाराज के एक परम सहयोगी और किसी समय गोरक्षा आंदोलन के कर्ता-धर्ताओं में एक रहे हैं । लेकिन जब आरएसएस के लोगों ने जगन्नाथ पुरी पीठ के शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ का इस्तेमाल करके इस आंदोलन पर क़ब्ज़ा जमा लिया और 1966 की गोपाष्टमी के दिन हज़ारों त्रिशूलधारी साधुओं को लेकर दिल्ली में संसद भवन पर हमला किया उसी समय से करपात्री जी महाराज ने आरएसएस की इस कार्रवाई का खुला विरोध करना शुरू कर दिया था । वह भारत में संविधान के केंद्र-स्थल पर आरएसएस का पहला सीधा हमला था । पुलिस को आक्रामक साधुओं पर गोली चलाना पड़ी थी जिसमें कुछ साधू मारे भी गये ।
मजे की बात यह है कि जिन शंकराचार्य की पीठ को तब आरएसएस ने अपना मोहरा बनाया था आज उसी पीठ के साथ आरएसएस का छत्तीस का रिश्ता है । अभी आरएसएस आज के युग के आशाराम, रामपाल, राम रहीम, बाबा रामदेव आदि की तरह के भोगी बाबाओं को हिंदू धर्म के रक्षकों के रूप में पालता-पोसता है ।
करपात्री जी की मृत्यु के बाद भी ये साथी एक ओर जहाँ अपने स्तर पर गोरक्षा के कामों से जुड़े हुए हैं, वहीं इस क्षेत्र में आरएसएस की गतिविधियों पर इनकी तीखी नज़र रहने और स्लाटर हाउस तथा गोमांस के व्यापारियों के साथ संघ के लोगों की साँठ-गाँठ का हमेशा विरोध करने की वजह से संघ वालों ने इन्हें नाना प्रकार से प्रताड़ित भी किया है । इसीलिये उनका आग्रह है कि इस टिप्पणी में उनका नाम नहीं जाना चाहिए ।
इधर मोदी के सत्ता में आने और गोगुंडों के रूप में गोरक्षकों की भूमिका को देख कर वे इधर अक्सर कहा करते थे कि ये समूची गतिविधियाँ बड़े-बड़े स्लाटर हाउसेस की गोमांस के व्यापार पर पूर्ण इजारेदारी को कायम करने का उपक्रम भर है ।
आज योगी सरकार ने सत्ता पर आने के साथ ही ग़ैर-क़ानूनी स्लाटर हाउस पर पाबंदी के नाम पर जो काम शुरू किया है, उसकी दिशा इसी बीच साफ हो गई है । अब आगे से गायों को कटने के लिये सिर्फ बड़े-बड़े स्लाटर हाउस को ही भेजा जायेगा । वे ही ऐसी गायों की क़ीमतों को अपनी मर्ज़ी से तय करेंगे । इसमें अब बाजार के नियम की कोई दखलंदाजी नहीं रहेगी ।
कहा जाता है कि आज के भारत में हज़ारों करोड़ रुपये के गोमांस के व्यापार पर इनकी पूरी इजारेदारी है । उनकी मर्ज़ी के बिना व्यापार के इस क्षेत्र का एक पत्ता भी नहीं हिलता है । अगर यह सच है तो कहना होगा, धर्म के नाम पर राजनीति का यह कैसा खेल है !
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