सोमवार, 10 जुलाई 2017

कार्ल मार्क्स : जिसके पास अपनी एक किताब है (18)


-अरुण माहेश्वरी


हेगेल से मिली पहली मदद


जैसा कि हमने कानून के बारे में सेविनी के चिंतन से उठे सवालों पर मार्क्स की उलझनों पर विचार और उनकी 300 पृष्ठों की पांडुलिपि पर चर्चा के क्रम में देखा कि यही वह समय था जब उन्होंने हेगेल का गहराई से अध्ययन किया था । रोमन कानून में विचारों के विकास के अध्ययन से वे इस नतीजे पर पहुंचे थे कि ‘एक अवधारणा के रूप में किसी विधेयात्मक कानून के विकास और कानून की अवधारणा के गठन में वास्तव में कोई फर्क नहीं है । पिता को पत्र में लिखा कि सेविनी में उन्होंने उस भूल को देखा जो वे खुद कर रहे थे — कानून की वस्तु और विकास को वे अलग-अलग करके देख रहे थे । इस विषय में न कांट के दर्शनशास्त्र से उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर मिल पाया था और न सेविनी के इतिहासवाद से । मार्क्स ने जब ठोस रूप में निजी कानून को देखना शुरू किया, उनकी समस्या और बढ़ गई । क्योंकि इसमें व्यक्तियों और संपत्ति के केंद्रीय मुद्दों पर विचार करना था । तब तक उनके सामने एक बात तो साफ थी कि किसी भी चीज पर अधिकार, अर्थात उसके प्रयोग या त्याग के बारे में कब्जे की जो रोमन अवधारणा है, उसे लेकर किसी विवेक संगत प्रणाली को विकसित नहीं किया जा सकता है। लेकिन उन्हें इसके आगे का रास्ता नहीं मिल पा रहा था । यहां पर एक बार के लिये उन्होंने अपने प्रकल्प को स्थगित कर दिया था।

ब्रुनो बावर

अपने विचार में आए गतिरोध के इसी बिंदु पर मार्क्स को हेगेल ने आगे का रास्ता दिखाया । हेगेल के जरिये ही उन्होंने जाना कि ठोस तथ्य और अवधारणा के बीच अलगाव के बजाय उन्हें कानून के विकास को “विचारों के एक सजीव जगत की ठोस अभिव्यक्ति“ के रूप में देखना होगा । उन्होंने पिता को लिखा, “कांट और फिख्ते के भाववाद से वे खुद यथार्थ में ही विचारों को देखने लगे थे ।...पहले यदि ईश्वर का स्थान धरती के ऊपर था तो अब वह उसके केंद्र में, उसकी धुरी बन गया।“

मार्क्स को इस नई दिशा में बढ़ने में हेगेल के उनके स्वाध्याय के साथ ही डाक्टर्स क्लब के हेगेलपंथी मित्रों से उनको बड़ी मदद मिली । इसमें मार्क्स ने खास तौर पर ब्रुनो बावर का उल्लेख किया है, और बर्लिन के अपने एक दोस्त डा. एडोल्फ रोटेनबर्ग का भी ।


इसी प्रकार, बर्लिन विश्वविद्यालय में कानून के अन्य अध्यापक एदुआर्द गैन्स भी उनके लिये बहुत मददगार हुए थे, जिनके लेक्चर को सुनने मार्क्स अक्सर जाया करते थे । गैन्स हेगेल के जीवित काल में उनके घनिष्ठ मित्रों में एक थे । हेगेल की मृत्यु के बाद उन्होंने ही उनके महत्वपूर्ण ग्रंथ Philosophy of Rights और Philosophy of History को संपादित करके प्रकाशित कराया था । वे 1819 के बाद के सालों में हेगेल की तुलना में ज्यादा क्रांतिकारी थे । उनका पेरिस के सेंट साइमनपंथियों से सीधा संपर्क था । सामाजिक सवालों पर गंभीरता से अध्ययन करने वाले वे पहले जर्मन लेखक थे । खास तौर पर सेविनी के कानून के ऐतिहासिक स्कूल की आलोचना बहुत महत्वपूर्ण थी ।


तत्कालीन जर्मनी में राजनीतिक पार्टियां और प्रेस की स्वतंत्रता न होने की वजह से घरेलू राजनीति में किसी के हस्तक्षेप की तो गुंजाइश नहीं थी, लेकिन 1820-30 के जमाने में प्रशिया के भविष्य को लेकर सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई रोमन कानून की प्रकृति के बारे में विवाद के नाम पर ही लड़ी गई थी ।


सेविनी भी राजनीति से सीधे जुड़े न होने पर भी नेपोलियन के युद्ध के अंत में उनका राजनीतिक रुझान साफ हो गया था । 1814 में जब कुछ हलकों से यह प्रस्ताव आया कि जर्मनी को अब नेपोलियन संहिता को छोड़ कर समान कानून संहिता को अपनाना चाहिए तभी सेविनी ने उस पर भारी विवाद किया था । उनका तर्क था कि नेपोलियन संहिता का प्रयोग राष्ट्र को बांधने के लिये किया गया था, जिससे सफलता के साथ उसने शासन चलाया था । सेविनी का कहना था कि इस समान संहिता का जन्म जब हुआ था, जब पूरा यूरोप सुधार के लिये अंधा हो गया था। इसने जर्मनी को तो कैंसर की तरह ज्यादा से ज्यादा कुतर दिया था । लेकिन अब सब जगह एक ऐतिहासिक जागरुकता पैदा हो गई है । अब उस प्रकार की छिछली आत्म-निर्भरता के लिये कोई जगह नहीं है ।

सेविनी

(क्रमशः)  







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