—अरुण माहेश्वरी
ट्रंप ने वास्तव में अमेरिकी जनतंत्र के सामने दर्शनशास्त्र की भाषा में जिसे हेगेलियन क्षण कहते हैं उसकी परिस्थिति पैदा कर दी है । ट्रंप स्वतंत्रता की बात करते हैं, कहते हैं कि बाइदेन के आने से अमेरिकी समाज की स्वतंत्रता, पूंजी की स्वतंत्रता, बंदूक रखने की स्वतंत्रता छिन जाएगी और समाजवाद आ जाएगा । इस प्रकार ट्रंप ने अमेरिकावासियों के सामने जिंदगी अथवा स्वतंत्रता के बीच एक को चुनने का सवाल खड़ा कर दिया है । काले लोगों को तो इस नारे के साथ लड़ाई के मैदान में उतरने के लिए मजबूर किया है कि काले लोगों की जिंदगी का भी कोई मूल्य है । कमोबेस वही दशा उसने प्रवासियों के लिए पैदा कर दी । यहां तक कि कोरोना महामारी और सामान्य रूप में जन-स्वास्थ्य के प्रति ट्रंप के निष्ठुर रवैये ने अमेरिका की पूरी आबादी के लिए जिंदगी अथवा स्वतंत्रता के बीच एक को चुनने के हेगेलीय क्षण को पैदा कर दिया है ।
जाहिर है कि ऐसी परिस्थिति में अमेरिका के लोगों के सामने जिंदगी को चुनने के अलावा दूसरा कोई विकल्प शेष नहीं रह गया है । स्वतंत्रता उन्हें कितनी ही प्रिय क्यों न हो, यदि उसका अर्थ मरने की स्वतंत्रता हो तो हर कोई जानता है कि ऐसी स्वतंत्रता को चुन कर वह जिंदगी और स्वतंत्रता, दोनों से ही हाथ गंवाएगा ।
ट्रंप ने अमेरिकी चुनाव में अपनी उग्रता के चलते मतदाताओं के सामने जिस हद तक इस प्रकार के एक भयानक संकट को पैदा किया है, उसी हद तक उसने इस चुनाव में अपनी कब्र खोद ली है । यह उसके चरित्र में गहरे तक बैठ चुकी डब्लूडब्लूएफ की दहाड़ने वाली कुश्तियों की प्रदर्शनप्रिय, भड़काऊ उत्तेजनाओं की वजह से ही हुआ है ।
अमेरिका में यहां तक कहा जाने लगा है कि आज दुनिया के लिए खुद में यह कितने बड़े संकट की बात है कि एक ऐसे उन्मादित आदमी के हाथ में दुनिया के सबसे बड़े नाभिकीय हथियारों को दागने का बटन है ! ‘इकोनॉमिस्ट’ लिखता है - “डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी मूल्यों को तहस-नहस कर दिया है । जो बाइदेन में उन मूल्यों की मरम्मत करके फिर से खड़ा करने की उम्मीद हैं ।”
यह बिल्कुल सच है कि ट्रंप को हराना आज अमेरिका के अस्तित्व की रक्षा के लिए ज़रूरी हो गया है ।
पूरे अमेरिका में लोग अपनी रक्षा के लिये बड़े पैमाने पर हथियार ख़रीद रहे हैं । ‘वालमार्ट’ ने परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए एक समय अपने तमाम स्टोर पर हथियारों की बिक्री बंद कर दी थी । पूरे अमेरिका को लगभग दो विरोधी ख़ेमों में बाँट देने की ट्रंप की कोशिशों के बाद यह सच है कि चुनाव के अंतिम चरण में अब ट्रंप के पास अमेरिकी समाज के सबसे लंपट, गोरे नस्लवादियों का उग्र समूह भर बचा रह गया है । इसीलिये चुनाव में तो ट्रंप की बुरी पराजय सुनिश्चित है, पर यह भी साफ दिखाई दे रहा है कि चुनाव पूरा न होने तक वहाँ की सड़कों पर इन उत्पाती तत्त्वों का क़ब्ज़ा जरूर बना रहेगा ।
अमेरिका आज ट्रंप के नस्लवादी समर्थकों के उपद्रवों की आशंका से डरा हुआ है । वहां लोगों के बीच चुनाव की तारीख के बहुत पहले ही मतदान कर देने की भारी उत्कंठा पैदा हो गई है । कई राज्यों में तो चुनाव के दिन के पहले ही 2016 के चुनाव से अधिक मतदान हो चुका है । बाकी अधिकांश राज्यों में भी 2016 के मतदान का 90 प्रतिशत इसी बीच हो चुका है । न्यूयार्क जैसे शहर में भी बड़े-बड़े स्टोर ने चुनाव के बाद भारी उत्पात की आशंका पर अपने स्टोर के सामने अस्थायी सुरक्षा दीवारें बना ली है । ट्रंप लगातार अपने भड़काऊ भाषणों से परिस्थिति को तनावपूर्ण और अनिश्चित बनाए हुए हैं ।
इन हालात में अमेरिका के लोगों ने इस बार के चुनाव में अपने मतदान के महत्व को बिल्कुल नए रूप में पहचाना है । यही वजह है कि हमारा मानना है कि इस चुनाव में अमेरिका में ऐतिहासिक, सबसे अधिक मतदान होगा और यही इस बात को भी तय करेगा कि ट्रंप इतिहास में सबसे ज्यादा मतों से हारने वाले राष्ट्रपति होंगे ।
अमेरिका के चुनाव से हमारे जैसे देश के लिए सबसे बड़ा सबक यही है कि जब ट्रंप जैसा एक उग्र नस्लवादी नेता अमेरिका के स्तर की दुनिया की अकेली महाशक्ति की जड़ों को हिला सकता है, तो मोदी के स्तर का उग्र सांप्रदायिक व्यक्ति भारत जैसे ग़रीब और कमजोर देश पर क्या क़हर बरपा कर सकता है, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है । इसके अशनि संकेतों को हम अभी अपने हर रोज़ के अनुभवों से महसूस कर सकते हैं ।
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