शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी संवैधानिक क्रांति से कम नहीं है

—अरुण माहेश्वरी


सुप्रीम कोर्ट का निजता के अधिकार पर ऐतिहासिक सर्वसम्मत (9-0) निर्णय भारतीय संविधान के इतिहास में एक बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित होगा । वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो कहना होगा कि अगर राजशाही के ज़माने में 1804 की नेपोलियन संहिता ने दुनिया में राज्य और नागरिक के अधिकारों के रूप को बदल डाला था तो आज भारत के सुप्रीम कोर्ट का फैसला डिजिटल युग में सारी दुनिया में इन अधिकारों के पुनर्विन्यास का हेतु बनेगा । सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भाजपाइयों की कोरी लफ़्फ़ाज़ियों के विपरीत सचमुच में भारत को विश्व गुरू की तरह के एक सम्मान का हक़दार बनाया है ।

भारत में मोदी सरकार ने आधार कार्ड आदि के नाम पर भारत के नागरिकों को गुलाम बना कर रखने का जो जाल बुना था, सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में उस जाल को छिन्न-भिन्न कर दिया ।

यह मोदी सरकार और संघ वालों को अब तक की सबसे बड़ी चपत है । चकमाबाजी से चुनाव जीत कर आई सरकार नागरिक के अधिकारों से ऊपर नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने आज के फैसले से यह एक साफ घोषणा की है । सुप्रीम कोर्ट की राय बताती है कि संविधान की रक्षा के लिये ज़िम्मेदार न्यायपालिका ने जनतंत्र और नागरिक की रक्षा को जरूरी माना है । इसके साथ खुद न्यायपालिका का भविष्य भी जुड़ा हुआ है । आने वाले काल में इस फैसले के गभितार्थों को समझते हुए निःसंकोच कहा जा सकता है कि भारत की संवैधानिक संस्थाएँ किसी बहुमत की सरकार की मुखापेक्षी न होकर अगर अपने दायित्वों को बेख़ौफ़ निभायें तो फासीवाद जरूर पराजित होगा ।

इस फैसले का भारत के जन-संचार माध्यमों पर क्या असर पड़ सकता है, इसे देखे तो कहा जा सकता है कि निजता के आधिकार पर आज का फैसला गोस्वामी की तरह के चरित्र-हननकारी पत्रकारों-ऐंकरों को अपराधी के कठघरे में ले जाने में मददगार होगा । सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक झूठ को लेकर चीख़ने-चिल्लाने वाले 'गोस्वामियों ' की पत्रकारिता के अवसान का सूचक है ।

इसमें नागरिक की गरिमा को केंद्रीय महत्व की बात घोषित किया गया है । जो ट्रौल बेझिझक गंदी गालियाँ देते थे और बेधड़क घूमते थे, क्रमश: उनकी करतूतों को प्रथम दृष्ट्या अपराध मान कर एफआईआर होने लगेंगे । पुलिस अगर हिचकेगी तो अदालत उसे बाध्य करेगी क्योंकि नागरिक की गरिमा से समझौता नहीं हो सकता है । इसलिये आने वाले समय में सोशल मीडिया या अख़बारों में गाली-गलौज करने वालों पर एफआईआर की तलवार लटकती रहेगी । इससे मीडिया के ब्लैक मेलर्स और किसी को भी मनमाने ढंग से अपमानित करने वालों पर भी अंकुश लगेगा ।

निजता के अधिकार के मामले में मोदी सरकार की दलील थी कि चूंकि संविधान के मूलभूत अधिकार में निजता का अधिकार शामिल नहीं है, इसीलिये इसे संवैधानिक अधिकार नहीं माना जा सकता है ।

इस पर न्यायमूर्ति जे चेलमाश्वर ने अपनी राय में लिखा है कि संविधान के बारे में यह समझ बिल्कुल 'बचकानी और संवैधानिक व्याख्याओं के स्थापित मानदंडों के विपरीत है' ।

“नागरिकों के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रताओं के प्रति यह दृष्टिकोण हमारी जनता की सामूहिक बुद्धिमत्ता और संविधान सभा के सदस्यों के विवेक का अपमान है ।“

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने साफ किया कि कैसे नागरिकों को उनके बारे में न सिर्फ झूठी बातों से बल्कि उनके बारे में 'कुछ सच्ची बातों' से भी अपने सम्मान की रक्षा करने का अधिकार है ।
“यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी के भी बारे में ज्यादा सही राय तभी कायम की जा सकती है जब उसके जीवन की निजी बातों जान लिया जाता है — लोग हमें गलत ढंग से समझते हैं, वे हमें हड़बड़ी में समझते हैं, संदर्भ से हट कर समझते हैं, वे बिना पूरी कहानी सुने राय बनाते हैं और उनकी समझ में मिथ्याचार होता है ।“
कई विदेशी लेखकों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, “ निजती लोगों को अपने बारे में इन परेशान करने वाली रायों से सुरक्षा देती है । इस बात का कोई तुक नहीं है कि सारी सच्ची सूचनाओं को सार्वजनिक किया जाए ।“
कौन से प्रसिद्ध व्यक्ति का किसके साथ यौन संबंध है इसमें लोगों की दिलचस्पी हो सकती है, लेकिन इसका जन-हित से कोई मतलब नहीं है और इसीलिये वह बात निजता का हनन हो सकती है । इसीलिये वह सच्ची बात जो निजता का हनन करती है, उससे भी सुरक्षा की जरूरत है ।“

