बुधवार, 23 नवंबर 2016

यह कोरा बेहूदापन है





आज ‘टेलिग्राफ’ में प्रभात पटनायक ने अपने लेख - ‘विमुद्रीकरण और गरीबों का विनाश : इसका कोरा बेहूदापन’ ( Demonetisation and the destruction of the poor : The inanity of it all) में लिखा है कि यह समय है जब बिना किसी लाग-लपेट के बात की जानी चाहिए। तत्काल 500 और 1000 के नोटों के चलन को रोकने का यह फैसला आजाद भारत में लिया गया आज तक का सबसे बड़ा बेहूदा फैसला है। प्रभात ने इसमें कहा है कि सरकार के ऐसे कई निर्णय होते हैं जो हमारे अनुसार आगे जा कर आम लोगों पर बुरा असर डालते हैं। मसलन्, अर्थ-व्यवस्था को वैश्विक वित्तीय प्रवाह के लिये खोल देना। लेकिन इन फैसलों के पीछे वर्गीय हित काम कर रहे होते हैं, वे ऐसे कोरे बेहूदा फैसले नहीं होते हैं।

प्रभात ने अपने इस लेख में सरकार की काले धन के बारे में भारी नासमझी से लेकर जाली नोटों पर इसके प्रभाव की सारी दलीलों की धज्जियां उड़ाई है और साफ शब्दों में कहा है कि इससे तेजी से काला धन पैदा करने वाले नगदी के एक नए कारोबार का प्रारंभ होगा।

‘‘करेंसी को नष्ट करने का अर्थ है उन गरीबों की खरीद की ताकत को नष्ट कर देना जो जीवन में नगदी का ही व्यवहार करते हैं।" इससे पैदा होने वाली भारी मंदी के प्रभावों को बताते हुए प्रभात ने इसे चंद काला धंधा वालों को तंग करने के नाम पर करोड़ों आम लोगों की नाक को काट डालना कहा है।

प्रभात ने अपने लेख के अंत में कहा है कि ‘‘भारतीय आर्थिक नौकरशाही को काफी बुद्धिमान माना जाता है। विमुद्रीकरण के इस कदम के बेहुदापन और ऐसे कदम के पहले की जरूरी तैयारियों की भारी कमी से पता चलता है कि उसमें बुद्धि का कितना अभाव हो गया है।’’

हम यहां इतना और जोड़ना चाहेंगे कि यह मोदी जी के उन्माद का एक ऐसा खेल है जिसमें आदमी जिसे निशाना बनाने की बात करता है वह तो एक कोरा धोखा होता है, और इस उपक्रम में जो तमाम हरकतें कर बैठता है, उसके अकल्पनीय घातक परिणाम होते हैं।

http://www.telegraphindia.com/1161124/jsp/opinion/story_120873.jsp#.WDaA6tV97IU

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