गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नोटबंदी एक राष्ट्रीय आपदा का रूप ले रही है



प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने दो दिन पहले बहुत चलताऊ ढंग से नोटबंदी के कदम को एक ‘साहसी’ फैसला बताया था जिससे काला धन और भ्रष्टाचार दूर होगा। उन्होंने ही आज फिर इस विषय पर विचार करते हुए एक ट्विट करके वस्तुत: इसे आम लोगों के लिये एक राष्ट्रीय आपदा करार दिया है। उन्होंने कहा है कि :

‘‘इस नोटबंदी से आम लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। खास तौर पर देश भर के छोटे शहरों में जिन लोगों को फौरन चिकित्सा की जरूरत है, ऑपरेशन कराने की जरूरत है और दवाएं चाहिए, वे बड़ी परेशानी में हैं। नगदी में कमी के चलते खाने-पीने की घर की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में भी गरीबों को बहुत तकलीफ हो रही है।
‘‘सरकार अपनी ओर से ज्यादा से ज्यादा करेंसी नोट उपलब्ध कराने की कोशिश करे, लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रीय आपदाओं के समय जिस प्रकार के राहत कार्य किये जाते हैं ताकि लोग अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा कर सके, छोटे अस्पतालों में जरूरी चिकित्सा हासिल कर सके, उन सबको भी करने की जरूरत है। इस प्रकार के आपातकालीन कदमों से पीडि़त लोगों को लगेगा कि सरकार को उनका खयाल है, विमुद्रीकरण के महत्वपूर्ण कार्यक्रम पर अमल के दौरान वह आम लोगों की जरूरतों को भूली नहीं है।’’



इसी प्रकार, आज राज्य सभा में बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के कदम को एक संगठित लूट और कानूनी डाका बताया और कहा कि प्रधानमंत्री ने लोगों से पचास दिन मांगे हैं। सवाल है कि हमारे देश के गरीब लोग क्या इन पचास दिनों को भी बर्दाश्त कर पायेंगे ? इसने इस सरकार की व्यवस्थाओं में पहाड़ समान कमियों को जाहिर किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक बेपर्द हुए हैं। किसान जनता की जरूरतों को पूरा करने वाले सहकारी बैंकों को पंगु बना दिया गया है। इससे जीडीपी को 2 प्रतिशत तक का नुकसान पहुंच सकता है।

सिर्फ रतन टाटा या पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं, जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग जो संघियों की तरह निष्ठुर नहीं है, जिनमें मानवीय संवेदनाएं अब भी बची हुई है, शुरू से इसी प्रकार महसूस कर रहे हैं।

कहना न होगा, अगर इस फैसले को तत्काल नहीं बदला गया तो यह एक सनकी शासक द्वारा भारत के लाखो-करोड़ों लोगों की जिंदगी से खेलने वाला कदम साबित होगा। इससे देश को रत्ती भर भी लाभ नहीं होने वाला है।

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