बुधवार, 28 जनवरी 2015

ओबामा और मोदी

हंसी आती है यह सुन कर कि कितना साम्य है ओबामा और मोदी में। एक रसोइये का पोता तो दूसरा खुद चायवाला। और दोनों दुनिया के दो बड़े जनतंत्रों के प्रधान।
क्या सचमुच इनकी इस यात्रा का कोई संबंध इनकी पैदाइश के किसी मूल तत्व से है? सच तो यह है कि वे अपने मूल से जितना दूर हुए हैं, उतना ही ज्यादा राजनीति के शिखर की सीढि़यों पर चढ़े हैं।
कोई आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी या सुषमा जी से ही पूछे मोदी जी की कहानी। राजनीति की बिसात पर वे किसी सीधे-सादे चायवाले से मात खाये या फिर घोड़े की तरह की अढ़ाई घर की टेढ़ी चाल चलने वाले शातिर खिलाड़ी से।
आस्थावादी इस सबको भाग्य का खेल कहेंगे। हम जैसे नास्तिक जीवन के न जाने कितने घात-प्रतिघातों, संगति और विसंगतियों की उपज।
लेकिन इन सबका रत्ती भर संबंध भी इनके किसी मूल से शायद ही होगा ! और तो और, जनतंत्र से भी शायद नहीं। अमेरिका के अब तक के जनतांत्रिक राजनीतिक इतिहास में ही कितने शासक परिवारों की परंपरा कायम हो चुकी है, हम सब जानते हैं। भारतीय जनतंत्र का भी अविभाज्य अंग है - परिवारवाद। इसमें कोई भी अपवाद सिर्फ सामान्य की ही पुष्टि करता है, सामान्य नियम नहीं होता।

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