आरएसएस ने लेखकों, इतिहासकारों, फ़िल्मकारों, वैज्ञानिकों और देश में बढ़ती हुई सांप्रदायिक असहिष्णुता का प्रतिवाद करने वालों की कार्रवाइयों को 'नंगा नाच' घोषित किया है । कल राँची में आरएसएस की चल रही बैठक के बीच से उसके प्रवक्ता ने संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही है ।
आरएसएस का यह रुख़ इस बात का साफ संकेत है कि आने वाले समय में और भी संगठित रूप में सांप्रदायिकता-विरोध की हर आवाज़ को कुचल देने की साज़िशें रची जायेगी । लेखकों के खिलाफ गंदे प्रचार को, उनको दी जाने वली गालियों और धमकियों को तथा उन पर शारीरिक हमलों को और भी तेज़ किया जायेगा । उन्होने साफ तौर पर हिटलर के नक़्शे-क़दम पर चलने और तर्क तथा विवेक के बजाय शुद्ध रूप से पाशविक शक्ति के बल पर विरोधियों से निपटने का निर्णय लिया है । हिटलर कहा करता था तर्क और विवेक नहीं, सारे मामलों को हमारा घूँसा तय करेगा । जिन लोगों ने डाभोलकर, पानसारेऔर कलबुर्गी की हत्याएँ की, वे इसी हिटलरी सिद्धांत के समर्थक रहे हैं । अब आरएसएस ने लेखकों-बुद्धिजीवियों के प्रतिवाद को 'नंगा नाच' घोषित करके अपने ऐसे तमाम तत्वों को उतर पड़ने के लिये हरी झंडी दिखा दी है ।
क्रमश: देश में ऐसी परिस्थिति बनती हुई दिखाई दे रही है जिसमें लगता है सरकार तमाम बौद्धकों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर देगी । इस ख़तरे के प्रति सतर्क होने और प्रतिरोध की क़तार को और ज़्यादा विस्तृत और गहरा करने की ज़रूरत है । अन्यथा जैसे हिटलर का पूरा काल जर्मनी के लिये रचना-हीनता का काला काल साबित हुआ, भारत में भी कुछ ऐसा ही होता नज़र आयेगा ।
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