शनिवार, 4 मई 2019

एक अशिक्षित नेतृत्व से भारत को मुक्त करने का समय आ गया है

—अरुण माहेश्वरी



आदमी के गठन में उसके इर्द-गिर्द के लोगों की उससे की जाने वाली अपेक्षाओं की बड़ी भूमिका होती है । आतंकवादियों की सोहबत में रहने वाला आदमी हमेशा अपने आतंकवादी मित्रों की अपेक्षाओं में ही खरा उतरने की कोशिश करता रहता है ।

इस प्रकार निकट के लोगों की नज़रें आदमी की सूरत को तैयार करने में एक प्रकार की अदृश्य लेजर बीम की तरह, न दिखाई देने वाली छैनी की तरह काम करती रहती है ।

पढ़ाई-लिखाई आदमी को इस नितांत निजी परिवेश की सीमा से बाहर निकलने में मददगार होती है ।

अपने ही दायरे में सिमटा आदमी एक प्रकार से अंधा होता है । वह उसी जगह का नक़्शा बनाने में सक्षम होता है जिसे वह जानता होता है । दृष्टिहीनता उसे अपनी निजी ऐंद्रिकता के बाहर नहीं जाने देती ।

इसीलिये यदि किसी व्यक्ति को वृहत्तर समाज के हित में भूमिका अदा करनी होती है तो उसके लिये उतनी ही ज़्यादा शिक्षा और सार्विक ज्ञान पर आधारित गहनता की जरूरत होती है ।

जब भी कोई व्यक्ति शिक्षा और बौद्धिकता के प्रति तिरस्कार का भाव अपनाता है, मान लीजिए कि वह अपने व्यक्तित्व में एक प्रकार की अंधता और पंगुता को पाल रहा होता है ।

भारत में, दुनिया के दूसरे सभी उग्रवादी, आतंकवादी और आधुनिकता-विरोधी, शिक्षा-विरोधी समूहों की तरह का एक सबसे बड़ा राजनीतिक समूह है - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ।

आरएसएस में सुनियोजित ढंग से आदमी को बचपन से एक ऐसा परिवेश दिया जाता है जिससे उसमें सबसे पहले जानने का, प्रश्नाकुलता का भाव ख़त्म हो जाए । अंध श्रद्धा को यहाँ सुनियोजित ढंग से पाला-पोसा जाता है । इसके साथ ही योजनाबद्ध तरीक़े से उसके दिमाग में भारतीय समाज और धर्मों के बारे में आदमी में ऐसी तमाम प्रकार की झूठी बातों को भर दिया जाता है, जिससे आदमी अपने दायरे में ही सिमट कर रह जाए । अन्यों से नफ़रत करता हुआ उनसे स्थाई दूरी बनाए रखे ।

यह सच है कि आप जिसे अच्छी तरह से जानते हैं, उससे कभी नफरत नहीं कर सकते है ।

ये सारी बातें खास तौर पर हमारे प्रधानमंत्री को देखते हुए हमारे दिमाग में आ रही है ।

मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अपने संघी साथियों की खास नजर के दायरे से, उनकी दी हुई अंधता, अज्ञता और अन्यों के प्रति घृणा और नफ़रत के भाव से अलग नहीं हो पाए हैं ।

अंध भक्ति में आदमी की मुक्ति को देखने की उनकी बुनियादी समझ उन्हें आम जनता में हर प्रकार की स्वतंत्रता के भाव का शत्रु बनाए रखती है और शासक के रूप में उनके साथ भेड़-बकरियों की तरह के व्यवहार के लिये उन्हें प्रेरित करती है ।

मोदी संघी संस्कार के बाहर सोचने में असमर्थ है और इसीलिये कथित हिंदुत्व के वर्चस्व को आज भी अपना ध्येय बनाए हुए हैं ।

यदि भारत के स्तर के एक बहुजातीय विशाल राष्ट्र की बागडोर एक ऐसे अंध, अज्ञ और ज्ञान-विरोधी तानाशाही मनोवृत्ति के व्यक्ति के हाथ में आजाए तो कितना बुरा हो सकता है, मोदी के इन पाँच सालों के शासन का प्रत्येक क्षण इस सच के ही प्रमाण पेश करता रहा है ।

आज समय है जब इस आधे-अधूरे अशिक्षित व्यक्ति से भारत को पूरी तरह मुक्त किया जाए । भारत के विकास पथ से इस पहाड़ समान बाधा को दूर करने का समय आ गया है ।

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