“प्रत्येक नागरिक को अपने खुद के जीवन पर नियंत्रण और दुनिया के सामने अपनी छवि को बनाने के लिये काम करने का अधिकार है और अपनी पहचान के व्यवसायिक प्रयोग का भी।“

न्यायमूर्ति कौल ने आगे और कहा कि “निजता का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है ; यह वह अधिकार है जो व्यक्ति के अंतरजगत में राज्य के और राज्य के बाहर के लोगों के हस्तक्षेप से उसे बचाता है और व्यक्ति को स्वायत्त हो कर जीवन में चयन की अनुमति देता है ।

“घर के अंदर की निजता में परिवार, शादी, प्रजनन, और यौनिक रुझान की सुरक्षा ये सब गरिमा के महत्वपूर्ण पहलू हैं ।“

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रौल उद्योग और उस पर टिकी राजनीति  की जड़ों में मट्ठा डालने का काम करेगा । कहा जा सकता है कि ट्रौल्स ! सावधान ! अब आपके सीधे जेल की सींखचों के पीछे पहुँचने का रास्ता खुल गया है । आपके आका अब आपको बचा नहीं पायेंगे । माँ-बहन की गालियाँ देने वाले ट्रौल अब सीधे जेल में जायेंगे क्योंकि इन गालियों को एक नज़र में चरित्र-हनन बताना हर जज के लिये आसान । पार्टियों के जो मुखपात्र हर किसी को गद्दार-गद्दार कह के गालियाँ दिया करते हैं, उनकी अनियंत्रित ज़ुबान पर अंकुश लगायेगा यह फैसला ।

चरित्र-हनन की राजनीति करने वालों ने कोर्ट में निजता को मूलभूत अधिकार मानने से मना किया था । भारत सरकार के पूर्व एटर्नी जनरल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने पूरी बेशर्मी से कहा था कि किसी भी नागरिक का अपने खुद के शरीर पर भी अधिकार नही है । और अभी के एटर्नी जनरल वेणुगोपाल ने तो और भी निर्लज्ज होकर कहा था कि जो लोग सरकारी खैरातों पर पलते है, उनकी निजता का कोई अधिकार नही हो सकता हैं । यह सिर्फ संपत्तिवानों की चोचलेबाजी है । सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें पूरी तरह से गलत बताते हुए एक सिरे से ठुकरा दिया । डिजिटल इंडिया के धोखे से आधार कार्ड नागरिकों को राज्य और देशी-विदेशी व्यापारियों का गुलाम बनाने का औज़ार बन रहा था । वह अब और मुमकिन नहीं होगा।

कहना न होगा, ट्रौल उद्योग के जरिये राजनीतिक लक्ष्यों को साधने की रणनीति बनाने वाले राजनीतिज्ञों के मंसूबों पर सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से पानी फेरने का काम किया है । स्वाती चतुर्वेदी ने अपनी किताब में जिन ट्रौल उद्योगों की सिनाख्त की थी उनके ठिकानों पर क़ानूनी कार्रवाई का अब सही समय आ रहा है । आगे ट्रौलिंग एक फ़ौजदारी अपराध होगा ।
पश्चिमी देशों के कानून में चरित्र-हनन को हत्या से कम बड़ा अपराध नहीं माना जाता । यह फैसला यहाँ भी सार्वजनिक जीवन को स्वच्छ करेगा । अभी तक निजता को मौलिक अधिकार न माने जाने के कारण इन मामलों पर मुक़दमों में जल्दी और सही फैसले नहीं हो पाते थे । अब क्रमश: सही फ़ैसलों की श्रृंखला तैयार होने लगेगी । तत्काल नहीं, लेकिन नागरिकों की निजता के इस अधिकार के साथ नागरिकों के समग्र अधिकारों के पुनर्विन्यास का प्रारंभ होगा जो नागरिक मात्र के लिये एक स्वच्छ सामाजिक परिवेश तैयार करने में मददगार होगा ।

अब अंत में हमारे दो सवाल हैं — निजता के अधिकार पर सुप्रीम के इस महान ऐतिहासिक फैसले पर बात-बात में ट्वीट करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ख़ामोश क्यों हैं ? और, इस ऐतिहासिक फैसले पर भाजपा की चुप्पी से क्या यह समझा जाए कि वह नागरिकों की निजता के हनन के पक्ष में है  !

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने भारत के नागरिक के नाते हमारे गौरव-बोध से को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है । इस क्रांतिकारी कदम का हर जनतंत्र और स्वतंत्रता प्रेमी नागरिक को शानदार स्वागत करना चाहिए ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें